satish_mohe

चक्र- स – पास्का रविवार

प्रेरित-चरित 10:37-43; कलोसियों 3:1-4; योहन 20:1-9

ब्रदर सायमन मार्को (इन्दौर धर्मप्रान्त)


पुनर्जीवित प्रभु के सच्चे साक्षी बनें

ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों, आज माता कलीसिया प्रभु येसु के पुनरूत्थान का पर्व मना रही है। हमने चालीस दिनों से उपवास, प्रार्थना एवं त्याग-तपस्या करते हुए इस पर्व को मनाने लिए अपने आपको तैयार किया है ताकि हम प्रभु येसु के पुनरूत्थान की खुशी में शामिल हो सकें। आज प्रभु येसु मृत्यु के बन्धन को तोड़ कर पुनुर्जीवित हुए हैं और महिमान्वित किये गये हैं। प्रभु येसु का पुनरूत्थान हमारे विश्वास का आधार है। संत पौलुस 1 कुरिन्थियों 15:17 में कहते है, “यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है।” हम यह जानते हैं कि यदि प्रभु येसु पुनुर्जीवित नहीं हुए होते तो आज कलीसिया का अस्तिव नहीं होता और न ही हम विश्वासी कहलाते।

आज के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि मरियम मगदलेना प्रातःकाल दुःख भरे मन से अपने हृदय में येसु से मिलने की जिज्ञासा लिए कब्र के पास आती है। जब वह कब्र के पास पहुँचती है तब वह कब्र का पत्थर हटा हुआ पाती है तथा पुनर्जीवित प्रभु के दर्शन पाती है। वह अनुभव करती है कि उसके हृदयरूपी कब्र का पत्थर हट गया है और उसकी उदासीनता खुशी में परिणत हो गई है। वह तुरन्त अपनी खुशी और अपने विश्वास को बाँटने के लिए शिष्यों के पास जाती है। पेत्रुस और योहन उसके साक्ष्य पर विश्वास कर दौड़ते हुए कब्र की ओर आते हैं। जब वे कब्र के अन्दर जाते हैं और कब्र को खाली पाते हैं तब वे एक नये जीवन का अनुभव करते हैं और अपने विश्वास में और भी दृढ़ हो जाते हैं।

प्रिय भाईयो एवं बहनो, क्या हम मरियम मगदलेना के समान प्रभु येसु के लिए ललायित हैं? कब्र निराशा का प्रतीक है, खालीपन का प्रतीक है, दुःख एवं शून्यता का प्रतीक है। फिर भी मरियम मगदलेना अपने दुःख में सांत्वना पाने के लिए प्रभु की कब्र जाती है और वहाँ प्रभु उसके निराशा को आशा में बदल देते हैं। यदि हम प्रभु येसु के दर्शन करना चाहते हैं तो हमें अपने दुःख भरे अवस्थाओं में भी प्रभु येसु पर दृढ़ विश्वास रखना चाहिए। जब हमारे हृदय व्याकुलता भरी कब्र बन जाता है तब प्रभु येसु स्वंय हमारे लिए कब्र का पत्थर खोलने के लिए समर्थ है। जब हमारे हृदयरूपी कब्र का पत्थर हटा दिया जाता है तब ही हम प्रभु के दर्शन कर सकेंगे।

प्रभु येसु के घोर दुःखभोग एवं उनके क्रूस मरण से शिष्य भयभीत थे। प्रभु येसु उन्हें बारम्बार दर्शन दे कर उनके विश्वास को सुदृढ़ करते हैं ताकि वे विचलित न हों। जब शिष्य पुनर्जीवित प्रभु के दर्शन करते हैं तब वे अपने विश्वास में दृढ़ हो कर साहस के साथ उनका प्रचार करते हैं। हमें विदित्त है कि पेत्रुस ने पहले डर से प्रभु को तीन बार अस्विकार किया था परन्तु जब उन्होंने कब्र को खाली पाया तब वह अपने जीवन में एक अनोखा-सा विश्वास महसूस किया। इनके इस अनोखे विश्वास ने प्रभु येसु के दर्शन के बाद पूर्णता प्राप्त किया। फलस्वरूप उन्होंने यहूदियों के सामने पुनर्जीवित प्रभु की घोषणा पूरे उत्साह के साथ एवं निडर होकर करने में सफल हुए।

हमें संत पौलुस के बारे भी ज्ञात हैं कि उन्होंने पहले विश्वासियों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किये। जब उन्हें प्रभु येसु के दर्शन प्राप्त हुए तब वे अपनी कट्टरपन्ती को छोड़ प्रभु येसु में एक सच्चे विश्वासी बन गये। उन्होंने अपना सम्मपूर्ण जीवन प्रभु येसु के सुसमाचार के प्रचार करने में समर्पित किया। संत पौलुस कहते हैं, ”धिक्कार मुझे, यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ।“ (1कुरिन्थियो 9:16) सुसमाचार प्रचार के कारण आये सभी कष्टों को उन्होंने धीरज के साथ सहन किया। इस प्रकार वह बहुत ही प्रभावशाली प्रचारक बना और उन्होंने दूसरों को प्रभु येसु की ओर अग्रसर किया।

प्रिय भाईयो एवं बहनो, जीवित प्रभु येसु के साथ एक व्यक्तिगत अनुभव हमें प्रभु के प्रेम को फैलाने में सक्षम बनाता है। हम सब के लिए सुसमाचार के प्रचार करने और अपने विश्वास को दूसरों तक पहुँचाने के कई अवसर मिलते हैं। क्या हम इन अवसरों का सदुपयोग कर पाते हैं? क्या हम विकट परिस्थितियों में पुनर्जीवित प्रभु का प्रचार करने को तैयार हैं? या हम भी भयभीत शिष्यों के तरह दुःख संकट में विचलित हो जाते हैं? हम इन पर मनन करें और अपने जीवन में आवश्यक परिवर्तन लायें।

आईये, हम पुनर्जीवित प्रभु से आशिष एवं कृपा मांगे ताकि हम अपने विश्वास में दृढ़ होकर उनके सच्चे साक्षी बन सकें और अधिक लोगों को प्रभु के करीब ला सकें।