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चक्र- ब – पवित्रतम त्रित्व का महापर्व

विधि-विवरण 4:32-34, 39-40; रोमियों 8:14-17; संत मत्ती 28:16-20

ब्रदर सायमन मार्को (इन्दौर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में मेरे प्यारे भाईयों एवं बहनो, आज माता कलीसिया पवित्र त्रित्व का पर्व मना रही है। माता कलीसिया हमें सिखाती है कि ईश्वर एक है और एक ईश्वर मंत तीन जन हैं – पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा। आज के पहले पाठ में मूसा इस्राएलियों को याद दिलाते हैं कि हमारा ईश्वर एक अनोखा ईश्वर है। उन्होंने अपने सामर्थ्यपूर्ण कार्यों के द्वारा उन्हें मिस्र की गुलामी से छुडाया है। मूसा उनसे आग्रह करते है कि वे ईश्वर के प्रति ईमादार बने रहें।

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमें ईश्वरीय स्वरूप के बारे में अवगत कराते हैं। हम संत योहन के सुसमाचार अध्याय 14 वाक्य 10 में पढ़ते हैं, “मै पिता में हूँ और पिता मुझ में हैं।” प्रभु येसु जानते थे कि वह पिता ईश्वर के साथ एक हैं। उन्होने हमेशा अपने वचनों एवं कार्यो द्वारा पिता ईश्वर की महिमा को प्रकट किया है। हम इसी अध्याय में आगे पढ़ते है, “मैं जो शिक्षा देता हूँ, वह मेरी अपनी शिक्षा नहीं है। मुझ में निवास करने वाला पिता मेरे द्वारा अपने महान कार्य सम्पन्न करता है।” प्रभु येसु ने सदैव अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया। वे अपने मरण तक आज्ञाकारी बने रहे और पिता ईश्वर ने उन्हें महिमान्वित किया। हम सभी उसी महिमा में सहभागी होने के लिए बुलाये गये हैं। यदि हम ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करेंगे तो हम ईश्वर की इच्छा को जान कर अपने जीवन को उसके अनुरूप जी पायेंगे। संत योहन के सुसमाचार के अध्याय 15 वाक्य 10 में प्रभु येसु कहते हैं, “यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, तो मेरे प्रेम में दृढ़ बने रहोगे। मैंने भी अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया है और उसके प्रेम में दृढ़ बना रहता हूँ।”

आज के दूसरे पाठ में पौलुस हमें आत्मा की प्रेरणा से संचालित होने के लिए अनुरोध करते हैं। प्रभु येसु हमें पवित्र आत्मा प्रदान करने की प्रतिज्ञा करते हैं। हम सन्त योहन अध्याय 14 वाक्य 16 में पढ़ते हैं, “मैं पिता से प्रार्थना करूगाँ और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा।” पवित्र आत्मा हम में विद्यामान हैं। वह हमें मुक्ति का अनुभव कराता और हमारे जीवन का संचालन करता है।

मत्ती 28:18-19 में प्रभु येसु स्वर्ग वापस जाने से पहले अपने शिष्यों से कहते हैं, “मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।”

इस प्रकार प्रभु येसु अपनी शिक्षा से हमारे सामने यह प्रकट करते हैं कि ईश्वर एक हैं और उनमें तीन जन हैं – पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा। यह प्रेरितिक काल से ही कलीसिया का विश्वास रहा है।

पवित्र त्रित्व पारिवारिक जीवन का एक आदर्श नमूना है। वे अपने प्रेम में बंधे हुए हैं, अर्थात ये तीनों आपस में अन्तर्निहित हैं। उन्होने अपने अलग-अलग कार्यों द्वारा मुक्ति कार्य को संभव बनाया है। परिवार में हर एक सदस्य का अपना महत्वपूर्ण भूमिका रहता है। वे अपने पारिवारिक प्रार्थना तथा आपसी वार्तालाप के द्वारा एक दूसरे से जुडे रहते हैं। जिस परिवार में पारिवारिक प्रार्थना का अभाव है तथा आपसी वार्तालाप नहीं होता हैं, उस परिवार के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति मनमुटाव उत्पन्न होता हैं और परिवार टूट जाता हैं। हम सब एक परिवार के रूप में उस ईश्वरीय प्रेम में बुलाये गये हैं। हमारे बीच में किसी प्रकार के मनमुटाव न हो। हम एफेसियों के पत्र अध्याय 4 वाक्य 2 और 3 में पढ़ते है, “आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे का सहन करें और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।” इसलिए आईये, हम पवित्र त्रित्व से प्रार्थना करें कि हमारे बीच में, परिवार में एकता तथा सामंजस्य बना रहे ताकि हम एक सच्चे ख्रीस्तीय की भाँति अपना जीवन व्यतित कर सके। आमेन।