anil_hembrom

चक्र- ब – चालीसे का तीसरा रविवार

निर्गमन ग्रन्थ 20:1-17; 1कुरिन्थियों 1:22-25; संत योहन 2:13-25

ब्रदर अनिल हेम्ब्रम (मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयो और बहनो, चालीसा काल में हम प्रभु येसु के दुखभोग और मरण को याद करते हैं। प्रभु येसु ने हमारे पापों के लिये सूली पर अपने प्राण त्याग दिये। वह हमारे लिए पवित्रता का जीवन जीया, ताकि हम भी उनके समान पवित्र बन सकें।

आज के तीनों पाठ भी हमें अपने आप को पवित्र बनने के लिए आमंत्रित करते हैं। आज हम पवित्रता को अपनाने के लिए तीन बिन्दुओं पर मनन चितंन करेंगे।

पहला बिन्दु है- येरूसालेम।

वचन हमें बताता है, “यहूदियों का पास्का पर्व निकट आने पर येसु येरूसालेम गए” (संत योहन 2:13)। संत योहन के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि येसु तीन बार येरूसालेम गए। आज के सुसमाचार में जिस घटना का विवरण है, वह पहली बार है, जब येसु येरूसालेम गए। येरूसालेम को पवित्र नगर माना जाता है। इसे प्रभु ईश्वर का निवास स्थान भी कहा जाता है। जब हम ईश्वर के निवास स्थान में प्रवेश करते हैं, तो हमें, अपने आप को पवित्र करने की जरुरत है।

प्रभु येसु को पता था, कि पिता ईश्वर की योजना के अनुसार येरूसालेम में ही अपने जीवन का बलिदान चढ़ाया जाना था। वह ईश्वर का निर्दोष मेमना था। इन भावनाओं को ले कर ही येसु येरूसालेम की ओर जाते हैं। प्रभु येसु के दुखभोग और मरण में योग्य रीति से भाग लेने के लिए हमें अपने आप को पवित्र करना है।

दूसरा बिन्दु है – बाजार मत बनाओ।

बाजार लेन-देन की जगह है। हम अक्सर बाजार में देखते हैं, कि अनेक प्रकार के लोग आते हैं। उनके अलग-अलग उद्देश्य रहते हैं। सभी लोग एक ही उद्देश्य से नहीं आते हैं। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं, “मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ (संत योहन 2:16)।” प्रभु येसु चाहते हैं कि जब कभी हम पिता के घर जाते हैं, तो लेन-देन के उद्देश्य से नहीं, बल्कि, एक ही लक्ष्य के साथ जाना है, कि हम ईश्वर से मुलाकात करें और उनका अनुभव करें। स्त्रोतकार 34:6 में कहते हैं, “प्रभु की ओर दृष्टि लगाओ, आनंदित हो; तुम फिर कभी निराश नहीं होंगे।”

प्यारे भाइयो और बहनो, हमें पिता की ओर दृष्टि लगाना है, क्योंकि, वह पवित्र है, और हमें भी पवित्र करना चाहता है।

तीसरा बिन्दु है- मंदिर।

पुराने विधान में मंदिर वह जगह है, जहाँ बलि चढ़ाया जाता है, एवं ईश्वर की उपस्थिति प्रकट होती है। नये विधान में प्रभु येसु अपने शरीर को भी मंदिर कहते हैं। संत पौलुस भी कुरिन्थियों के नाम पहले पत्र 3:16 में कहते हैं, “क्या आप यह नहीं जानते, कि आप ईश्वर के मंदिर हैं, और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है?”

प्यारे भाइयो और बहनो, हमारा शरीर पवित्र आत्मा का निवास स्थान है। इसलिए, हमें अपने शरीर को स्वच्छ एवं पवित्र रखना है।

रोमियों के नाम पत्र 12:1 में संत पौलुस कहते हैं, “आप मन तथा हृदय से उसकी उपासना करें और एक जीवंत, पवित्र तथा सुग्राह्य बलि के रुप में अपने को ईश्वर के प्रति अर्पित करें।”

ईश्वर के नियम और कलीसिया के नियम हमें पवित्रता का जीवन जीने के लिए मदद करते हैं। आज के पहले पाठ में भी हम देखते हैं, कि इस्राएली जनता पापमय जीवन जी रहे थे और अन्य देवताओं की पूजा कर रहे थे। उनको पवित्र करने और उनको वापस लाने के लिए ईश्वर ने मूसा के द्वारा दस नियम दिये।

उत्पति ग्रंथ 1:27 में हम पढते हैं, “ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरुप बनाया।”

प्यारे विशवासियो, अभी फिर से हमें अपने आप को परख कर देखने की जरुरत है और अपने आप से पूछने की जरुरत है कि क्या हम ईश्वर के प्रतिरुप को बनाये रखने में सक्षम हो पाये हैं, उसे निष्कलंक रख पाये हैं।

तो आइये, हम प्रार्थना करें और बल माँगें, ताकि हम हर दिन पवित्रता के मार्ग पर बढ़ते रहें, पाप से दूर रहें और प्रभु येसु के प्यार में अपना जीवन यापन करें।