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चक्र- ब – सामान्य काल का तीसवाँ रविवार

यिरमियाह 31:7-9; इब्रानियों 5:1-6; मारकुस 10:46-52

ब्रदर राजेश गणावा (झाबुआ धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाईयों एवं बहनों, आज के सुसमाचार में हमने सुना जब अंधे भिखारी को पता चला कि येसु उसके पास से गुजर रहे हैं तो वह पुकार-पुकार कर कहने लगा, “ईसा दाऊद के पुत्र मुझ पर दया कीजिए” (मारकुस 10:47) उस अंन्धे व्यक्ति की पुकार, येसु मसीह पर उसके अटूट विश्वास को दर्शाती है। येसु उसके अटूट विश्वास से प्रभावित हुए। उन्होंने दया और सहानुभूति प्रकट करते हुए उस व्यक्ति से पूछा, “क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” यह सुन कर वह खुशी से उछल पडा और बोला, “गुरूवर मैं फिर से देख सकूँ”। येसु ने उसे शारीरिक तथा आंतरिक दृष्टि प्रदान की ताकि वह ईश्वर के अच्छे कार्यो को देख सके।

हमारे जीवन में भी हम अपने विश्वास की कमी के कारण अंधे बन जाते हैं और येसु के कार्यो को देख नहीं पाते हैं। अंधे व्यक्ति से हमें एक महान शिक्षा मिलती है। अंधा होते हुए भी उसने वहाँ उपस्थित लोगो की अपेक्षा येसु की महानता को जल्दी पहचाना। हम अपने जीवन की संसारिक चिंताओं में व्यस्त रहने के कारण येसु को, जो हर वक्त हमारे समाने गुजरते रहते है, पहचानने में हम असमर्थ रह जाते हैं।

येसु हमारे पास अपने भाई-बहन के रूप में आते हैं। जब हम अपने भाईयों एवं बहनों का स्वागत या उनकी मदद करते हैं तो हम वास्तव में येसु का स्वागत करते हैं क्योंकि येसु ने स्वयं मत्ती के सुसमाचार 25:40 में कहा हैं, “तुमने मेरे इन भाईयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया।”

हमारे दैनिक जीवन में ऐसे कई अवसर आते हैं जब हम दूसरों की सहायता करते हैं, जैसे एक गरीब व्यक्ति की सहायता करना या एक अनाथ बच्चे को प्रेम तथा सुरक्षा प्रदान करना। जब हम दूसरों की सहायता करते हैं, तब येसु हमारे जीवन में आकर हमारे आध्यात्मिक अंधेपन को चंगा करते हैं। येसु सदैव हमारे निकट रहता है किन्तु हम सांसारिक कारोबार में इतने व्यस्त रहते हैं कि हम अपने जीवन में ईश्वरीय कृपा की आवश्यकता का अनुभव नहीं कर पाते हैं। येसु ख्रीस्त निरंतर हमारे जीवन में कार्यरत हैं परन्तु कभी-कभी हम इन कार्यों के प्रति अंधे बन जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में हमें याद रखना चाहिए कि हमें ईश्वर से ही कई प्रकार के वरदान मिले हैं। इसलिए हमारा कर्त्तव्य है कि हम उसे इनके लिए धन्यवाद दें।

प्यारे भाईयो एवं बहनो, हम ईश्वर का नाम लेकर पूर्ण विश्वास के साथ उसे माँगेंगे तो वह हमे जरूर प्रदान करेगा। जैसा कि येसु स्वयं योहन के सुसमाचार 14:13 कहते हैं, “तुम मेरा नाम लेकर जो कुछ माँगोगे, मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा।” जब उस अंधे व्यक्ति ने येसु से मिलने का निश्चय किया, तो कोई भी व्यक्ति उसे ऐसा करने से रोक नहीं सका। जब हम अपने में अवरोधों एवं विरोधों का सामना करते हैं तब हमें भी उस अंधे व्यक्ति के जैसे मनोभाव अपनाना चाहिए। जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें कई मुसीबतों का सामना करना पडे़गा। अगर येसु हमारे साथ है तो कोई भी मुसीबत हमारे लिए बाधक नहीं बन सकती। इसलिए संत पौलुस कहते है, “यदि ईश्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे विरूद्ध होगा।” (रोमियो 8:31)

जब येसु ने उस अंधे व्यक्ति को चंगा करने के लिए बुलाया तब उसे येसु तक पहुँचाने के लिए किसी के सहारे की जरूरत थी, जो उसे येसु के पास ले जा सके। उसी प्रकार हमें भी एक मार्गदर्शक की आवश्यकता है, जो हमे स्वार्थ, घृणा तथा लालचरूपी अंधत्व से येसु की ओर ले चले। कलीसिया के नियम, सभी संस्कार, इन सब से बढ़कर पवित्र बाईबिल हमारे लिए मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। इसी तरह हमें भी एक दूसरे का मार्गदर्शक बनना है। दूसरों को येसु तक ले जाने के लिए सर्वप्रथम हममें उनके प्रति विश्वास होना चाहिए। यही विश्वास हमें येसु की ओर ले चलने के लिए मार्ग दिखाता है। परन्तु हमारा विश्वास येसु में कितना गहरा है, यह हमें जानना चाहिए। अगर येसु में हमारा विश्वास तथा भरोसा उस अंधे व्यक्ति के जैसे दृढ़ है तो हम अपने आध्यात्मिक अंधेपन से चंगे होकर अपने उद्देश्य तक पहुँच सकते हैं।

आइये हम इस युखारिस्तीय समारोह में भाग लेते समय येसु से उस अंधे व्यक्ति के समान कहें, “हे येसु दाऊद के पुत्र, हमें स्वंय को पहचाने की कृपा दीजिए।” हम येसु ख्रीस्त से कृपा माँगें कि वे हमारी आँखे खोल दें ताकि हम दूसरों की अच्छाईयाँ देख सकें और जो अंधकार में हैं, उन्हें येसु की ओर ले जा सकें।