tamilarasan

चक्र- ब – सामान्य काल का तैंतीसवाँ रविवार

दानिएल 12:1-3; इब्रानियों 10:11-12,18; मारकुस 13:24-32

ब्रदर तमिलअरसन पॉलदास (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


सावधान रहना आवश्यक है।

ख्रीस्त में प्रिय भाईयो एवं बहनो!

हम सब ख्रीस्तीय विश्वासी होने के नाते पुनरूथान में विश्वास करते हैं और प्रभु के पुनरागमन की प्रतिक्षा करते हैं। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने पुनरागमन पर होने वाली विभिन्न घटनाओं तथा प्रकट होने वाले चिन्हों के बारे बताते हुए हमें सावधान रहने के लिए चेतावनी देते हैं। प्रभु येसु के कथन से हमें यह मालूम होता है कि उन दिनों विनाश के दृष्य दिखाई देंगे। प्रभु का यह कहने का उद्देश्य यह नहीं है कि हम घबरा जायें या उदास और हताश हो जायें, बल्कि समय के लक्षणों को पहचान कर प्रभु से मिलने के लिए हम तत्पर हो जायें।

इस विषय में प्रभु हमें संकेत करते हुए बताते हैं, “जब तुम लोग यह सब देखोगे, तो जान लो कि वह निकट है, द्वार पर ही है।” (मारकुस13:29) समय या काल के लक्षणों को पढ़ना, समझना एवं पहचानना हमारे जीवनचर्या में एक अत्यावश्यक अंग हैं। उदाहरण के लिए, हमारे दैनिक जीवन में हम अक्सर अनुभव करते हैं कि कोई भी व्यक्ति, जब किसी बिमारी का लक्षण पहचान लेता है तो वह अविलंब चैकस हो जाता है और इलाज का इंतजाम करता है। इतना तक कि जब तक वह पूर्ण रूप से रोगमुक्त न हो जाता, तब तक सतर्क और सावधान रहता है। यह इसलिए संम्भव है कि समय का लक्षण पहचानने तथा उसके अनुकूल व्यवहार करने की क्षमता मानव में है। आज के सुसमाचार द्वारा इस क्षमता को जगाने और सतर्क बने रहने के लिए प्रभु हमें प्रेरित करते हैं।

पवित्र ग्रंथ के पुराने विधान में हमें इस्राएल प्रजा के बारे में पढ़ने को मिलता है जो प्रतिज्ञात मसीह के आगमन के लिए सदियों से इंतजार कर रही थी। वे प्रतिक्षा कर ही रहे थे परन्तु जब मानव पुत्र वास्तव में संसार में आये, उन्होंने अपने आध्यात्मिक अंधापन के कारण उन्हें पहचान नहीं पाये। उनके दीर्घकालिक इंतजार और धार्मिक साधना उनकी सहायता नहीं कर पाये क्योंकि वे प्रभु के आगमन काल के लक्षणों को पहचानने में असमर्थ थे और प्रभु को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। आज यह स्थिति हमारी भी हैं क्योंकि हम प्रभ के पुनरागमन की प्रतिक्षा कर रहे हैं। इस संर्दभ में प्रभु हमें यह प्रेरणा दे रहे हैं कि हमें जागृत रहने की आवश्यकता है ताकि जब वे महिमा के साथ आयेंगे तब हम उनके उपस्थिति में योग्य पाये जायेंगे।

अब यह प्रश्न उठता है कि ‘क्यों हम सतर्क रहें? या ‘सावधान रहने का लाभ क्या है?’

इस प्रश्न के उत्तर समझने के लिए हमारे जीवन के उद्देश्य को जानना उचित है। संत पौलुस 2 कुरि. 5:1 में कहते हैं, “जब यह तम्बू, पृथ्वी पर हमारा यह घर, गिरा दिया जायेगा, तो हमें ईश्वर द्वारा निर्मित एक निवास मिलेगा। वह एक ऐसा घर है, जो हाथ का बना नहीं है और अनन्त काल तक स्वर्ग में बना रहेगा।”। वे कहते हैं कि स्वर्ग ही हमारा असली मंजिल है। इस संसार में हमारा निवास चिरस्थायी नहीं है; वह केवल क्षणिक है। इसलिए हमारा आचरण स्वर्गिक महिमा के अनुकूल रहना चाहिए।

आज का पहला पाठ भी हमें पुनरूथान के दिन के विषय में सुचित करता है जिस दिन हम सब ईश्वर के न्यायासन के सामने एकत्रित किये जायेंगे। दानियल 12:2 हमें बताता है, “जो लोग पृथ्वी की मिट्टी में सोये हुए थे, वे बड़ी संख्या में जाग जायेंगे, कुछ अनन्त जीवन के लिए और कुछ अनन्त काल तिरस्कृत और कलंकित होने के लिए।” प्रभु येसु भी मारकुस 13:32 में कहते हैं, “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता।” आगे वाक्य 33 में वे कहते हैं, “सावधान रहो। जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आयेगा।” प्रभु के यह चेतावनी देने का मतलब यह है कि हम सब मुक्ति पा सकें।

प्रिय विश्वासियो! मानव होने के नाते हम अपना जीवन अपने मन-मर्जी जीते हैं। कभी-कभी अपने कर्म के परिणाम ईश्वर के लिए अनुपयुक्त और अप्रिय हो जाते हैं। हमें यह बात हमेशा याद रखना चाहिये कि हम सब अपने-अपने कर्म के अनुसार न्याय किये जायेंगे। हमारी मुक्ति ईश्वर और मनुष्यों के प्रति हमारे कर्तव्य तथा व्यवहार पर आधारित है। इस बात को प्रभु स्पष्ट रूप से कहते हैं, “न्याय के दिन मनुष्यों को अपनी हर निकम्मी बात का लेखा देना पड़ेगा, क्योंकि तुम अपनी ही बातों से निर्दोष या दोषी ठहराये जाओगे।” (मत्ती 12:36-37) इसलिए हमें सावधान रहना है और उस दिन के लिए धार्मिकता एवं भरोसे के साथ प्रतिक्षा करना है जिस दिन हम प्रभु के सामने योग्य ठहराये जायेंगे।

मित्रो! वर्तमान काल में सांसारिक जीवन बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण है। आज के संदर्भ में समाज में जो नतिजा हम देखते हैं वो सच्चा धार्मिक जीवन के लिए बाधा खडा कर देता है। हमारी दुर्बलता के कारण हम भी मुसीबत में पड़ जाते हैं; बुरी आदतों की लत, अनैतिक चाल-चलन, सांसारिक प्रलोभन जैसे मोह-माया के जाल में फस जाते हैं। इस कारण अपने सह मनुष्यों के प्रति हमारी उदासीनता की भावना बढ़ती है। इस प्रकार की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में हमें दृढ़ भरोसा एवं धैर्य के साथ जीवन में आगे बढ़ना हैं। समय के परिणाम की सही पहचान कर अपने धार्मिक जीवन द्वारा मानव-मुक्ति कार्य में ईश्वर का साथ देना हमारा कर्तव्य बनता है।

आईये सावधान रहने के लिए आवश्यक ज्ञान एवं सदबुद्धी प्राप्त होने हेतु हम पिता ईश्वर से याचना करें ताकि हम अपने अच्छे कर्म-फलों द्वारा स्वर्गिक पुरस्कार पाने योग्य पाये जायें। प्रभु हमें प्रचुर मात्रा में आशिष प्रदान करें।