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चक्र- ब – आगमन का तीसरा इतवार

इसायाह 61:1-2,10-11, 1थेसलनीकियों 5:16-24; योहन 1:6-8,19-28

ब्रदर अतिस भुमिज मुंडा (आई.एम.एस)


खीस्त में प्रिय भाइयो और बहनो! संत योहन रचित सुसमाचार 1:6-8,19-28 में हम योहन बपतिस्ता के विषय में सुनते हैं। वचन कहता है 'ईश्वर का भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ। वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।

योहन का साक्ष्य बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। कई लोगों ने उनका उपदेश और चेतावनी सुन कर अपना बुरा मार्ग छोड़ दिया। कई लोगो ने उनके द्वारा पाश्चाताप का बपतिस्मा स्वीकार किया।

येसु कहते हैं, “मुझे किसी मनुष्य के साक्ष्य की आवश्यकता नहीं”। फिर भी यदि हम योहन बपतिस्ता के जीवन को देखें तो हमें पता चलता कि उनका हर एक वचन और हर एक कदम येसु के विषय में साक्ष्य देता है यहां तक कि उन्हें साक्ष्य देने के लिए अपनी जान गवानी पड़ी। इसलिए येसु योहन बपतिस्ता को सम्बोधित करते हुए कहते हैं, "यह वही है जिसके विषय में लिखा है देखो मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेजता हूँ, वह तुम्हारे आगे तुम्हार मार्ग तैयार करेगा। मैं तुम लोगों से कहता हूँ मनुष्य में बोहन बपतिस्ता से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ।" (मतीः 11:11)

योहन बपतिस्ता जिस तरह अपने विश्वास, वचन और कार्यों द्वारा ईश्वर का दूत बनकर साक्षी जीवन जी कर अपना सर्वस्व उनकी सेवा में अर्पित कर दिया, सुसमाचार हमें योहन के उन्हीं गुणों को अपना कर एक साक्षी जीवन जीते हुए. ईश्वर का दूत बनने का आह्वान करता है।

'हम सभी खीस्तीय कहलाते हैं और हम जानते हैं कि खीस्तीय जीवन एक मिशन है बिना मिशन के खीस्तीय जीवन व्यर्थ है। जब याजकों और लेवियों ने योहन बपतिस्ता से पूछा कि आप अपने विषय में क्या कहते है ? तो उन्होंने उत्तर दिया. “मैं हूँ जैसा कि नबी इसायस ने कहा- निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज - प्रभु का मार्ग तैयार करो।“ उन्होंने अपना नाम नहीं बल्कि अपना मिशन, अपना काम बताया। इसलिए सुसमाचार हमें इस बात पर भी विचार करने के लिए आमंत्रित करता है कि हमारी पहचान और परिचय केवल हमारे नाम से नहीं बल्कि उससे भी ज्यादा हमारे काम से, हमारे मिशन से होना चाहिए।

संत मती 5:16 मैं वचन कहता है, “तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें”। हमारे भले कामों से स्वर्गिक पिता की महिमा होती है। कर्मों के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। संत याकूब के पत्र 2:17 में वचन कहता है, “कर्मों के अभाव में विश्वास पूर्ण रूप से निर्जीव है”। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हम कह सकते हैं कि हम खीस्तीय है या हम विश्वास करते हैं; इसलिए हमारा स्वर्ग जाना निश्चित है। क्योंकि विश्वास तो दुष्ट आत्मा भी करते हैं,(याकूब के पत्र 2:19) पर अपने बुरे कर्मों के कारण वे स्वर्ग का दावा नहीं कर सकते।

हम खीस्तीयों के लिए हमारी कथनी ही काफी नहीं है; भले आचरण अच्छे कार्य, व सेवा भाव भी बहुत मायने रखते हैं।

योहन 5:34 में प्रभु येसु कहते हैं" मुझे जो साक्ष्य प्राप्त हैं, वह योहन के साक्ष्य से भी महान है। पिता ने जो कार्य मुझे पूरा करने को सौंपे है, जो कार्य मैं करता हूँ, वही मेरे विषय में यह साक्ष्य देते हैं कि पिता ने मुझे भेजा है। हाँ, हमारे कार्य ही हमारे खीस्तीय जीवन के बड़े साक्ष्य है। आइये हम अग्रदूत बन कर मिशन कार्यों द्वारा साक्षी बन जायें जिससे ईश्वर के राज्य की स्थापना हो सके।

दूसरी बात यह है कि हमें अपने ही बढ़ाई और नाम के लिए कार्य नहीं करना है। प्रभु येसु के कार्यों को ही आगे बढ़ाना है क्योंकि हम उनके नाम पर चुने और बुलाये गये है। उनसे अलग रह कर हम कुछ भी नहीं कर सकते। अगर हम उनके बिना कोई कार्य करेंगे तो हम सफल नहीं हो सकते। स्तोत्र 127:1 में वचन कहता है- यदि प्रभु ही घर नहीं बनायें तो राजमिस्त्रियाँ का श्रम व्यर्थ है। यदि प्रभु ही नगर की रक्षा न करें, तो पहरेदार व्यर्थ जागते है।

इसलिए प्रभु के साथ उनकी महिमा के लिए उनके कार्यों को करना है जिसका वर्णन नबी इसायस के ग्रंथ 61 :1-3 में हैं- " प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है क्योंकि उसने मेरा अभिषेक कि किया है। उसने मुझे भेजा है कि मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊं, दुखियों को ढ़ारस बँधाऊ और बन्दियों को छुटकारे का, और कैदियों को मुक्ति का संदेश सुनाऊँ, प्रभु के अनुग्रह का वर्ष और ईश्वर के प्रतिशोध का दिन घोषित करूँ, विलाप करने वालों को सान्त्वना दूँ, राख के बदले उन्हें मुकुट पहनाऊं, शोक वस्त्रों के बदले उन्हें आनन्द का तेल प्रदान करूँ और निराशा के बदले स्तुति का चादर ओढाऊं।"

हां हम सभी खीस्तियों का जीवन एक मिशन है। पिता ईश्वर का मिशन जिसे येसु ने इस संसार में रह कर हमें सिखाया है कि हम भी जो उनके अनुयायी कहलाते है ऐसा ही करें। इसलिए प्यारे भाइयो और बहनो, हम दृढ़ तथा अटल बने रहें और यह जान कर कि प्रभु के लिए हमारा परिश्रम व्यर्थ नहीं है, हम निरन्तर प्रभु का कार्य करते रहें। हम ईश्वर के मिशन के लिए अपना योगदान दे जिससे सभी लोग हमारे द्वारा किये गये ईश्वर के भले कार्यों के द्वारा विश्वास करें।