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चक्र- ब – सामान्य काल का छब्बीसवाँ रविवार

गणना ग्रन्थ 11:25-29; याकूब 5:1-6; मारकुस 9:38-43, 45, 47-48

ब्रदर बास्कर मत्तियास (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाईयों एवं बहनो!

आज के बाईबिल पाठों में बहुत उत्साहपूर्ण संदेश हमें सीखने के लिए मिलता है। आज का पहला पाठ और सुसमाचार एक प्रकार की दो घटनाओं का वर्णन करते हैं। पहले पाठ में, जो कि गणना ग्रन्थ 11:25-29 से लिया गया है, हमें मूसा के समय घटित एक घटना के बारे में पढ़ने को मिलता है। एक बार जब मूसा ने लोगों को दर्शन कक्ष के आसपास एकत्र किया था जब केवल दो व्यक्ति जो दर्षन कक्ष में नहीं आये थे, दिव्य प्रेरणा का अनुभव पाकर भविष्यवाणी करने लगे। इससे योशुआ ने अप्रसन्न होकर मूसा से उन्हें रोकने के लिए अनुरोध किया। किन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “अच्छा यही होता कि प्रभु सब को प्रेरणा प्रदान करता और प्रभु की सारी प्रजा भविष्यवाणी करती।” (गणना 11:29)

इसी तरह आज का सुसमाचार मारकुस 9:38-48 में भी हम पढ़ते हैं कि योहन, जो प्रभु येसु के शिष्यों में एक है, प्रभु के पास आकर किसी के बारे में शिकायत करने लगता है कि वे प्रभु के नाम ले कर अपदूतों को निकाल रहें हैं। योहन ने यह बात इसलिए कहा कि वे शिष्यों के समूह के नहीं थे। परंतु प्रभु येसु का विचार तो अलग ही था। उसने उत्तर दिया, “उसे मत रोको; क्योंकि कोई ऐसा नहीं, जो मेरा नाम ले कर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निन्दा करे। जो हमारे विरूध्द नहीं है, वह हमारे साथ ही है।” (मारकुस 9:39-40)

इन दोनों घटनाओं से हमें दो महत्वपूर्ण बातें समझने के लिए मिलती है।

पहला- ईश्वर के दृष्टी में सब लोग महिमा या प्रगती प्राप्त करने के योग्य हैं। जब ईश्वर चाहता है वह किसी को भी प्रेरणा देने के लिए समर्थ है। जो भी व्यक्ति चाहे वह भले ही बाहरी धार्मिक कार्यो से दूर क्यों न हो यदि वह ईश्वर की इच्छानुसार चलता है तो प्रभु की आशिष भरपूर मात्रा में उसे मिलता है। प्रभु किसी को भी अपना वरदान दे सकता है। उनके दृष्टि से कोई भी वंचित नहीं है।

दूसरा- वे लोग भले कार्य करने के बावजूद दूसरों के ईर्ष्या और लज्जा के कारण बने। हम अपने दैनिक जीवन में भी यह अनुभव करते हैं कि कभी-कभी दूसरों की भलाई पर ईर्ष्या करने और उन्हें किसी भी तरह से रोकने की विचार करते हैं क्योंकि हमें उनका मानव गुण ही नज़र आता है, न कि उनकी मनोभाव। मगर प्रभु सबके अन्तरतम को ही देखता और चाहता है।

जब कोई भी औरों को भले कार्य करने से रोकता है, वह उसके लिए पाप का कारण बनता है और उसके लिए बाधा बनता है। लेकिन इस विषय में प्रभु हमें चेतावनी देते हुए मारकुस 9:42 में बताते है, “जो इन विश्वास करने वाले नन्हों में किसी एक के लिए भी पाप का कारण बनता है उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और वह समुद्र में फेंक दिया जाता।” इसका अर्थ यह है कि जब हम अपनी धार्मिकता को बड़ा मान कर दूसरों को तुच्छ समझते हैं या उन्हें अच्छे कार्य करने से रोकते हैं तो हम भी पाप करते हैं और स्वंय ईश्वरीय मार्ग से बिछुड जाते हैं।

इस बात को हमें समझाने के लिए प्रभु चक्की का पाट के उदाहरण लेते हैं। यदि कोई व्यक्ति चक्की के पाट के साथ बाँध दिया जाये और समुद्र में फेंका जायें तो वह गहराई में डूब जायेगा और वह असानी से निकल नहीं पायेगा। इस प्रकार हम भी जब अपनी धार्मिक घमण्ड में दूसरों के कार्यों के प्रति लज्जा दिखाते हैं या नफरत करते हैं तो हमारी भी यही स्थिति हो सकती है। इस कारण ईश्वर के साथ हमारा रिश्ता टूट जायेगा और दूरी भी बड़ जायेगी और हम उनके पास वापस लौटनें में असमर्थ हो जाते हैं।

आज के दूसरे पाठ (याकूब 5:1-5) में याकूब भी धनियों को चेतावनी देते हुए बताते है कि इस संसार की धन-दौलत और संपति पर गर्व करना व्यर्थ है। सांसारिक संपति हमें भलाई करने से रोकती है बल्कि घमण्ड तथा पाप का कारण बनाती है। ईश्वर पर हमारा भरोसा और मनुष्यों के प्रति अपनी दयाभाव के कर्म ही एक सच्चे अनुयायी का परिचय है।

प्यारे विश्वासियों! हम प्रभु की आवाज ध्यान से सुनें। हम अपने प्रेम और विश्वास भरे जीवन द्वारा सबकी उन्नती के लिए कार्य करें। हम स्वंय अपने को पाप से सुरक्षित रखें और औरों के लिए पाप का कारण न बनें। हमारा व्यवहार और आचरण ईश्वर पर आधारित हो और अत्याधिक आशीर्वाद एवं कृपाओं से भरा हो।