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चक्र- ब – आगमन का दूसरा रविवार

इसायाह 40:1.5, 9-11; 2 पेत्रुस 3:8-14; मारकुस 1:1-8

ब्रदर अमित भूरिया, (झाबुआ धर्मप्रान्त)


आज का सुसमाचार प्रभु येसु के आगमन के पूर्व उनके अग्रदूत द्वारा की गई तैयारी के बारे में बताता है। यहाँ अग्रदूत ईश्वर द्वारा मनुष्य के हृदयों को उसके पुत्र येसु ख्रीस्त के स्वागत की तैयारी हेतु भेजा गया। प्रिय भाईयों एवं बहनों, हम यहाँ किसी अन्य के विषय में नहीं, बल्कि सन्त योहन बपतिस्ता के विषय में चर्चा कर रहे हैं, जो प्रभु येसु के मार्ग तैयार करने के लिये भेजे गये। उन्होंने पाप-क्षमा के लिये पश्चाताप के बपतिस्मा का उपदेश दिया तथा येसु को स्वीकारने हेतु लोगों को तैयार किया। सुसमाचार के साथ-साथ आज के अन्य पाठ भी इसी तथ्य पर बल देते हैं।

हम देखते हैं कि इन पाठों में तीन संदेशवाहक तीन प्रकार के समाज के लोगों को प्रभु को स्वीकारने के लिये तैयार करते हैं। पहले पाठ में नबी इसायाह निर्वासित लोगों को, दूसरे पाठ में संत पेत्रुस खीस्तीय समुदाय को, तथा तीसरे पाठ में सन्त योहन बपतिस्ता येरुसालेम, सारी यहूदिया और समस्त यर्दन प्रान्त के लोगों को सम्बोधित करते हैं। (देखिए मत्ती 3:5)

नबी इसायाह निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज के बारे में कहते हैं, “निर्जन प्रदेश में प्रभु का मार्ग तैयार करो। हमारे ईश्वर के लिये टेढ़े-मेढ़े रास्ते सीधे कर दो।“ यहाँ नबी इसायाह उस सांसारिक मार्ग के विषय में नहीं कहते हैं, जो घाटी-पहाड़ों व समतल जमीन से होकर बनाया गया है, बल्कि उस आध्यात्मिक मार्ग के विषय में कहते हैं, जो मनुष्यों के हृदयों में बनाया गया है। मनुष्य का हृदय ईश्वर को त्यागने के कारण मरुस्थल जैसा बन गया था। इसका तात्पर्य है कि उन्हें घमण्ड को त्यागना है तथा ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना है। उनका निर्वासन एवं दुःख तकलीफ ईश्वर के प्रति उनकी आज्ञाभंग का परिणाम था। यहाँ नबी लोगों को ढारस बँधाते हुये कहते हैं कि उनकी विपत्ति के दिन समाप्त हो गये हैं। अब प्रभु उन्हें दासता से मुक्त कर वापस उनके देश में लौटाने हेतु आ रहा है।

ईश्वर सचमुच में, लोगों को उनकी दुर्दशा से मुक्त करना चाहता था, लेकिन उन्हें भी अपने हृदय को खोलकर प्रभु के पास आना था। नबी इसायाह की भविष्यवाणी तब पूर्ण हुई, जब यहूदियों को निर्वासन से वापस लाया गया। यहूदियों के निर्वासन से वापस लाना मानवजाति के पाप से मुक्ति का एक प्रतीक है जिसे प्रभु येसु ने अपने क्रूसमरण द्वारा संभव बनाया।

