प्रेरित-चरित्र 3:13-15, 17-19; 1योहन 2:1-5; लूकस 24: 35-48
प्रभु येसु आज के सुसमाचार में अपने शिष्यों को दो महत्वपूर्ण शिक्षा देते हैं। पहला, वह इस संसार में आने का उदेश्य समझाता है। दूसरा, पश्चात्ताप का उपदेश देने के लिए निर्देश देते हैं। प्रभु येसु के मरने के बाद उसके शिष्य लोगो भयभीत हो जाते हैं। उनका विश्वास कमजोर हो जाता है क्योकि वे धर्मग्रन्थ को समझ नहीं पाए। तब येसु उनके बीच आकर उन्हे धर्मग्रन्थ का मर्म समझाते हैं। लूकस 24:45-46 में हम पढ़ते हैं, “तब उन्होने उनके मन का अन्धकार दूर करते हुए उन्हें धर्मग्रन्थ का मर्म समझाया और उनसे कहा, ऐसा ही लिखा है कि मसीह दुःख भोगेंगे, तीसरे दिन मृतकों में से जी उठेंगे।” योहन 3:14-15 में हम पढ़ते हैं, “जिस तरह मूसा ने मरूभूमि में सापँ को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव पुत्र को भी ऊपर उठाया जाना है, जिससे जो उस में विश्वास करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे। ईश्वर का शब्द ने हमारे बीच में जन्म लिया ताकि हम सब अनन्त जीवन प्राप्त करें। हम अपने आप से पूछें कि हमारा विश्वास अपने दुःख में, कठिनाईयों में एवं कमजोरियों में कितना दृढ़ हैं?
शिष्य लोग प्रभु येसु के निर्देश के अनुसार पश्चात्ताप का उपदेश देना शुरू करते हैं। लूकस 24:47 में लिखा है, “उनके नाम पर येरूसलेम से लेकर सभी राष्टों को पाप क्षमा के लिए पश्चात्ताप का उपदेश दिया जायेगा।” पेत्रुस ने प्रभु येसु को तीन बार अस्विकार किया था, लेकिन उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और पश्चात्ताप किया। वह अभी लोगो से आग्रह करता है कि वे भी अपने पापो के लिए पश्चात्ताप करें और ईश्वर के प्रेम को अनुभव करें। प्रेरित-चरित्र 3:19 में हम पढ़ते हैं, “आप लोग पश्चात्ताप करें और ईश्वर के पास लौट आयें, जिससे आपके पाप मिट जायें।” इसलिए प्रभु के पास आने के लिए हमें पश्चात्ताप करना चाहिए। हमारा प्रभु मनुष्य कि तरह गलतियाँ नहीं देखता हैं परन्तु वह हमारे हृदय को देखता है। सामुएल 15: 7 में हम पढ़ते है, “मनुष्य तो बाहरी रंग-रूप देखता है किन्तु प्रभु हृदय देखता है।”
अभी हमारे मन में एक प्रश्न उठता है कि हमें पश्चात्ताप क्यों करना चाहिए? इसके बहुत-से कारण हैं। पहला, प्रभु के राज्य में आने के लिए हमें पश्चात्ताप करना अनिवार्य है। प्रभु येसु अपने उपदेश को इस प्रकार प्रारम्भ करते है। संत मारकुस 1:15 में पवित्र वचन कहता है, “ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चात्ताप करो।” और योहन बपतिस्ता भी यही कहते है संत मत्ती 3:2 में हम पढ़ते हैं, “पश्चात्ताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।”
दूसरा, अगर कोई पापी पश्चात्ताप करत, तो पुरे स्वर्गराज्य में दूतगण आनन्द मनाते हैं। संत लूकस 15:7 में हम पढ़ते हैं, “एक पश्चात्तापी पापी के लिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जायेगा।” संत लुकस 15:10 कहता है, “ईश्वर के दूत एक पश्चात्तापी पापी के लिए आनन्द मनाते है।”
तीसरा, पश्चात्ताप करने से हम हर विपत्ति से बच सकते है। क्योंकि हम योना के ग्रन्थ में पढ़ते हैं कि ईश्वर निन्नवे के लोगों पर अधिक क्रुद्ध थे। प्रभु उन लोगों पर इसलिए क्रुद्ध थे क्योंकि वे सब के सब पापमय जीवन जी रहे थे। परन्तु जब योना ने आकर उन्हें पश्चात्ताप करने के लिए समझाया तो लोगों ने पश्चात्ताप किया और अपने बुरे रास्ते को छोड़ दिये। ईश्वर ने उन पर विपत्ति को आने नहीं दिया।
हमें केवल पश्चात्ताप करना काफी नहीं है, हमें उनके द्वारा दी गयी आज्ञाओं को पालन करना भी चाहिए। संत योहन अपने पहले पत्र में कहते हैं कि जो उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता और कहता है कि वह ईश्वर को जनता है, वह झूठा है।
इसलिए विशेषकर आज हम ईश्वर से अपने पापों के लिए क्षमा मागें और उनकी आज्ञाओं का पालन करने का निर्णय लें। आमेन।