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चक्र- स – पास्का का तीसरा रविवार

प्रेरित-चरित 5:27-32; प्रकाशना 5:11-14; योहन 21:1-19

ब्रदर तमिलअरसन पॉलदास (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


प्रभु से प्रेम करें - प्रभु के साक्षी बनें

ख्रीस्त में प्रिय विश्वासियो!

प्रभु येसु के साथ एक व्यक्तिगत अनुभव ही असली ख्रीस्तीय जीवन का आधार है, न कि सिर्फ धर्म सिद्धांतों का संग्रह। आज के सुसमाचार में हम पुनर्जीवित प्रभु येसु के साथ शिष्यों की मुलाकात का एक सुन्दर वर्णन पाते हैं। योहन 21:1-19 में हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु स्वयं अपने शिष्यों के खोज में जाते हैं जो उनके घोर दुखभोग के पश्चात भयभीत थे। हालांकि प्रभु अपने पुनुरूत्थान के बाद बारम्बार उन्हें दर्शन दे ही रहे थे, फिर भी वे विस्मित एवं विचलित थे। उनके जीवन में निराशा की बादल छाई हुई थी। इस कारण उन्होंने अपने पुराने पेशा में प्रयास करने लग गये थे, अर्थात वे मछली मारने चल पडे क्योंकि वे मछुए थे। वचन हमें बताता है कि पूरी रात प्रयास करने के बावजूद भी उन्हें कुछ नहीं मिला किन्तु जब पुनुर्जीवित येसु से उनकी मुलाकात हुई, तब चमत्कारिक रूप में उन्हें अधिक मात्रा में मछलियाँ मिलीं। इस पर उन्होंने प्रभु को पहचान लिया और प्रभु के प्रबधंन का अनुभव किया। इस घटना ने शिष्यों को पुनः विश्वास दिलाया कि जिस येसु में उन्होंने विश्वास किया था और जिसे क्रूस पर मरते देखा था वह सचमुच मसीह है और उसे सर्वोच्च ईश्वर की महिमा प्राप्त है।

इस सुसमाचार के द्वितीय भाग में हमें पढ़़ने को मिलता है कि प्रभु येसु पेत्रुस की परिक्षा लेते है कि अपने प्रति उसका प्रेम कितना गहरा है। परिक्षा लेते हुए प्रभु ने उसे तीन बार पूछा था, “क्या तुम मुझे प्यार करते हो?” उसने उत्तर में अपना प्रेम प्रकट किया। पवित्र ग्रन्थ हमें बताता है कि पेत्रुस ने न केवल शब्दों में बल्कि अपने जीवन में गंभीरता से प्रभु के प्रति अपना प्रेम प्रकट कर साक्ष्य दिया। इस विषय में आज का पहला पाठ हमें बताता है कि पेत्रुस और अन्य प्रेरित सुसमाचार प्रचार करने के कारण यहुदी नेताओं तथा महासभा के सदस्यों द्वारा सताये जा रहे थे। जब प्रधानयाजक द्वारा कड़ी चेतावनी दी गई थी तब पेत्रुस और अन्य प्रेरितों ने यह उत्तर दिया था, “मनुष्यों की अपेक्षा ईश्वर की आज्ञा का पालन करना कहीं अधिक उचित है।” ( प्रेरित 5:29) ईश्वर का प्रेम और ईश्वरीय अनुभव उनमें इतना गहरा था कि वे कोई भी परिस्थिति का धैर्य के साथ सामना करते थे और प्रभु के साक्ष्य देते थे जैसे कि प्रेरित 5:32 में हम प़ढ़ते हैं, “इन बातों के साक्षी हम हैं और पवित्र आत्मा भी, जिसे ईश्वर ने उन लोगों को प्रदान किया है, जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।”

ईश्वर पर विश्वास एवं प्रेम हमें उनके आज्ञाकारी बनने को बाध्य करते है। जब पेत्रुस ने प्रभु के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया तब वापसी में प्रभु ने उन्हें यह आदेश दिया, “मेरी भेड़ों को चराओ।” (योहन 21:15-17) प्रभु से प्रेम करने का असली अर्थ उनके द्वारा दी गई आज्ञाओं का पालन करने में ही प्रकट किया जा सकता है। क्योंकि योहन 14:15 में प्रभु कहते हैं, “यदि तुम मुझे प्यार करोगे, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।” पेत्रुस ने वही किया था। उन्होंने अपने प्रेरितिक कार्य द्वारा अनेक लोगों को प्रभु के मार्ग पर लाया और प्रभु के साक्षी बन कर अपना प्रेम का सच्चा प्रमाण दिया।

प्रिय मित्रो! आज वही प्रश्न हम से भी प्रभु पूछना चाहते हैं, “क्या तुम मुझे प्यार करते हो?” इस पर हमें विचार करने तथा अपने जीवन को परखने की ज़रूरत है। यदि हमारा उत्तर “हाँ” है, तो प्रभु के अदेशों का पालन करना अति आवश्यक है। लेकिन वर्तमान काल में हमारा अनुभव यह है कि हम ईश्वर के मार्ग से भटक कर सांसारिक प्रलोभनों के आकर्षण में फंस जाते हैं; फलस्वरुफ ईश्वर के प्रति हमारी उदासीनता बढ़ती है। हमें यह बात याद रखनी है कि हर ख्रीस्तीय विश्वासी प्रभु के साक्षी बनने के लिए बुलाया गया है।

साक्षी बनने का पहला कदम है प्रभु को जानना या पहचानना। प्रभु को जानने या पहचानने से उनके प्रति प्रेम उत्पन्न होता है। यह प्रेम हमें उनके आदेशों को पालन करने तथा प्रेरितिक कार्य करने के लिए बाध्य करता है। जब हम प्रभु के मार्ग पर चलते हुए उनकी आज्ञाओं को पूरा करते हैं तब हम भी प्रभु के साक्षी बन पायेंगे।

आईये, अपने प्रेम भरा जीवन द्वारा प्रभु के साक्षी बनने के लिए आवश्यक कृपा प्राप्त करने हेतु पिता ईश्वर से याचना करें। प्रभु हमें प्रचुर मात्रा में आशिष प्रदान करें।