प्रवक्ता 27: 30-28:7; रोमियो 14:7-9; मत्ती 18:20-35
खीस्त में प्यारे विश्वसीगण।
पवित्र कलीसिया हमें किसी भी मुख्य त्यौहार को मनाने से पहले विशेषकर खीस्त जयन्ती और पास्का पर्व आदि की तैयारी हेतु अवसर प्रदान करती है। पास्का के पूर्व चालीसा काल ऐसी ही तैयारी का समय है। यह हमारे लिए ईश्वर की ओर लौट आने, बुरी आदतों को त्यागने तथा अपने हृदय को परिवर्तन करने का समय है। यह हमारे लिए प्रार्थना करने, त्याग, परिश्रम तथा पश्चताप करने का समय है। चालीसा का समय हमारे लिए आन्तरिक नवीनीकरण आत्मसंयम तथा आत्मसर्मपण का समय है। आज का पहला पाठ जल-प्रलय के तुरन्त बाद ईश्वर तथा नूह के मध्य हूए समझौते पर प्रकाश डालता है। जल प्रलय लोगों के पापों के प्रति ईश्वरीय दण्ड का एक मुख्य प्रतीक था। किन्तु ईश्वर ने एक दयालु पिता होने के कारण लोगों को छोड़ा नहीं। अर्थात उसने लोगों के साथ एक विधान की स्थापना की जो उसके प्रेम एवं निष्ठा को मुख्य रूप प्रकट करता है। यह एक विशेष प्रकार का समझौता है जो मनुष्य को उनकी ओर लौट आने की ईश्वर की उत्सुकता को दर्शाता है।
आज का सुसमाचार हमें, येसु के उन वचनों की याद दिलाता है जिन्हें येसु ने स्वंय अपने अपदेश में कहा था। मारकुस 4:45 “समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।” पापों से दूर रहना और ईश्वर के पास वापस लौटना ही खीस्त के प्रवचनों का सार है। प्रभु येसु ने ईश्वरीय राज्य का प्रचार किया तथा इसी राज्य हेतु हमें भी बुलावा दिया है।
पश्चताप का अर्थ है अपने मन और दिल को बदलना अर्थात संपूर्ण व्यक्तित्व को, जीवन को बदलना। हम हमारे पापों की वजह से ईश्वर से दूर हो गये हैं। इसलिये हमें मन परिवर्तन द्वारा उसके पास लौटना है। नबी इसायाह के ग्रंथ 1:18 में हम पढ़ते हैं “तुम्हारे पाप सिंदूर की तरह लाल क्यों न हो, वे हिम की तरह उज्जवल हो जायेंगे, वे किरमिज की तरह मठमैलें क्यों न हो, वे ऊन की तरह श्वेत हो जायेंगे।”
प्रभु के पश्चताप करने तथा स्वर्ग राज्य को अपनाने के निमंत्रण का यह तातपर्य है कि हम पाप से पीछे हटें तथा ईश्वर की ओर मुड़ें। प्रभु ईश्वर की ओर जाने का एकमात्र मार्ग है प्रभु येसु खीस्त। येसु स्वंय कहते है- “मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ मुझसे होकर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।”
इस चालीसा काल में आईये हम पापमय जीवन से पीछे हटें, प्रभु के पास आयें, उनके वचनों को सुनें, उनकी शिक्षा को अपनायें तथा पिता ईश्वर के समान पवित्र बनने का प्रयत्न करें।