Albin_Lukose

चक्र- स – पुण्य गुरुवार, शाम का मिस्सा बलिदान

निर्गमन 12 :1-8,11-14; 1 कुरिन्थियों 11: 23-26, योहन 13:1-15

ब्रदर अल्बिन लूकोस (खंडवा धर्मप्रान्त)


प्रेम का प्रमाण

क्रूसित प्रभु येसु के प्रेम में प्यारे भाइयो एवं बहनो।

चालीसा कल का पुण्य-सप्ताह हमें प्रभु येसु के दुख भोग, मरण एवं पुनरुत्थान पर दृष्टि डालने तथा मनन चिंतन करने के लिए आह्वान करता है। आज हम पुण्य गुरुवार का स्मरण करते हैं जिस दिन प्रभु येसु ने ब्यारी के समय प्रेम और त्याग के परस्पर संबंध को यूखरिस्तीय स्थापना द्वारा प्रकट किया था। आज का सुसामाचार जो योहन 13:1–15 से लिया गया है, प्रभु येसु के पस्का-भोज का सुन्दर वर्णन हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। योहन 13:2 में हम पढ़ते हैं,"वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अपने प्रेम का सब से बड़ा प्रमाण देने वाले थे।” आगे के वाक्यों में सुसमाचार बताता है कि भोजन के समय प्रभु येसु ने गुरु का पद छोड़ कर अपने शिष्यों के पैर धोये थे। यह घटना प्रभु येसु की विनम्रता को दर्शाती है और प्रेम का गहरा अर्थ बताती है। इस से हमें यह मालूम होता है कि अपने पद को छोड़ना या अस्तित्व त्यागना प्रेम का बड़ा प्रमाण है।

प्रेम का प्रमाण क्या है?

जब हम इस विषय पर विचार करें तो दो बातें हमारे मन में आती हैं – मानव प्रेम और ईश्वरीय प्रेम। हमारा मानव जीवन प्रेम से प्रारंभ होता है। माँ के गर्भ से लेकर अंत में कब्र तक हमारे जीवन प्रेम से ही चलाया जाता है। परंतु हमारा अनुभव यह है कि मानव प्रेम सांसारिक जीवन की परिस्थितियों एवं हमारे चाल-चलन में निर्भर रहता है। इस कारण अधिकत्तर हमें प्रेम का अभाव द्वेष, ईर्षा एवं क्रोध का सामना करना पड़ता है।

दूसरी तरफ हम ईश्वरीय प्रेम देखते हैं, जो सदा स्थिर है और जिसकी कोई सीमा नहीं है। ईश्वर का प्रेम ऐसा किसी सांसारिक चीज पर निर्भर नहीं है, किसी की योग्यता या धन-संपत्ति की चिंता नहीं करता, और पपियों के साथ रहने से कलंकित नहीं होता। ईश्वर का प्रेम ऐसा एक अनोखा प्रेम है जो हमारी मुक्ति के लिए स्वयं को अर्पित करने से भी पीछे नहीं हटता। योहन 3:16 में वचन कहता है "ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमें विश्वास करता है, उसका सर्वनाश ना हो बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करें"। पिता ईश्वर ने अपने पुत्र की कुर्बानी द्वारा अपना प्रेम प्रकट किया है। प्रभु येसु भी अपने मानव अवतार के उद्देश्य को पूर्ण करने में सदा तत्पर थे, इतना तक कि अपने प्राण त्याग करने के लिए भी। योहन 15:13 में प्रभु येसु कहते हैं, "इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे"। प्रेम और त्याग की इसी शिक्षा को उन्होंने सूली पर अपने मरण द्वारा साबित किया।

प्रिय विश्वासियो ! प्रभु येसु के स्वयं ईश्वर होते हुए भी उनका अपनी ईश्वरीय गरिमा त्यागना वा नश्वर रूप धारण करना प्रेम का प्रमाण है; मानव बनकर निरे मनुष्यों के बीच एक गरीब जीवन जीना प्रेम का प्रमाण है; स्वयं निष्कलंक होते हुए भी पापियों को अपनाना प्रेम का प्रमाण है; सब कुछ के मालिक होने के बावजूद भी नेताओं एवं अन्य लोगों के द्वारा निन्दित होना, बहिष्कृत होना और दोषी ठहराया जाना प्रेम का प्रमाण है; ब्यारी में एक सेवक बनकर अपने शिष्यों के पैर धोना प्रेम का प्रमाण है; क्रूस-मार्ग में अकथनीय वेदना एवं अपमान सहन करना प्रेम का प्रमाण है; अंतिम क्षण क्रूस में मरते वक्त अपने विरोधियों को क्षमा करना भी प्रेम का प्रमाण है; सबसे बढ़कर आज तक हर युखरिस्तीय बलिदान में तोडा जाना और हमारे साथ उपस्थित रहना भी प्रेम का प्रमाण है।

मित्रो! प्रभु येसु का उदाहरण हमें यह प्रेरणा देता है कि प्रेम का सच्चा प्रमाण त्याग करने से प्रकट होता है। हम हमेशा यह मन में रखें कि ‘त्याग के द्वारा ही प्राप्ति होती है’। हम प्रभु से यह वरदान माँगें कि हम हर यूखरिस्त में प्रभु येसु को पहचान सके और अपने त्याग भरे जीवन द्वारा ख्रीस्त की साक्षी बनें। आमेन।