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चक्र- ब – पास्का काल का दूसरा इतवार

प्रेरित-चरित 4:32-35; 1 योहन 5: 1-6; योहन 20: 19-31

ब्रदर आशिष मेड़ा (झाबुआ धर्मप्रान्त)


"तुम्हे शान्ति मिले" ।

ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाईयों और बहनो, आज के पवित्र सुसमाचार में हमने सुना, "जब शिष्य यहूदियो के भय से द्वार बन्द किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आ कर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम्हे शान्ति मिले"। (योहन 20:19) इस वाक्य पर आज हम मनन करेंगे- कभी-कभी हम अपने जीवन में निराश या हताश होकर एवं कोई तनाव लेकर बैठे रहते हैं। ऐसी निराशाजनक परिस्थिति में कोई ऐसा व्यक्ति हमारे पास आता है, जो हमारी भावनाओं को समझता है, वह हमें आश्वासन देते हुए कहने लगता हैं, “घबराइए मत! मैं आप के साथ हूँ।” ऐसे शब्द सुनकर हम अपने जीवन में साहस एवं बल का अनुभव करते हैं। हमारे मन में खुशी उमड़ पड़ती है।

ठीक उसी तरह जब प्रभु ने अपने शिष्यों से कहा, “तुम्हे शान्ति मिले” तो उनके मन में जो डर और भय था वो सब दूर हो गया, और वे आनंद एंव खुशी से भर गये, जैसा कि सुसमाचार में कहा गया है, "प्रभु को देखकर शिष्य आनंदित हो उठे" (योहन 20:20)। येसु के साथ उनकी इस मुलाकात ने उन्हें साहस एवं आत्मविश्वास से भर दिया। संत मारकुस के सुसमाचार, अध्याय 4 वाक्य 35-39 तक में कहा गया है, "एक दिन येसु अपने शिष्यों के साथ नाव में बैठकर गनेसेरेथ जा रहे थे। दिन भर के उपदेश देने के पश्चात वे थककर नाव में सो गये। उस समय एकाएक आँधी उठी और नाव पानी में डूबने लगी। तब शिष्यों ने येसु को जगाया और कहा, "गुरूवर! हम डूब रहे हैं। क्या आपको इसकी कोई चिन्ता नहीं? वे जाग गये और उन्होंने वायु को डाँटा और समुद्र से कहा, "शान्त हो! थम जा!” वायु मन्द हो गयी और पूर्ण शान्ति छा गयी।

यदि हम अपने जीवन में वास्तविक शान्ति, आनन्द एवं खुशी का अनुभव करना चाहेंगे, तो हमें येसु का अपने दिल में स्वागत करना है। क्योंकि वे शान्ति के राजा हैं। वही हमारा जीवन एवं शान्ति हैं। येसु ने स्वयं कहा है, "मैं तुम्हारे लिए शान्ति छोड जाता हूँ"। (योहन 14:27) प्रभु येसु अपने शिष्यों को भी संत मत्ती के सुसमाचार, अध्याय 10 वाक्य 12-13 में कहते हैं, "उस घर में प्रवेश करते समय उसे शान्ति की आशिष दो। यदि वह घर योग्य होगा, तो तुम्हारी शान्ति उस पर उतरेगी। यदि वह घर योग्य नहीं होगा, तो तुम्हारी शान्ति तुम्हारे पास लौट आयेगी।”

जब हम प्रभु से दूर चले जाते है, तब हम प्रभु से जुडे हुए नहीं रहते है, हम अधिक उलझनों में फँस जाते हैं, अनावश्यक चिन्ता लेकर अपने जीवन में अशान्ति का अनुभव करते हैं। परन्तु जब हम प्रभु में जुडे रहते हैं तो हम अपने जीवन में प्रभु की शान्ति का अनुभव करते हैं, एवं ईश्वर तथा पड़ोसियों के साथ हमारा गहरा सम्बन्ध बना रहता है। जिस तरह शिष्य एक समूह में एकत्रित थे, तब येसु ने उन्हे दर्शन दिया, ठीक उसी तरह आज हम भी एक परिवार के समान इस रविवारीय समारोह में येसु के नाम पर उनकी शान्ति का अनुभव प्राप्त करने के लिए एकत्र हुए है। आइये हम आज के यूख्रीसतीय समारोह में विशेष रूप से प्रार्थना करें कि हम प्रभु येसु की शान्ति का अपने जीवन में पूर्ण रूप से अनुभव करने के लिए लालायित रहें तथा उनकी शान्ति को दूसरों तक फैलाने का प्रयत्न करें।