1राजाओं 17:10-16; इब्रानियो 9:24-28; मार्कुस 12:38-44
ख्रीस्त में मेरे प्यारे भाइयो और बहनो, आज के पाठों से हमें पता चलता है कि ईश्वर अपनी दृष्टि सदा गरीबों व बेसहारों पर बनाए रखता है। वह उनके हर एक छोटे से छोटे पुण्य कार्य पर नज़र रखता है। आज के पाठों का सारांश हम तोबीत के ग्रंथ 4:8 में देखते हैं, जहाँ तोबीत अपने पुत्र तोबियाह से कहता है, “अपनी सम्पत्ति के अनुसार दान दोगे। यदि तुम्हारे पास बहुत हो, तो अधिक दोगे; यदि तुम्हारे पास कम हो, तो कम देने में नहीं हिचकोगे।”। हम पहले पाठ में देखते हैं कि ईश्वर एलियाह को एक ऐसी विधवा स्त्री के पास भेजता है जिसके पास मुश्किल से एक समय का खाना था जिसका सेवन करने के बाद वह और उसका पुत्र शायद मर जाते। फिर भी नबी एलियाह उसे एक रोटी लाने के लिए बोलते हैं। वह विश्वास के साथ उन्हें खाने के लिए एक रोटी लाती है और इसके बाद वह अपने जीवन में एक अद्भुत चमत्कार देखती है- ना तो उसके बर्तन से आटा खत्म होता है और ना कुप्पी से तेल। क्योंकि ईश्वर सदा अपनी सहृदय दान करने वाले का ध्यान रखता है।
आज के सुसमाचार में हम यह पाते हैं कि एक कंगाल विधवा अपनी जीविका को ही दानपात्र में डाल देती है। प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि खजाने में पैसे डालने वालों में से इस विधवा ने सबसे अधिक डाला है। मैं दो तीन बिंदुओं के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि येसु ने इस कंगाल विधवा की प्रशंसा क्यों की होगी।
पहला बिंदु, आज के सुसमाचार में हमने सुना कि बहुत से धनी बहुत दे रहे थे। हमने अक्सर देखा है की लोग जब कोई बड़ा दान करते हैं तो वे अपनी प्रशंसा भी चाहते हैं। सुसमाचार में भी वे अमीर लोग शास्त्री भी हो सकते हैं जो विधवाओं की संपत्ति चट कर जाते थे। अगर कोई लूटी हुई संपत्ति से दान करता है तो इससे उन्हें क्या लाभ।
दूसरा बिंदु, मत्ती 6:8 मे वचन कहता है, “जब तुम दान देते हो तो तुम्हारा बायां हाथ यहाँ ना जाने पाए कि तुम्हारा दायां हाथ क्या कर रहा है”। इसलिए प्रिय भाइयो और बहनो, ईश्वर के लिए दान की राशि महत्वपूर्ण नहीं होती, बल्कि देने वाले का हृदय महत्वपूर्ण होता है। ईश्वर को हमारा सबसे अच्छा चढ़ावा वही लगता है जो हम त्याग और प्रेम से देते हैं। हमने आज के पाठों की दोनों स्त्रियों को अपनी दरिद्रता, कंगालीता में दान करते हुए सुना है।
प्रिय भाइयो और बहनो, आज का सुसमाचार हमें यही याद दिलाता है कि सच्चा धर्म बाहरी दिखावट के बारे में नहीं, बल्कि विनम्रता, ईमानदारी, सेवा और प्रेम के बारे में है। तोबीत के ग्रंथ 4:8 तोबीत अपने पुत्र तोबियस से कहते हैं, “यदि तुम्हारे पास कम हो तो कम दान देने में नहीं हिचकोगे”। हमारे जीवन में सदा उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसका मतलब यह तो नहीं है कि हम ईश्वर और जरूरतमंदों की सेवा-सत्कार में अपना योगदान देना बंद कर दें। संत पौलुस 2 कुरून्थियों 9:7 में कहते हैं, “ईश्वर प्रसन्नता से देने वालों को प्यार करता है”।
इसीलिए गरीबों और बेसहारों की बेझिझक सेवा सत्कार को हमें बढ़ावा देना है। जैसा कि लिखा है “तुम्हारा दान गुप्त रहे और तुम्हारा पिता, जो सब कुछ देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।” (मती 6:4)।