thomas_arumalla

चक्र- स – वर्ष का पन्द्रहवाँ रविवार

विधि-विवरण 30:10-14; कलोसियों 1:15-17; लूकस 10: 25-37

ब्रदर थॉमस आरूमल्ला, ऐ.वि.डि.


येसु मसीह में प्रिय दोस्तों, आज के पाठों के द्वारा माता कलीसिया हमारे सामने "प्यार की पुकार" के बारे में एक सुंदर विषय प्रस्तुत करती है। प्रेम की यह पुकार उस आज्ञाकारिता के माध्यम से व्यक्त की जाती है जो मसीह में निहित है। आज के तीनों पाठों में प्रेम, आज्ञाकारिता और ईसा मसीह का स्वभाव एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

सुसमाचार में हम पाते हैं कि एक शास्त्री अनन्त जीवन के बारे में एक प्रश्न के साथ प्रभु येसु की परीक्षा लेता है। प्रभु येसु जानता था कि यह प्रश्न अनन्त जीवन प्राप्त करने की इच्छा के कारण नहीं बल्कि उसकी परीक्षा लेने के लिए था। हालाँकि, प्रभु येसु सीधे उसे अनन्त जीवन के बारे में कुछ धार्मिक शिक्षा नहीं देते हैं, बल्कि जैसा कि वह हमेशा करते हैं, वह धर्मग्रंथों का सहारा लेते हैं, जहाँ दो सबसे बड़ी आज्ञाएँ दी गई हैं। पहली आज्ञा, विधि विवरण ग्रंध 6:5 में हम पढते हैं, "तुम अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी शक्ति से प्यार करो"। और दूसरी, लेवी ग्रंध 19:18 में हम पढते हैं, "तुम अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो"। प्रभु येसु जानते थे कि यहूदियों को अपने धर्मग्रंथों और उन नियमों से बहुत लगाव था जो प्रभु ईश्वर ने उन्हें मूसा के माध्यम दिए थे। और यह बात, आज के पहले पाठ के द्वारा हमारे लिए बहुत स्पष्ट हो जाती है, जहां मूसा इस्राएलियों से कह रहे हैं, "मैं तुम लोगों को आज जो संहिता दे रहा हूँ, वह न तो तुम्हारी शक्ति के बाहर है और न तुम्हारी पहुँच के परे" (विधि विवरण 30:11)। इस प्रकार येसु ने धर्मग्रंथ का सहारा लेते हुए उस शास्त्री को एक निश्चित उत्तर दिया जो प्रभु येसु की परीक्षा लेना चाहता था, क्योंकि स्तोत्र 119:105 कहता है "तेरा वचन मेरे पैरों के लिए दीपक और मेरे मार्ग के लिए प्रकाश है"। इसी संबंध में, आज का दूसरा पाठ प्रभु येसु के पूर्व-अस्तित्व के बारे में बताता है कि प्रभु येसु के द्वारा ही सब कुछ अस्तित्व में आया और समस्त सृष्टि उन में टिकी हुई हैं (कलोसियों 1:17)। इस प्रकार प्रभु येसु, ईश्वर के नियमों का अवतार हैं, और प्रेम का सार हैं।

हालाँकि, प्रेम का यह आह्वान जो ईश्वर ने मूसा के द्वारा शुरू से ही उन्हें दिया था, शास्त्री के लिए पर्याप्त नहीं था और इसलिए वह और स्पष्टीकरण चाहता हैं। इस पर प्रभु येसु "भले समारी" का एक सुंदर दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं। यह दृष्टान्त पड़ोसी की यहूदी परिभाषा को चुनौती देता है। याजक और लेवी, जिन्हें धार्मिक अधिकारी माना जाता है, धार्मिक कानून के प्रति प्रेमहीन आज्ञाकारिता का प्रदर्शन करते हुए, घायल व्यक्ति के पास से चले जाते हैं। लेकिन, समारी, एक बाहरी व्यक्ति सच्ची करुणा दिखाता है, दोनों बड़ी आज्ञाओं को पूरा करता है, प्रभु से प्रेम करता है और उस पड़ोसी से प्रेम करता है जिसमें वह प्रभु को देखता है। प्रभु येसु ने पड़ोसी से प्रेम करने के अर्थ को केवल अपने मित्र से प्रेम करने से लेकर शत्रु से भी प्रेम करने की चरम सीमा तक पहुँचाया है। यह प्रभु येसु की मौलिक शिक्षा है, जब वह कहते हैं, "मैं संहिता को खत्म करने के लिए नहीं बल्कि उसे को पूरा करने के लिए आया हूँ" (मत्ती 5:17), या जब वह घोषणा करते हैं, "अपने दुश्मनों से प्यार करो और उन लोगों के लिए प्रार्थना करो जो तुम्हें सताते हैं ” (मत्ती 5:44)।

इस प्रकार अपने पड़ोसी से प्रेम करना केवल एक नियम का पालन करना नहीं बल्कि यह दुनिया में मसीह को प्रतिबिंबित करने के बारे में है। आज हमें कानून की माँग से भी आगे बढ़ कर दुनिया में विभिन्न कठिनाइयों से दबे हुए लोगों के लिए मसीह के प्रेम के माध्यम बनने के लिए बुलाया जाता है। समारी ने घायल व्यक्ति को दुश्मन या बाहरी व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि एक जरूरतमंद मित्र के रूप में देखा। इस प्रकार, जब भी हम किसी जरूरतमंद के पास से गुजरते हैं या कठिन परिस्थिति में पड़े किसी व्यक्ति के सामने अपने आपको पाते हैं, तो हमें भी उन में मसीह की पीड़ा को देखने के लिए बुलाया जाता है। प्यार सिर्फ एक एहसास नहीं है, यह एक क्रिया है। आइए हम अपना जीवन ईसा मसीह की शिक्षाओं पर आधारित होकर जिएं। उनका प्रेम सच्ची आज्ञाकारिता की नींव है, जो हमें अर्थ और उद्देश्य से भरे जीवन की ओर ले जाता है। इस प्रकार प्यारे दोस्तों आइए आज हम अपनी दुनिया में भले समारी बनें, हमारे प्रेम को सृष्टि के पहले जन्मे मसीह का प्रतिबिंब बनने दें, जिसमें सभी चीजें अपना उद्देश्य पाती हैं। आमेन।