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चक्र- अ – कुँवारी मरियम के दुल्हा, संत यूसुफ - समारोह

2 समुएल 7:4-5, 12-14, 16; रोमियों 4:13,16-18, 22; मत्ती 1:16,18- 21, 24

ब्रदर रोशन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)


आज माता कलीसिया बड़े उल्लास एवं आनंद के साथ कुँवारी मरियम के दुल्हा संत यूसुफ का पर्व मना रही है। इस दिन कलीसिया सभी विश्वासियों को संत यूसुफ के जीवन और उनके गुणों पर मनन चिंतन करने का अवसर प्रदान करती है। तथा सभी विश्वासियों से उनके गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करने का आह्वान करती है। लगभग दसवीं शताब्दी से इस पर्व को मनाने की प्रथा का चलन हुआ था। हमें पवित्र धर्मग्रंथ से संत यूसुफ का संक्षिप्त वर्णन प्राप्त होता है। संत मत्ती एवं संत लुकस के सुसमाचार के आरंभिक अध्यायों में संत यूसुफ का उल्लेख मिलता है। संत पापा पीयुस नौवें ने संत यूसुफ़ को सार्वत्रिक कलीसिया का संरक्षक घोषित किया था। उस घोषणा की 150वीं वर्षगाँठ पर इनके आदर्शों एवं मूल्यों के महत्व को दर्शाने हेतु दिसंबर 8, 2020 से दिसंबर 8, 2021 तक के समय को “संत यूसुफ़ का वर्ष” घोषित किया एवं उनकी मध्यस्थता से पूरी कलीसिया के लिए प्रार्थना करने हेतु आह्वान किया। सार्वत्रिक कलीसिया का संरक्षक माने जाने के साथ-साथ संत यूसुफ को सभी पिताओं, परिवारों, मजदूरों, अप्रवासियों, शिल्पकारों एवं यात्रियों का भी संरक्षक संत माना जाता है।

आज के तीनों पाठ हमें यही बताते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ईश्वर की एक योजना होती है एवं ईश्वर चाहता है कि हम उस योजना को जानें एवं उसके अनुसार आचरण करें। नबी यिरमियाह 29:11 में ईश्वर कहता है, “मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएं जानता हूँ, यह प्रभु की वाणी है। तुम्हारे हित की योजनाएं एवं अहित की नहीं, तुम्हारे आशामय भविष्य की योजनाएं।” आज के पाठ इस बात को भी दर्शाते हैं कि ईश्वर ही उन योजनाओं को मनुष्य को प्रकट कर सकता है। आज के तीनों पाठ हमें तीन व्यक्तियों के जीवन में ईश्वर की योजनाओं की जानकारी प्रदान करते है।

पहले पाठ में ईश्वर नबी नातान के द्वारा राजा दाऊद को अपनी योजना प्रकट करते है। नबी राजा दाऊद से कहते हैं कि ईश्वर ने तुम्हारे वंश को एवं तुम्हारे सिंहासन को अनंतकाल तक सुदृढ़ बनाने की प्रतिज्ञा की है। इस प्रतिज्ञा को ईश्वर प्रभु येसु के जन्म के द्वारा पूरी कर देते हैं। दूसरे पाठ में हम इब्राहीम के जीवन में ईश्वर की योजना के बारे में पढ़ते हैं। दूसरा पाठ यह बताता है कि किस प्रकार इब्राहीम ईश्वर की योजना के अनुसार आचरण कर धार्मिक बनता है। सुसमाचार में हम दूत के द्वारा यूसुफ को कही गई योजना का वर्णन पाते हैं। आज के तीनों पाठ यही दर्शाते हैं कि ईश्वर ही हमारे जीवन को सही दिशा दिखा सकते हैं, एवं उनके प्रति ईमानदार एवं आज्ञापालन के द्वारा ही हमारा जीवन साकार हो सकता है।

