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चक्र- ब – सामान्य काल का बीसवाँ रविवार

सूक्ति 9:1-6; एफेसियों 5:15-20; योहन 6:51-58

ब्रदर अतिस भुमिज मुंडा (आई.एम.एस)


आदरणीय प्रिय भाइयो और बहनो, आज कलीसिया हमें फिर से पवित्र यूखरिस्तीय बलिदान पर मनन चिंतन करने के लिए आमंत्रित करती है। संत योहन रचित सुसमाचार 6:51-58 में हम दो प्रकार की रोटी की चर्चा सुनते हैं।

(1) भौतिक रोटी जिसके लिए हम रोज परिश्रम किया करते हैं, जो नश्वर है पर बहुत जरूरी है।

(2) स्वर्ग से उतरी हुयी आध्यात्मिक रोटी जिसे पिता हमें प्रदान करते हैं, जो नश्वर नहीं, वरन आनंद जीवन देने वाली है।

हम अपने जीवन काल में अपनी पूरी उम्र ज्यादातर भौतिक रोटी की चिंता करते हैं। कहते भी हैं - दो वक्त की रोटी मिल जाए और कुछ नहीं चाहिए। रोटी कमाने के लिए हम अपनों से दूर घर बार छोड़ जाते, लूटमार तक करते हैं और इस तरह जीवन की छोटी बड़ी खुशियों को गवा देते, और अंत में अशांति, दुख और निराशा के सिवा कुछ नहीं मिलता है। अंत तक हम व्यर्थ परिश्रम करते ही रह जाते हैं।

येसु हम सबों से कहते हैं जीवन की रोटी में हूँ। जो मेरे पास आता है उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है उसे कभी प्यास नहीं लगेगी। इस वचन के द्वारा येसु हमारा ध्यान बहुत ही वस्तुओं से हटकर आध्यात्मिक बातों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं।

येसु हमसे कहते हैं- 'यह कहते हुए चिंता मत करो हम क्या खाएं, क्या पिए, क्या पहनें। तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सभी चीजों की जरूरत है। तुम सबसे पहले ईश्वर के राज्य की और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और यह सब चीज तुम्हें यूं ही मिल जाएंगी।" (मती 6:31-33)

हाँ हमें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। हमारा स्वर्गीय पिता जो सबका ध्यान रखने सबको और सब कुछ देने वाला, प्रबंध करने वाला ईश्वर है। पुराने समय में हमारे पूर्वजों को मारुभूमि में उन्होंने माना और मांस खिलाया। सुसमाचार के अनुसार प्रभु येसु ने पांच रोटियों और दो मछलियों से पांच हजार से अधिक लोगों को खिलाया था, और सात रोटियों और कुछ मछलियों से चार हजार से अधिक लोगों को खिलाया। ईश्वर हमारी भौतिक और आध्यात्मिक - दोनों जरूरतों को पूरा करते हैं। वे चाहते हैं कि हम परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें। येसु कहते हैं- “मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है”। यह दिव्य शब्द जो हमेशा से ईश्वर के साथ था।, वह मनुष्य बना और हमारे बीच रहा। जिस शब्द ने शरीर धारण किया वही येसु है। “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने इकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया जिससे जो उसमें विश्वास करता है, उसका सर्वनाश ना हो बल्कि अनंत जीवन प्राप्त करें।” (योहन 3:16)

येसु के द्वारा ही अनंत जीवन मिलता है। जीवन के लिए रोटी बहुत जरूरी है। स्वर्गीय पिता ने हमें वह सच्ची रोटी येसु के रूप में दी है, जिसका मांस और रक्त हम हर यूखरिस्तीय बलिदान में खाते और पीते हैं।

प्रिय भाइयो और बहनो, जीवन हमें तब प्राप्त होगा जब हम इस परम पवित्र रोटी को आध्यात्मिक तैयारी, भक्ति तथा विश्वास के साथ ग्रहण करेंगे। पुनरुत्थान और जीवन, आदि और अंत येसु है। येसु ने कहा, “पिता ने मुझे भेजा है और मुझे पिता से जीवन मिलता है इस तरह जो मुझे खाता है उसको मुझ से जीवन मिलेगा”। इसलिए आइए हम यूखरिस्तीय बलिदान में ईश्वर के महान प्रेम को पहचानें उसे ग्रहण करें जो पिता का प्रीतिभोज है जिसे कमाना नहीं पड़ता, वह मुफ्त में दिया जाता है।

"तुम सब जो प्यासे हो पानी के पास चले आओ। मुफ्त में अन्न खरीद कर खाओ, दाम चुकाये बिना अंगूरी और दूध खरीद लो। जो भोजन नहीं है, उसके लिए तुम लोग अपना रुपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो? मेरी बात मानो। कान लगा कर सुनो और मेरे पास आओ। मेरी बात पर ध्यान दो और तुम्हारी आत्मा को जीवन प्राप्त होगा।" (इसारा 55:1-3)

हाँ प्रिय भाइयो व बहनो, पिता की इच्छा है कि हम पुत्र को जो जीवन की रोटी हैं पहचान कर विश्वास करें, ताकि हमें आनंद जीवन प्राप्त हो। उन्हीं प्रभु येसु के द्वारा, उन्हीं के साथ, और उन्ही में, हमें पुनरुत्थान और आनंद जीवन मिलता है। इसलिए लिए हम पवित्र रोटी को विशेष आदर व सम्मान दे और योग्य रीति से इसे ग्रहण करें, जैसा कि पवित्र कलीसिया हमें सिखाती है। वचन कहता है- 'जो आयोग के रीति से वह रोटी खाता या प्रभु का प्याला पिता है, वह प्रभु के शरीर और रक्त के विरुद्ध अपराध करता है। अपने अंतःकरण की परीक्षा करने के बाद ही मनुष्य वह रोटी खाये और वह प्याला पिए। जो प्रभु का शरीर पहचाने बिना खाता और पिता है, वह अपनी ही दंडाज्ञा खाता और पीता है।" (1 कुरिन्थियों 11:27-29)