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चक्र- ब – पास्का इतवार - जागरण

उत्पत्ति 1:1-2:2; उत्पत्ति 22:1-18; निर्गमन 14:15-15-1; इसायाह 54:5-14; इसायाह 55:1-11; बारूक 3:9-15,32:4-4; एजे़किएल 36:16-28; रोमियों 6:3-11; मत्ती 28:1-10

ब्रदर पारसिंह डामोर (उदयपूर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में भाइयो और बहनो, आज आपको एक रहस्यमय बात के बारे में बताता हूँ - संसार में जन्म लेना और मरना निश्चित है। मरने के बाद हम जहां से आते हैं, उसमें मिल जाते हैं। उत्पत्ति ग्रंथ अध्याय 2:7 में पढ़ते हैं प्रभु ने धरती की मिट्टी से मनुष्य को गढ़ा और उसके नथन में प्राणवायु फ़ुक दी। इस प्रकार मनुष्य एक सजीव सत्व बन गया।“ आगे हम उपदेशक ग्रंथ अध्याय 12:7 में पढ़ते हैं “उस समय से पहले जब मिट्टी उस पृथ्वी में मिल जाएगी जहां से वह आई है और आत्मा ईश्वर के पास लौट जाएगी जिसने उसे भेजा है।” मृत्यु पर हमारे जीवन का अंत नहीं होता, बल्कि हम अनंत जीवन प्राप्त करते हैं।

आज हम प्रभु के पुनरुत्थान का त्योहार मना रहे हैं। तो आइए, हम पुनरुत्थान के बारे में और पुनर्जीवित के बारे में थोड़ा मनन चिंतन करते हैं। हम योहन के सुसमाचार, अध्याय 11 में पढ़ते हैं कि प्रभु येसु ने लाजरूस को उसकी मृत्यु के चार दिन बाद मृतकों में से जिलाया। हम लूकस 7:11-17 में देखते हैं कि प्रभु ने नाईन की विधवा के एकलौते बेटे को जीवनदान दिया। मत्ती 9:18-24 में हम देखते हैं प्रभु येसु ने जैरुस की बेटी को भी जीवन्दान दिया। ये सब लोग मर गए थे। उनको वापस प्रभु के द्वारा जीवनदान मिला और वे इस सांसारिक जीवन में वापस आए। वे हमारे समान इस संसार में आगे जीने लगे। कुछ सालों बाद वे फिर से मर गए। उसे हम पुनरुत्थान नहीं कह सकते हैं। लेकिन प्रभु येसु जी उठने के बाद इस सांसारिक जीवन में वापस नहीं आये। जो त्यौहार आज हम मना रहे हैं वह पुनर्जीवन का त्यौहार नहीं, बल्कि पुनरुत्थान का त्यौहार है, क्योंकि प्रभु जी उठने के बाद वापस नहीं मरे। वह हमारे साथ जीवित है। वह मानव रूपी शरीर में नहीं बल्कि आत्मिक रूप से हमारे साथ है।

कुरिंथियों के नाम पहले पत्र अध्याय 15:35-38 में संत पौलुस लिखते हैं, “"मृतक कैसे जी उठते हैं? वे कौन-सा शरीर ले कर आते हैं?" अरे मूर्ख! तू जो बोता है, वह जब तक नहीं मरता तब तक उस में जीवन नहीं आ जाता। तू जो बोता है, वह बाद में उगने वाला पौधा नहीं, बल्कि निरा दाना है, चाहे वह गेहूँ का हो या दूसरे प्रकार का। ईश्वर अपनी इच्छा के अनुसार उसे शरीर प्रदान करता है।”

संत मत्ती, अध्याय 22:29-30 में हम पढ़ते हैं ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम लोग न तो धर्मग्रन्थ जानते हो और न ईश्वर का सामर्थ्य, इसलिए भ्रम में पडे़ हुए हो। पुनरुत्थान में न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं, बल्कि वे स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं। प्रभु हमें बताते है की मरने के बाद हम सब स्वर्गदूतों के समान हो जायेंगे और अनंत जीवन प्राप्त करेंगे।

प्रभु येसु मृतकों में से जी उठ कर हमारे पास अलग-अलग रूपों में आते हैं। वे अलग-अलग प्रकार से हमे दर्शन देते है। हम योहन अध्याय 20:15 में पढ़ते हैं कि प्रभु ने मरियम को एक माली के रूप में दर्शन दिया। लूकस 24 में हम देखते हैं कि एम्माउस जाने वाले दो शिष्यों को प्रभु येसु एक यात्री के रूप में दर्शन देते हैं।

उसी प्रकार प्रभु आज भी हमें दर्शन देते है, पर हमें उनको पहचानने की जरूरत है और उनमें विश्वास करना है कि वही हमारा मुक्तिदता है।

अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे और आपको क्या करना चाहिए? हम सब को प्रभु येसु में विश्वास करना है। योहन अध्याय 11:25-26 में प्रभु कहते हैं, “पुनरूत्थान और जीवन में हूँ जो मुझमें विश्वास करता है, वह मरने पर भी जीवित रहेगा और जो मुझमें में विश्वास करता हुआ जीता है, वह कभी नहीं मरेगा।” विश्वास करने का तात्पर्य यह है कि हमें सच्चे हृदय से पश्चाताप करते हुए अपने जीवन को उनको वचनों के अनुसार जीना है क्योंकि प्रभु स्वयं कहते हैं सत लूकस के अध्याय 13:3 में, “यदि तुम पश्चाताप नहीं करोगे तो सब के सब नष्ट हो जाओगे”।

भाइयों और बहनों विश्वासियों के लिए मृत्यु जीवन का विनाश नहीं बल्कि जीवन का विकास है इसलिए हमें संसार की इन बातों को छोड़ स्वर्ग की ओर दृष्टि लगाकर अनंत जीवन पाने के लिए निरंतर प्रार्थना करते रहना चाहिए। हमें दुनिया की मोह-माया में न गिर कर यहाँ समय रहते स्वर्ग में अनश्वर पूँजी जमा कर अनंत जीवन के लिए तैयारियाँ करनी चाहिए। प्रभु हमें इसके लिए योग्य और सक्षम बनायें।