आज का सुसमाचार संत यूसुफ को एक न्यायप्रिय व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। वह धर्मी व्यक्ति था एवं अन्याय एवं बुराई को नहीं देख सकता है। वह दूसरों की भलाई चाहता है। आज का सुसमाचार विशेष रूप से यूसुफ की महानता को प्रदर्शित करता है। हम इस पाठ में पाते है कि यूसुफ मरियम पर दोष लगाना नहीं चाहता था। वह चुपके से उसका परित्याग करने का सोचता है। यहूदी समाज में मंगनी को बहुत महत्व दिया जाता था। मंगनी के बाद दोनों वाग्दत्त पति पत्नी कहलाते थे एवं उसे रद्द करने हेतु त्यागपत्र आवश्यक था। यूसुफ यहूदी नियमों से भली-भाँति परिचित था, वह जानता था कि शादी से पहले गर्भ धारण करने पर महिला को पत्थरों द्वारा प्राणदंड देने का प्रावधान था। यूसुफ की महानता इससे प्रदर्शित होती है कि वह मरियम पर दोष लगाना नहीं चाहता था। वह मरियम का कठिन परिस्थिति में साथ देने का मन बनाता है एवं वह मरियम के हित की बातें सोचता है।

आइए आज के दिन हम संत यूसुफ के महत्वपूर्ण गुणों को समझें:

यूसुफ़ का पहला गुण है - नियमों से अधिक मानवता को महत्व देनाः संत यूसुफ नियमों से अधिक मानवता को महत्व देने वाला व्यक्ति था। यूसुफ यहूदी समाज के नियमों को जानता था परंतु वह उन नियमों के परे मरियम के हित की बातें सोचता है। वह एक साधारण व्यक्ति होने के बावजूद महान सोच रखता है। वह ऐसी स्थिति में मानवता को अधिक महत्व देता है। इसके द्वारा सभी लोगों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करता है। वह मरियम की स्थिति को समझकर उसे बदनामी से बचाना चाहता है। वह चाहता तो मरियम को दोषी साबित कर सकता था परंतु वह ऐसा नहीं करता है।

संत यूसुफ़ का दूसरा गुण है – आज्ञाकारिता। यह गुण विशेष रूप से संत यूसुफ के जीवन में लागू होता है। संत यूसुफ ने इसे अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया था। इसी बात का प्रमाण हमें आज के पाठ में प्राप्त होता है जहाँ हम पाते हैं कि यूसुफ दूत के आज्ञानुसार आचरण करता है एवं शीघ्र ही मरियम को अपने यहां ले आता है। अन्य जगहों में भी हमें इस बात का प्रमाण प्राप्त होता है।

संत यूसुफ़ की तीसरी विशेषता है - ईश्वर पर दृढ़ भरोसा। आज का पाठ यह दर्शाता है कि यूसुफ ईश्वर पर दृढ़ भरोसा रखता है। वह बिना सवाल किए स्वप्न में कही गई बात पर भरोसा कर लेता है एवं उसके कहनानुसार कार्य करने लग जाता है।

आज के दूसरे पाठ में इस बात का जिक्र मिलता है कि इब्राहिम ने निराशाजनक स्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत राष्ट्रों का पिता बन गया। यह बात यूसुफ के जीवन में भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। यूसुफ के लिए वह परिस्थिति सामान्य नहीं थी। वह यहूदी प्रथा के विरुद्ध थी फिर भी यूसुफ ईश्वर पर भरोसा रख कर दूत द्वारा कही गई बात का पालन करता है।

संत यूसुफ़ का चौथा गुण है - ईश्वर की इच्छा को प्राथमिकता देना। हमें इस बातका भी ज्ञान होता है कि यूसुफ ईश्वर की इच्छा एवं योजना को अधिक महत्व देता है। वह न केवल ईश्वर पर भरोसा करता है बल्कि वह उनके कहे अनुसार कार्य करता है। वह ईश्वर की इच्छा को प्राथमिकता देता है एवं विषम परिस्थिति में भी उसका पालन करता है। वह बिना देर किए एवं बिना हिच-किचाए स्वर्गदूत के बताए अनुसार शीघ्रता से कार्य करता है।

यूसुफ का जीवन हमें यही बताता है कि पूर्ण समर्पण एवं ईश्वर पर भरोसा रख कर ही ईश्वर की योजना को पूरा करने में अपना योगदान दे सकते हैं। इसके लिए ईश्वर की आशीष होना बहुत जरूरी है। आज का पर्व हमें संत यूसुफ के सभी मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात करने का निमंत्रण प्रदान करता है। इन सभी मूल्यों को अपना कर यूसुफ ने हमारे समक्ष एक अच्छा आदर्श प्रस्तुत किया है। हम ईश्वर को उनके जीवन के लिए धन्यवाद दे एवं उनके गुणों एवं मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने के लिए विशेष कृपा एवं आशीष मांगे। इन सब से बड़कर ईश्वर की योजना को अपने जीवन में समझने और उसके अनुसार आचरण करने की कृपा मांगे। आमेन