इसायाह 6:1-2अ,3-8; 1 कुरिन्थियों 15:1-11 या 15:3-8,11: लुकस 5:1-11
मुक्ति कार्य के लिए बुलाहट
हम सुनते हैं कि ईश्वरीय मुक्ति योजना में मनुष्य की महत्वपूर्ण सहभागिता है। सबसे बड़ा उदाहरण प्रभु येसु का है जिन्होंने मानव शरीर धारण कर मुक्ति-योजना में सहयोग किया। इस मुक्ति योजना को जारी रखने के लिए प्रभु येसु पहले 12 शिष्यों को नियुक्त करते हैं। बुलावे का यह सिलसिला आज भी कलीसिया में जारी है, ताकि सभी लोगों के जीवन में मुक्ति का दीप प्रज्वलित हो सके।
शिष्यों की तरह आज प्रभु येसु हमें उनके अनुयाई बनने के लिए बुलाते हैं, हमें एक सच्चा जीवन जीने एवं उनके मुक्ति कार्य में सहयोग के लिए बुलाते हैं। जिस तरह खेतों में कार्य करने के लिए मजदूरों की आवश्यकता होती है, उसी तरह प्रभु के मुक्ति कार्य को जारी रखने के लिए कलीसिया में पवित्र आत्मा से प्रेरित अनुयायियों की आवश्यकता होती है। प्रभु येसु विभिन्न अवसरों पर विभिन्न तरीके से लोगों को बुलाते हैं। यह बुलाहट एक सर्वश्रेष्ठ वरदान है।
आज के पाठों द्वारा कलीसिया हमें यह स्मरण दिलाती है कि किस तरह ईश्वर मुक्ति योजना संपन्न करने के लिए नबियों एवं प्रेरितों को बुलाते हैं। आज के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु पेत्रुस एवं उनके साथियों को जो साधारण मछुए थे, बुलाते हैं। प्रभु येसु उनको कलीसिया के चरवाहे बनने और सुसमाचार फैलाने के लिए बुलाते हैं। आज के पहले पाठ में ईश्वर अपनी भटकी हुए भेड को एकत्र करने के लिए नबी इसायाह को नियुक्त करते हैं ताकि ईश्वर नबी के द्वारा इस्त्राएली लोगों को सही मार्गदर्शन कर सके। आज के दूसरे पाठ में भी हम सुनते हैं कि संत पौलुस कुरिंथियों को बताते हैं कि प्रभु येसु ने उन्हें विश्वास का बीज बोने के लिए नियुक्त किया है।
आज के समय में हम प्रभु येसु की योजना को पूरी तरह से समझने में असमर्थ है क्योंकि हम दूसरे कार्यों को महत्व देकर प्रभु येसु की बुलाहट को अनदेखा कर देते हैं। फिर भी कई लोग प्रभु येसु की बुलाहट को समझते हैं लेकिन गंभीर विचार न करके उस मार्ग से दूर चले जाते हैं। आज के बदलते परिवेश में संसार पापों की ओर खिंचा चला जा रहा है। जहां पहले भाईचारा, प्रेम, सेवा और दया थी, वहां हत्या, लड़ाई-झगड़ा और भ्रष्टाचार पनपने लगे हैं। इसी संसार के आराम, दूरदर्शन और मनोरंजन के साधन आदि हमें प्रभु ईश्वर से दूर ले जाते हैं। इसी बीच बुलाहट की आवाज बहुत कम ही सुनाई देती है। इसी बदलते परिवेश में प्रभु का शिष्य बनना बहुत कठिन सा हो गया है।
यही हम आज के पहले पाठ में सुनते हैं कि बुलाहट को स्वीकारना नबी इसायाह को कठिन लग रहा था। वह कहता है कि मैं अशुद्ध होटों वाला मनुष्य हूँ, अशुद्ध होंठों वाले मनुष्य के बीच रहता हूँ। दूसरे पाठ में संत पौलुस कहते हैं कि में प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ और प्रेरित कहलाने भी योग्य नहीं हूँ क्योंकि उन्होंने कलीसिया पर अत्याचार किया था। आज के सुसमाचार में पेत्रुस कहते हैं "प्रभु! मेरे पास से चले जाइए। मैं तो पापी हूँ।"
अगर हमें एक अच्छे कार्य के लिए बुलाहट मिलती है, तो हमें उस बुलाहट को स्वीकारना है। और प्रभु येसु के अनुसार कार्य करना है। हमें इस संसार की कठिनता को न देखकर और अपनी अयोग्यता को न देखकर प्रभु येसु के लिए जीवन समर्पित करना है। अगर हममें अयोग्यता है, तो प्रभु येसु अपने कार्यों के लिए हमें योग्य एवं काबिल बनाएगा।
तो प्यारे भाइयों और बहनों प्रभु येसु हमें किसी भी परिस्थिति में बुलाएं, हमें अपना जीवन समर्पित करने के लिए तैयार रहना है, और यदि हम इस जीवन की बुलाहट को नहीं पहचान पाए हैं तो ईश्वर से आशिष मांगे ताकि हम उसके मुक्ति कार्य में अपना सहयोग दे सकें। आमेन।।।।।