प्रवक्ता 27: 4-7; कुरिंथियों 15: 54-58; लूकस 6: 39-45
फल से पेड़ की पहचान
ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाईयों और बहनों, हम में से अधिकत्तर लोगों ने बागवानी या फिर फल तोड़ने का काम किया होगा। हम जानते हैं कि एक कमजोर पेड़ या पौधे बहुत कम फल पैदा करते हैं, और ऐसे पेड़ जो कम फल पैदा करते हैं वे अक्सर बेस्वाद भी होते हैं। आज के पवित्र सुसमाचार में हम सुनते हैं, "कोई अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं देता और न कोई बुरा पेड़ अच्छा फल देता है। हर पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है। लोग न तो कँटीली झाड़ियों से अंजीर तोड़ते हैं और न ऊँटकटारों से अंगूर। (लूकस 6:43-44) इस वाक्य पर मनन चिंतन करेंगे, तो पायेंगे कि हम मनुष्य का विकास एक पेड़ के विकास की तरह है। जैसे पेड़ एक प्रक्रिया से गुजरते हैं और फिर मौसम के अनुसार फल देते हैं, वैसे ही हम लोग भी अपना जीवन व्यतीत करते है। ईश्वर ने हम में से प्रत्येक व्यक्ति को अपनी महिमा के लिए बहुत फल उत्पन्न करने और दूसरों के लिए आशीर्वाद बनने के लिए बनाया। इसलिए मानव जाति के लिए ईश्वर के पहले शब्द थे, “फलो फूलो”।
हम में से हर कोई अच्छा फल उत्पन्न करना चाहते हैं। परन्तु अच्छा फल उत्पन्न करने के लिए हमें एक अच्छे वृक्ष के समान बनना होगा। जिस प्रकार एक अच्छा पेड़ अंदर से स्वस्थ होता है, यह मिट्टी से साफ पानी और अच्छे पोषक तत्व खींचता है, और मजबूत बनता है फिर उस पर फल लगते हैं। किन्तु जो बुरा पेड़ रोगग्रस्त है वह अच्छा फल नहीं ला सकता। वह अच्छे पेड़ों के लिए खतरा बन जाता है और काट दिया जाता है। उसी तरह हमें भी एक अच्छे पेड़ की तरह बनना होगा तभी हम अच्छे फल उत्पन्न कर सकेंगे। अच्छे फल उत्पन्न करने के लिए हमारा हृदय शुद्ध होना चाहिए ताकि ईश्वर हमारे हृदय में निवास कर सकें और अपनी जीवनदायिनी शक्ति से फल उत्पन्न कर सके। यदि हम पापमय जीवन जीयेगें तो हम उस बुरे पेड़ की तरह बन जायेंगे जो अच्छे पेड़ों के लिए खतरा बन जाता है और वह काट दिया जाता है।
यदि हमारा जीवन एक बुरे पेड़ की तरह रहेगा तो हम ईश्वर से अलग हो जाएंगे, ईश्वर से हमारा संबंध टूट जायेगा और हम अच्छे फल उत्पन्न नहीं कर सकेंगे। जिस प्रकार येसु स्वंय कहते हैं योहन के सुसमाचार अध्याय 15:4 में "तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा। जिस तरह दाखलता में रहे बिना डाली स्वंय नहीं फल सकती, उसी तरह मुझ में रहे बिना तुम भी नहीं फल सकते"। आगे सुसमाचार में हम सुनते है, "अच्छा मनुष्य अपने हृदय के अच्छे भण्डार से अच्छी चीजें निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भण्डार से बुरी चीजें निकालता है, क्योंकि जो हृदय में भरा है, वहीं तो मुँह से बाहर आता है"। हमारे शब्द और कर्म हमारे दिल के अच्छे फल है। हमारा दिल भंडारग्रहों की तरह है। यदि हम अपने हृदय में कड़वी भावनाएँ, बुरी आदतें और द्वेष रखेंगे तो हम प्रतिशोधी बन जाएगें और बुरी बातें कहेंगे। अगर हम अपने हृदय में बुरे विचार अनैतिक फिल्मों और इस तरह की छवियों से भर देगें तो हम स्वाभाविक रूप से बुरे शब्द बोलेंगे एवं बुरे व्यवहार से संलग्न हो जायेंगें।
यदि हम अपने हृदय में आध्यात्मिक ज्ञान की बातें, अच्छी आदतें भर देगें तो अच्छी चीजें हमारे हृदय से बाहर आएंगी। आइए हम इस यूखरिस्तीय समारोह में ईश्वर से प्रार्थना करें कि वे हमारे हृदयों में अच्छे गुण एवं ज्ञान की बातें भर दें ताकि हम अपने गुण एवं ज्ञान की बातों के द्वारा दूसरों को ईश्वर की ओर आकर्षित कर सकें। आमेन।