इसायाह 50: 4-7; फिलीप्पि 2: 6-11; मारकुस 14: 1-15: 47
एक बार एक पिता और उनका बेटा दोनों एक पहाड़ पर चड़ रहे थे। वह रास्ता बहुत खतरनाक और काँटों भरा था। चलते-चलते बेटे को थकावट लगा तो पिता ने उसको थोडे़ समय के लिए बिठाया। थोड़े समय के आराम के बाद वे चलने लगे। इस बार बेटे के पाँवों में काँटें घुस गये थे। इसलिए वो आगे चल नहीं पा रहा था। पिता उसे अपने कंधे पर बिठाकर चलने लगा। कुछ दूर चलने के बाद पिता भी थक गया तो वे आगे चल नहीं पाये। तब पिता ने अपने बेटे से कहा, ‘‘मैं आगे-आगे चलूँगा और मेरे पाँवों के निशान में अपना पाँव रख कर चलना, काँटें नहीं गड़ेंगे और दोनों नहीं थकेंगे। यह छोटी सी कहानी हमें पिता का प्यार एवं त्याग को समझाता है।
आज का यह दिन हमें उस महान ईश्वर के बारे में बताता है जिसने अपने लोगों को बहुत प्यार करने के कारण उसने अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया। (योहन 3:16) और वह पुत्र हमारे पापों की काँटों को अपने ऊपर लेते हुवे हमारे लिए स्वर्ग का मार्ग दिखाया। हर खजूर रविवार इस पिता का प्रेम और येसु के मुक्तिकार्य का शुरूवात है। और यह दिन येसु का दुःख, पीड़ा एवं कष्ट को याद दिलाता है।
आज का यह खजूर रविवार इस्राएलियों की अस्थिर मन को पेश करता है। जो लोग आज ‘‘होसन्ना! धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! धन्य है हमारे पिता दाऊद का आने वाला राज्य! सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना (मारकुस 11: 9-10) गाकर येसु को स्वीकार कर रहे हैं, वे कुछ ही दिनों में यह कहेंगे ‘‘इसे क्रूस दिया जाये’’ (मारकुस 15:13)। यह दो विपरीत घटनाएँ हमें प्रभु येसु का कहना याद दिलाते है जिसे येसु नबी इसायाह के ग्रन्थ से कहते हैं ‘‘ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी पूजा करते हैं, और ये जो शिक्षा देते हैं, वह है मनुष्यों के बनाए हुए नियम मात्र’’ (मत्ती 15:8-9)।
आज का यह दिन और यह जुलूस महायाजक और नेता, इस्राएलियों और येसु के लिए अलग-अलग मतलब देता है। महायाजक और नेताओं के लिए येसु का येरूसालेम में प्रवेश करना उनकी षड़यंत्र को पूरा करने का मौका था। इस्राएलियों के लिए खुशी एवं उल्लास का दिन था क्योंकि वे येसु को राजा मानते थे। जो दाऊद के राज्य को पुनः स्थापित करेगा। लेकिन प्रभु येसु के लिए यह उसका दुःख, पीड़ा और क्रूसमरण का प्रतिबिंब था। लोग येसु को पृथ्वी के राजा बनाना चाहते थे। लेकिन येसु का लक्ष्य था स्वर्गीय पिता की इच्छा को पूरा करना और अपने आपको बलि चढ़ाने के लिए तैयार करना। इस आत्मबलिदान के द्वारा वे हमारे मुक्तिदाता बन सकें। यह खजूर रविवार स्पष्ट करता है कि प्रभु येसु राजा हैं और उनका सिंहासन क्रूस है।
