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चक्र- स – सामान्य काल का दूसरा इतवार

इसायाह: 62: 1-5; 1 कुरिन्थियो 12: 4-11; योहन: 2: 1-11

ब्रदर अमित सोरेन (मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों, उदारता मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है। मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाला कोई गुण है तो वह है उदारता। उदारता प्रेम का परिष्कृत रूप है। जब हम अपने जीवन में दूसरों को उदारतापूर्वक कुछ देते हैं, तो यह उदारता उतनी ही बढ़ती जाती है। हम ख्रीस्तियों के जीवन में उदारता की अपनी एक अलग ही पहचान है। आज के तीनों पाठों में उदारता का जिक्र किया गया है। आज के प्रथम पाठ में ईश्वर की इस्राएलियों के प्रति उदारता को दर्शाया गया है। ईश्वर अपनी उदारता में इस्राएली साम्राज्य को पुनः प्रतिष्ठित करने में सहयोग देता है। आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस ईश्वर से प्राप्त नाना प्रकार के वरदानों के विषय में जिक्र करते हैं। वे कहते हैं कि हम में से किसी को ज्ञान, प्रज्ञा, विश्वास, भविष्यवाणी करने और भाषाएं बोलने का वरदान मिला है, तो हम क्यों नहीं उन्हें दूसरों की भलाई के लिए उपयोग करते हैं। ईश्वर ने हमें विभिन्न प्रकार के वरदानों से भर दिया है, जिससे हम दूसरों के लिए मदद बन सकें। यदि हम इन कृपादानों को दूसरों की सहायता के लिए प्रयोग नहीं करते हैं, तो हम ईश्वरीय उदारता पर रुकावट पैदा करते हैं। आजकल के सामाजिक परिस्थितियों से हम भली-भांति परिचित हैं। समाज में हम देखते हैं कि कोई किसी को कुछ देने का नाम ही नहीं लेता, परन्तु हमेशा दूसरों से कुछ पाने की अभिलाषा रखते हैं जिसके फलस्वरूप हम स्वार्थ बन जाते हैं।

हाँ प्रिय भाइयों एवं बहनों, हमारे पास जो कुछ है वह ईश्वर की देन हैं। इसलिए हमें दूसरों की सहायता हेतु हमेशा तैयार रहना चाहिए। पवित्र वचन हम से कहता है, “तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दे दो” (संत मत्ती10:8)। हम जितना अधिक उदार बनेंगे, ईश्वर हमपर उतना ही अधिक आशिष एवं कृपा बरसायेंगे।

आज के सुसमाचार में हम सुनते हैं कि प्रभु येसु, पानी को दाखरस में बदलकर मानवीय जरूरतों में अपनी उदारता प्रकट करते हैं। आज का सुसमाचार येसु द्वारा, काना के विवाह में किये गये पहले चमत्कार को हमारे सामने प्रकट करता है। आमतौर पर शादियों में खुशियों का माहौल होता है। शादियों में परोसे जाने वाले भोजन से लेकर संगीत एवं नृत्यतक, शादियां जीवन की अच्छाई से भरपूर होती है। गहरे स्तर पर शादियां प्रेम, करुणा और एकता की बात करती है। काना का विवाह ईश्वर के प्रेम और करुणा का प्रतीक है। काना के विवाह के चमत्कार में , प्रभु येसु उस परिवार की सहायता करते हैं जो शर्मिंदगी की स्थिति में धकेला जाने वाला था। यहूदी प्रथा के अनुसार शादियां एक सप्ताह तक चलती है, और अंगूरी के बिना कोई शादी नहीं होती है। ऐसे में अंगूरी का खत्म हो जाना उस परिवार के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण सवाल था। समाज में उनकी बेइज्जती होने वाली थी। लेकिन ऐसी विषम स्थिति में प्रभु येसु उस परिवार पर अपनी महत्ती दया और उदार हृदय को प्रस्तुत करते हैं। इस अदभुत चमत्कार के कारण प्रभु येसु हमें उदारता के मर्म को समझाना चाहते हैं। काना के विवाह के चमत्कार में माँ मरियम की भूमिका बहुत ही अहम है। इस विवाह समारोह में येसु और उनकी माता, और उनके शिष्य भी आमंत्रित थे। समारोह में सभी चीजें सही चल रही थी, लेकिन एक आकस्मिक संकट सामने आता है, वह यह है कि विवाह में परिवार के पास अंगूरी की कमी हो गयी थी, जिसे मेहमानों को परोसा जाना था। माँ मरियम स्वयं इस पर ध्यान देती है और येसु को उस परिवार के संकट में शामिल कर लेती है। माता मरियम इस परिवार की परेशानी को समझकर अपने बेटे के पास जाकर कहती है, “उन लोगों के पास अंगूरी नहीं रह गई है” । माँ मरियम उस परिवार के लिए कुछ विशेष करने, और संभावित शर्मिंदगी से बचने का आग्रह करती है। इससे हमें यह संकेत मिलता है कि माँ मरियम को येसु की शक्ति का पहले से ही एहसास था। यहाँ पर माँ मरियम अपने बेटे के साथ मानवीय चिंता साझा करती हैं ,क्योंकि वह दूसरों की कठिनाइयों के प्रति बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति है, जैसा कि हम मरियम-एलिजाबेथ का मिलन में देखते हैं। प्रभु येसु ने जब साधारण पानी को अंगूरी में बदला तो यह सिर्फ साधारण अंगूरी ही नहीं, बल्कि उच्चतम गुणवत्ता की थी।

आज के सुसमाचार के माध्यम से प्रभु येसु हमें अपने समान उदार बनने के लिए निमंत्रण देते हैं। ईश्वर ने हम सभी को उदार हृदय दिया है, लेकिन हम अपने स्वार्थ के कारण दूसरों की जरूरतों को अनदेखा कर देते हैं। हम सब ख्रीस्तिय हैं, और ख्रीस्तिय होने के कारण हमारा कर्तव्य यह है कि ईश्वर द्वारा प्रदत्त उदारता को अपने जीवन के द्वारा, दूसरों के प्रति उदार बनकर अपनी ख्रीस्तियता को सार्थक बनायें। हम भी माता मरियम के समान दूसरों की जरूरत के प्रति संवेदनशील बनें। जब हम उदार होते हैं, तो हम अपने बारे में सोचना बंद कर देते हैं और दूसरों के बारे में सोचना शुरू करते हैं। संत पौलुस हमें इस विषय पर स्पष्ट रूप से कहते हैं, “केवल अपने हित का नही, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखें” (फिलिप्पियों के नाम: 2:4)। ईश्वर का यह वचन हमें उदार बनने के लिए प्रेरित करता है। हम ईश्वर से यही दुआ मांगे कि हम सब नि:सहाय एवं ज़रूरतमंद लोगों की सेवा में हमेशा तत्पर रहें। प्रभु येसु हमें उदार हृदय से भर दें ताकि हम अपने समाज में ख्रीस्तिय उदारता का उत्तम नमूना बन सकें।