आज के सुसमाचार में योहन बपतिस्ता येसु के आगमन की घोषणा ठीक वैसे ही करते हैं, जैसे कि नबी इसायाह ने ईश्वर के विषय में किया था। यहाँ येसु किसी एक देश या किसी विशेष समुदाय के लोगों को बचाने हेतु नहीं, वरन् सारी मानवजाति को पाप की दासता से मुक्त करने के लिये आये । सन्त योहन बपतिस्ता एक अग्रदूत की भाँति अपने मसीह के लिये मार्ग तैयार करने आये नबी इसायाह की भाँति योहन बपतिस्ता ने भी आध्यात्मिक तैयारी के विषय में उपदेश दिया। उन्होंने पापक्षमा के लिये पश्चाताप के बपतिस्मा की घोषणा की। जल का बपतिस्मा पवित्र आत्मा के बपतिस्मा की तैयारी हेतु था। इसलिये योहन बपतिस्ता कहते हैं, 'मैंने तुम लोगों को जल से बपतिस्मा दिया है। वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।" मार यहाँ योहन बपतिस्ता प्रभु के मार्ग तैयार करने वाले के रूप में प्रकट होते हैं। आज के दूसरे पाठ में सन्त पत्रुस कहते हैं, प्रभु अपनी प्रतिज्ञाएँ पूरी करने में विलम्ब नहीं करता, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं किन्तु वह आप लोगों के प्रति सहनशील है और यह चाहता है कि किसी का सर्वनाश नहीं हो, बल्कि सब के सब पश्चात्ताप करें। (2 पेत्रुस 3:9) हमें ईश्वर की सहनशीलता को नाममात्र के लिये नहीं समझना चाहिए। हमें अपने जीवन को गंभीरता से लेना चाहिये तथा प्रभु से मिलने के लिये स्वयं को योग्य रीति से तैयार करना चाहिये। बहुतों ने सन्त योहन बपतिस्ता के पश्चाताप के उपदेश की ओर ध्यान नहीं दिया। इसलिये वे येसु द्वारा लाये गये मुक्ति के अनुभव से वंचित हो गये। अतः हमें पवित्र हृदय एवं शुद्ध मन से येसु को स्वीकारना है।

खीस्त हर दिन, हर क्षण हमारे जीवन में आते हैं। आगमन काल के दौरान हमें सचेत होकर येसु को स्वीकारने हेतु तैयार करना है। पाप येसु को हमारे जीवन में प्रवेश करने में बाधक बनता है। इसलिये आगमन की तैयारी हमें पश्चाताप के रूप में करनी चाहिये, अर्थात् हमें पाप तथा पापमय जीवन से दूर रहना चाहिये। जैसे योहन बपतिस्ता ने लोगों को पश्चाताप हेतु उपदेश दिया वैसे ही कलीसिया भी आज हमें उपवास एवं परहेज द्वारा अपने पापों पर पश्चाताप करने का आह्वान करती है।

यदि हम ईश्वर की ओर मुड़ते तथा सच्चे हृदय से पश्चाताप करते हैं तो हम इस संसार में ईश्वरीय सत्य की स्थापना कर सकते हैं। अनैक्यता, द्वेष, घृणा, अन्याय, घमण्ड आदि ऊँची पहाड़ियों को हमें अपने जीवन में समतल बनाना है। येसु को स्वीकारने हेतु हमें विनम्र तथा ईमानदार बनना है। योहन बपतिस्ता, जिन्होंने प्रभु के लिये मार्ग तैयार करने तथा हर टेढ़े-मेढ़े मार्ग को सीधा करने का संदेश दिया हमारे लिये एक आदर्श हैं। धर्मग्रन्थ का पठन प्रार्थना, सेवा कार्य, उपवास तथा मिस्सा बलिदान आदि द्वारा स्वयं को हम प्रभु को स्वीकारने हेतु तैयार कर सकते हैं। पवित्र मिस्सा बलिदान हमें अपने आप में सुधार लाने तथा पापमय जीवन को बदलने हेतु कृपा तथा साहस प्रदान करता है। इसलिये आइये, हम एक परिवार के रूप में प्रभु से मिलने की तैयारी हेतु उन से कृपा प्राप्त करें।