प्रवक्ता 27: 30-28:7; रोमियो 14:7-9; मत्ती 18:20-35
खीस्त में प्यारे विश्वसीगण।
आज के पाठ मुख्यत: पहला पाठ और सुसमाचार क्षमा करने की आवश्यकता के विषय में बताते हैं। पहले पाठ की शिक्षा पवित्र सुसमाचार की शिक्षा के बहुत पास है। आज का पहला पाठ हमें क्षमा करने की प्रेरणा देते हुए कहता है कि जो अपने पड़ोसी से बैर रखता या दया नहीं करता, वह प्रभु से अपने पापों की क्षमा प्राप्त करने की उम्मीद नहीं कर सकता है। इस प्रकार आज का पहला पाठ दूसरों को माफी प्रदान करने की आवश्यकता को उजागर करता है।
पवित्र सुसमाचार उसी बात पर स्पष्ट रूप से जोर देता है। येसु सिखाते हैं कि क्षमा की कोई सीमा नहीं होती है। एक दृष्टांत द्वारा वे हमें बताते हैं कि जिस तरह ईश्वर हमें क्षमा करते हैं, उसी तरह हमें भी दूसरों को माफ करना चाहिए। संत मत्ती 18:21 में हम देखते हैं कि संत पेत्रुस येसु से पूछते हैं कि यदि मेरा भाई मेरे विरूद्ध अपराध करता जाये तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ। जवाब में प्रभु येसु कहते हैं कि मैं तुम से नहीं कहता सात बार तक बल्कि सत्तर गुणा सात बार तक। उनका तात्पर्य है, कि क्षमा करने की कोई सीमा नहीं है।
सुसमाचार मुख्य रूप से वही कहता है। हमें हर समय हर स्थिति में दूसरों को माफ करना चाहिए। यदि हम बाईबिल को सावधानी से पढ़ेंगे तो हम अपने जीवन में सभों को क्षमा करने का महत्व समझेंगे। हम कह सकते हैं कि क्षमा धर्मग्रंथ का एक मुख्य विषय है। येसु ने उन लोगों को भी क्षमा किया जिन्होंने उन्हें सताया, उन पर अत्याचार किया। संत लूकस के सुसमाचार मे हम पढ़ते हैं 23:34 में कि येसु ने उनके लिए प्रार्थना की और कहा ”हे पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्याे कर रहे है।”
प्रेरित चरित में भी हम इस तरह देखते है 7:60 में संत स्तेफनुस प्रथम शहीद ने उन लोगों को माफ किया जिन्होंने उन्हें पत्थरों से मार डाला और कहा, “प्रभु! इन पर यह पाप न लगा।”
इस प्रकार पवित्र बाईबल हमारे सामने एक ऐसे ईश्वर को प्रस्तुत करता है जो दयामय, प्रेममय और क्षमाशील है। हम इस क्षमा का अनुभव तभी कर सकेंगे जब हम एक दूसरे को क्षमा करने के लिए तैयार होंगे। हम सब जानते हैं कि ईश्वर नें हमारे पापों को क्षमा कर दिया है। इसलिए हमें भी दूसरों को क्षमा करना चाहिए।
येसु हमें बताते हैं कि क्षमा प्राप्त कनें का सबसे आसान उपाय उदारता पूर्वक दूसरों को क्षमा करना है। इसलिए ’हे पिता हमारे’ प्रार्थना म हम कहते हैं “हमारे अपराध क्षमा कर जैसे हम भी अपने अपराधियों को क्षमा करते हैं।”
प्रिय भाईयो और बहनो, ईश्वर से यही कृपा और आशिष माँगें ताकि हम एक दूसरों ' विनम्रतापूर्ण और उदारतापूर्वक क्ष्मा कर सकें जिससे हमें भी प्रभु से क्षमा प्राप्त हो।