Manish_Khadiya

चक्र- अ – बाईसवाँ सामान्य इतवार

विधि-विवरण 4:1-2,6-8; याकूब 1:17-18,21-22,27; मारकुस 7:1-8,14-15,21-23

ब्रदर मनीश खड़िया (झाबुआ धर्मप्रान्त)


आंतरिक और बाहरी शुद्धता

हम बाइबिल में देखते हैं कि शास्त्री और फरीसी लोग ईश्वर द्वारा दिए सभी नियमों का पालन करने का दावा करते हैं, परंतु कुछ महत्वपूर्ण नियमों को अनदेखा कर देते हैं। इसलिए प्रभु येसु सदैव उनकी आलोचना करते हैं। फरीसीयों को डर था कि येसु के कारण समाज में उनका अनादर हो, इसलिए वे प्रभु येसु में गलतियां ढूंढते रहते हैं और प्रभु येसु को फँसाने के अवसर की तलाश करते रहते हैं।

हम आज के सुसमाचार में फरीसीयों के ऐसे ही कार्य तथा येसु द्वारा उनके उन कार्यों की बड़ी आलोचना के बारे में सुनते हैं। शास्त्री और फरिसी लोग नियमों का पालन कर बाह्य तौर पर नियमों का पालनकर्ता होने का परिचय देते हैं, लेकिन नियमों का मूल अर्थ समझने में वे पूर्णतः असमर्थ थे। उन्हें अपनी मानवीय परंपराओं तथा नियमों के कठोर पालन पर गर्व था।

आज के सुसमाचार में हम संत मारकुस 7:5 में सुनते हैं कि प्रभु येसु के कुछ शिष्यों द्वारा पारंपरिक नियमों को तोड़ने पर फरीसियों ने उनकी आलोचना करते हुए उनसे पूछा "आपके शिष्य पुरखों की परंपरा के अनुसार क्यों नहीं चलते हैं, वे क्यों अशुद्ध हाथों से रोटी खाते हैं"। तभी येसु इस अवसर का लाभ उठाते हुए उनकी पाखंडता को सबके सामने लाते हैं और उन्हें आज्ञाओं का सही अर्थ समझाने का प्रयास करते हैं।

प्रभु येसु फरीसियों के मनोभावों की तुलना नबी इसायह के ग्रंथ 29:13 के इस वचन से करते हुए कहते हैं, “यह लोग केवल शब्दों द्वारा मेरे पास आते हैं, उनके होंठ मेरी महिमा करते हैं, किंतु इनका हृदय मुझसे दूर है।” मती के सुसमाचार 23:28 में प्रभु येसु फरिसियों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि तुम बाहर से लोग बहुत धार्मिक दिख पड़ते हो, किंतु भीतर से तुम पाखंड और अधर्म से भरे हुए हो।

हम मती के सुसमाचार, अध्याय 23 में सुनते हैं कि प्रभु शास्त्रीयों और फरीसीयों को कितनी बार ढोंगी कह कर संबोधित करते हैं, क्योंकि वे नियमों तथा परंपराओं का पालन अपने उद्देश्य तथा स्वयं की प्रशंसा हेतु करते थे। वे नियमों का पालन ईश्वर को प्रसन्न करने हेतु नहीं, बल्कि दूसरों को दिखाने तथा उनसे प्रशंसा पाने के लिए करते थे।

1 समुएल 16:7 में हम पढ़ते हैं कि मनुष्य तो बाहरी रूप रंग देता है, किंतु प्रभु हदय देखता है। इसलिए प्रभु आज हमें शास्त्रीयों की तरह नियमों का पालन करने नहीं, बल्कि एक सच्चे हृदय से ईश्वर के नियमों का पालन करने के लिए आग्रह करते हैं। हम लोग बार-बार गिरजा घर जाते, प्रतिदिन प्रार्थना करते, बाइबिल पढ़ते, यहां तक कि समयानुसार प्रार्थना करते हैं। ये सभी कार्य मनुष्य को भला नहीं बनाते हैं। अगर हम यह सभी कार्य आंतरिक मन से करते हैं तो ईश्वर की दृष्टि में भले कार्य हैं। क्योंकि हमने 1 समुएल 16 :7 में पढ़ा कि प्रभु हृदय देखता है कि वह मनुष्य किस उद्देश्य से भले कार्य कर रहा है।

तो प्रश्न यह उठता है कि हमारा हृदय ईश्वर और अपने पड़ोसी के प्रति कैसा है। यदि हमारे हृदय में शत्रुता, कटुता, घमंड और मनमुटाव आदि हैं तो हमारा कोई भी भला कार्य हमें ईश्वर के समीप नहीं ले जा सकता। क्योंकि हम मति 5:8 में सुनते हैं, “धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है वे ईश्वर के दर्शन करेंगे”।

आज के सुसमाचार के दूसरे भाग में प्रभु येसु हमारे लिए शुद्ध और अशुद्ध की व्याख्या करते हैं। वह संत मारकुस 7:15 में कहते हैं, "ऐसा कुछ भी नहीं है जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सकें, बल्कि जो मनुष्य में से निकलता है वही उसे अशुद्ध करता है।" प्रभु येसु हमें इस बात पर जोर देखकर कहते हैं कि जो हमारे हृदय से निकलता है, वह हमें अशुद्ध करता है। क्योंकि हम जानते हैं कि कुछ भी बाहरी चीज हमारे हृदय में प्रवेश कर अपवित्र नहीं करती है। आगे सुसमाचार में हम सुनते हैं, बुरे विचार हमेशा हृदय से निकलते हैं जैसे-चोरी, हत्या, झूठी निंदा, लोभ, परगमन इत्यादि। यह सभी हमारे मन से निकलकर हमें अशुद्ध करते हैं। इसलिए प्रभु येसु आज हमें अपनी शिक्षा के द्वारा धर्म के बाहरी दिखावे से मुक्त करना चाहते हैं।

तो प्रिय प्यारे भाइयों और बहनों जरा हमारे हृदय को टटोल कर देखें कि हम भी शास्त्रीयों के समान दिखावा तो नहीं कर रहे हैं, या हम भी हमारा काम सिर्फ दिखावे के लिए करते हैं। अगर हमारा हृदय फरिसियों से मेल करता है तो प्रभु से हमारे हृदय की शुद्धता के लिए प्रार्थना करें। ईश्वर हमें आशीष दे।।।। आमेन।।।