आज के पहले पाठ के द्वारा नबी इसायाह ईश्वर के सेवक के दुःख भोग का वर्णन करते हैं। दुःख भोगी दूसरों के पापों की क्षमा के लिए दुःख सहता है। उसने बिना किसी शिकायत या विरोध के सभी प्रकार के अभियोग, अत्याचार एवं यातनाएँ सहीं। आज का दूसरा पाठ प्रभु येसु के दासत्व के बारे में बताता है। प्रभु येसु ख्रीस्त स्वयं एक दुःखभोगी सेवक के प्रतिरूप हैं, जिन्होंने मानव रूप धारणकर अपने स्वर्गीय पिता की इच्छा के प्रति पूर्ण आज्ञाकारी बने रहे। ईश्वर के स्वरूप होते हुए उन्होंने दास का रूप स्वीकार किया और यहाँ तक कि क्रूस के मरण तक स्वयं को दीन-हीन बना लिया।
आज येसु हम सभों के लिए प्रभु, ईश्वर और राजा हैं। येसु का वैसे बनने का एक ही कारण था कि उसने अपने लिए नहीं, बल्कि हमारे पापों के कारण क्रूसमरण स्वीकार किया (रोमियो 5: 8)। जैसे माँ अपने बच्चे को गोद में लेती है, वैसे येसु ने क्रूस को अपनाया। उसे स्वीकारने में ही उनके जन्म का कारण पूर्ण होता है। उस दिन जब सैनिकों ने प्रभु को मारा, वे घायल हूये और उनका शरीर खून से भरकर विकृत हो गया था। वह देखने लायक नहीं थे। लेकिन आज उनका वह रक्त रंजित चेहरा एवं वे घाव हमारे लिए ईश्वर की असीम प्यार का चिन्ह और स्रोत है। येसु के लिए शरीर की सुन्दरा से बढ़कर आत्माओं की मुक्ति महत्वपूर्ण थी। इस लिए वे कहते हैं ‘‘उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते’’ (मती 10:28)।
हमें प्रभु येसु इस जुलूस में एक प्रशंसक या भक्त बनने नहीं बल्कि एक सच्चे अनुयायी बनने के लिए बुलाते हैं। येसु ने हमें भी अपने क्रूस ऊठाकर पीछे होने की आज्ञा दिया है। (मत्ती 16: 24-26) हमारे क्रूस और पापों को ऊठाकर येसु के पीछे चलना बहुत आसान है क्योंकि ऊठाने वाला हम नहीं बल्कि प्रभु येसु हैं जो हममें निवास करते हैं। येसु हमारे बोझ और पापों को अपनाते हुये उनका जूआ हमें देते हैं जो सहज और हल्का है (मत्ती 11: 29-30)।
आज का यह दिन ना सिर्फ हमें येसु के येरूसालेम में प्रवेश के बारे में बताता है, बल्कि यह दिन पुन्य सप्ताह एवं मुक्तिकार्य का शुरूवात है। आज से हम प्रभु येसु का पकड़वाना, बारी में प्राणपीड़ा, कोड़ों से मारा जाना, काँटों का मुकुट पहनाया जाना, हमारे लिए क्रूस ढ़ोना, हमारी मुक्ति के लिए अपना प्राण त्याग देना और मृत्यु से जी उठने की यादगारी मनाने जा रहे हैं। ईस सप्ताह का सारे कार्य क्रम सिर्फ हमारे प्रार्थनालय और मन में ही समाप्त नहीं होना चाहिये बल्कि येसु के मुक्तिकार्य को हमारे घरों, सड़कों, गलियों में ले जाना है, क्योंकि हमारे ईश्वर भटकी हुई भेड़, खोया हुआ सिक्का और ‘‘जो खो गया था, मानव पुत्र उसीको खोजने और बचाने आया है।’’ (मारकुस 19:10)। इस सप्ताह के धर्मविधियाँ अपने महत्व को खो जायेंगे अगर हम इसे गिरजाघरों और हमारे साथ ही सीमित रख देंगे तो।
जैसे हम खजूर की डालियों के साथ इस जुलूस में भाग लिये हैं, अपने आप से यह पूछें कि क्या मैं उन यहूदियों के समान प्रभु येसु को क्रूस पर चढ़ाने ले जा रहा हुँ या येसु का सच्चा अनुयायी होने के नाते अपना क्रूस उठाकर उनके पीछे चलकर उनके साथ दुःख सहकर उनके साथ मर कर पुनर्जीवन पाना चाहता हूँ? प्रभु ईश्वर हम सभों को अपनी आत्मा प्रदान करें कि इस सप्ताह की सारी धर्मविधियों में योग्य रीति से भाग ले सकें और येसु के साथ हम भी पुनर्जीवित हो सकें। आमेन।।