Masih_Das

चक्र- ब – पास्का का पाँचवाँ इतवार

प्रेरित चरित 9: 26–31; 1 योहन 3: 18–24; योहन 15: 1–8

ब्रदर मसीहदास कुजूर (अंबिकापूर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में मेरे प्यारे भाईयो और बहनो, हमारा इस दुनियां में आने का एक ही मकसद है - अच्छा फल उत्पन्न करना। आज के सुसमाचार के अनुसार, जब हम येसु ख्रीस्त में बने रहेंगे, तब हम अच्छा फल भी उत्पन्न कर सकते हैं। हमें येसु ख्रीस्त में कैसे बने रहना है, इसका जिक्र आज के सुसमाचार में दाखलता और डाली का सुंदर उदाहरण देकर किया गया है। सुसमाचार के पहले वाक्य में प्रभु का वचन कहता है," मैं सच्ची दाखलता हूँ और मेरा पिता बागवान है"। अर्थात यहाँ पर येसु अपने और पिता के बीच के संबंध के बारे में बताते हैं, क्योंकि येसु इस पृथ्वी पर रहते समय अपने पिता की सभी आज्ञाओं का पालन कर तथा उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण कर अपने पिता में बना रहा। जैसे कि योहन के सुसमाचार 4: 34 में प्रभु का वचन कहता है, "जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है”। येसु हम से भी यही चाहते हैं कि जिस प्रकार वह अपने पिता की सभी आज्ञाओं का पालन कर तथा उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण कर अपने पिता में बना रहा, उसी तरह हम भी येसु के बताये हुए मार्गों पर चल कर उनकी इच्छाओं को पहचान सकें तथा उन्हें पूर्ण करने का प्रयत्न करते रहे।

इसी प्रकार आगे प्रभु का वचन कहता है कि तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूंगा। यहाँ पर येसु ने ऐसा क्यों कहा कि तुम मुझमें रहो और मैं तुम में रहूंगा। वे तो इस प्रकार भी कह सकते थे कि तुम मेरे पास रहो या तुम मेरे साथ रहो। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा कि तुम में रहना या मुझमें रहने का अर्थ पास रहना या साथ रहने से अधिक गहरा है, दाखलता और डाली इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, क्योंकि प्रभु का वचन कहता है कि जिस प्रकार दाखलता में रहे बिना डाली स्वयं नहीं फल सकती उसी तरह तुम मुझसे अलग रह कर नहीं फल सकते। येसु में बने रहने का अर्थ है कि उसके सभी गुणों को अपने जीवन में अपनाना।

ख्रीस्त में प्रिय भाईयो और बहनो, अब हमारे मन में यह प्रश्न उठता है कि हमें येसु ख्रीस्त में बने रहने के लिए क्या करना चाहिए। इसका उत्तर हमें दूसरे पाठ में मिलता है। योहन के पहले पत्र अध्याय 3:23,24 में प्रभु का वचन कहता है, "हम उसके पुत्र ईसा मसीह के नाम में विश्वास करें और एक दूसरे को प्यार करें जैसा कि मसीह ने हमें आदेश दिया। जो ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उसमें"। ईश्वर हर एक के हृदय में निवास करता है, लेकिन हम उसकी उपस्थिति का अनुभव नहीं कर पाते हैं, क्योंकि कई बार हम अपने प्रतिदिन के जीवन में दुनियां की चिन्ताओं में व्यस्त रहते हैं। कई बार हम छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करते हैं, एक दूसरे से बैर, मन मुटाव और बदले की भावना रखते हैं। बुरी चीजें हमें येसु में बने रहने से रोकती हैं। आज येसु हमें निमंत्रण देते हैं कि हम अपने जीवन में उसकी इच्छा को जानने का प्रयास करें, और उसके अनंत प्रेम और शांति और उसकी उपस्थिति का अनुभव कर सकें।