प्रवक्ता ग्रंथ 3: 2-6; कलोसियों 3:12-21; लूकस 2: 22-40
आज हम नाज़रेत के पवित्र परिवार का पर्व मनाते हैं। यूसुफ, मरियम और येसु, यह पवित्र परिवार हमें अच्छे परिवार की परिभाषा अपने जीवन द्वारा सिखाते हैं। यह परिवार साधारण जीवन जीता था और अपने अच्छे कार्यों द्वारा ईश्वर के आशिष में बना रहता था। मत्ती के सुसमाचार में हम प्रभु येसु की वंशावली के पाते हैं। याकुब से मरियम का पति युसुफ और मरियम से ईसा उत्पन्न हुए जो मसीह कहलाते हैं। इन बातों से हमें नाज़रेत के पवित्र परिवार की जानकारी मिलती है।
ईश्वर के दस आज्ञाओं में चौथी आज्ञा है माता-पिता का आदर करना। ख्रीस्तीय लोगों का यह परम कर्तव्य है कि हम अपने माता-पिता के अधीन रहें जैसे येसु अपने माता-पिता के अधीन रहे, वे ईश्वर थे उन्हें अपने ईश्वरीयता का घमंड नहीं था। परंतु ईश्वर होकर वे इस दुनिया में अपने माता-पिता का आदर करते हैं और उनके अधीन रहने का उदाहरण हमें देते हैं। यह हम संत लूकस रचित सुसमाचार 2: 41-52 में देख सकते हैं। पुराने विधान में अगर हम विधि विवरण ग्रंथ 5:16 को पढ़ते हैं तो हमें माता-पित के आदर के बारे में शिक्षा मिलती है। प्रभु कहते हैं, “अपने माता-पिता का आदर करो, जैसा कि प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने तुम को आदेश दिया है। तब तुम बहुत दिनों तक उस भूमि पर जीते रहोगे, जिसे वह तुम्हें प्रदान करेगा”। जो कोई ईश्वर के वचन को मानकर अपने माता-पिता का आदर करता है उसे बहुत आशिष मिलती है और वह अपने जीवन में सफल रहता है। ईश्वर ने मरियम और युसुफ को महान कार्य के लिए चुना था और उन्होंने सहर्ष अपना पूर्ण योगदान दिया। लूकस के सुसमाचार 1: 26-33 में हम देखते हैं कैसे माता मरियम ने स्वर्गदूत के संदेश को अपनाया ताकि संसार को मुक्तिदाता मिले। उसी तरह युसुफ ने प्रभु के संदेश को सुनकर ईश्वर की योजना के अनुसार माता मरियम को अपनी पत्नि के रूप में अपनाया जिस विषय में हम मत्ती के सुसमाचार 1: 18-25 में पढ़ते हैं। इन दोनों के महान त्याग के द्वारा ईश्वर का कार्य परिपूर्णता तक पहूँचता है। माता मरियम और यूसुफ धार्मिक थे और यहुदियों की सभी परंपराओं को मानते थे और आज्ञाओं का पालन करते थे। प्रभु येसु भी अपने माता-पिता की तरह स्वर्गीय पिता के साथ आज्ञाकारी बने रहे और अपना पूर्ण जीवन संसार के मुक्ति के लिए क्रूस पर चढ़ाया। लूकस का सुसमाचार 22:42 ’’पिता यदि तू ऐसा चाहे, तो यह प्याला मुझसे हटा। फिर भी मेरी नही बल्कि तेरी ही ईच्छा पूरी हो।‘‘ इन सभी बातों से यह पता चलता है की यह पवित्र परिवार अपने जीवन में ईश्वर के प्रति आज्ञाकारी बने रहे।
नाज़रेथ का पवित्र परिवार काथलिक कलीसिया के लिए एक आदर्श है और उनके द्वारा हमें यह सीख मिलती है कि हम सही मार्ग पर चलें। अगर हमें अच्छे परिवार की नीव ड़ालनी है तो सबसे पहले हमें अपने जीवन को बदलना होगा और ईश्वर के नियमों पर चलना होगा। माता-पिता के अधीन ईश्वर की आज्ञा में बने रहना होगा। तब हमारा जीवन संपूर्णता तक पहुँच सकता है। इन सभी बातों को हमें अपने परिवार के सदस्यों को सिखाना होगा, क्योंकि विधिविवरण ग्रंथ में हम देखते हैं 6: 6-9 जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ तुम्हारे हृदय पर अंकित रहे। उन्हें अपने पुत्रों को अच्छी तरह सिखाओ। घर में बैठते या राह चलते, शम को लौटते यह सुबह उठते समय, उनकी चरचा किया करो। तुम उन्हें निषानी की तरह अपने हाथ पर और ताबीज़ की तरह अपने मस्तकपर बाँधे रखो और अपने घरों की चौखट पर अपने फाटकों पर लिखो। इस तरह हम पूर्णता से ईष्वर के आज्ञाओं में बने रहेंगे।
इन सभी आज्ञाओं को हम अपने जीवन में लागू करते है और ईश्वर की आज्ञा में रहते है तो एक पवित्र परिवार का निर्माण हो सकता है जैसे माता मरियम, युसुफ और येसु ने अपने जीवन काल में ईश्वर की योजना को स्वीकार किया और ईश्वर के आज्ञाकारी बने रहे। उत्तपत्ति ग्रंथ 49: 22-26 में हम देखते हैं कि प्रभु कहता है, “तुम्हारे पिता का ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा और सर्वशक्तिमान ईश्वर तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करेगा और आकाश के वरदान तुम्हें प्राप्त होंगे”। अच्छे और पवित्र परिवार का निर्माण हमारे हाथों में है। जब हम हमारे माता पिता का आदर करेंगे तो आने वाली पीढ़ी भी सीखकर उसे आगे की पीढ़ीयों को सिखायेंगे।