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चक्र- ब – सामान्य काल का अठारहवाँ इतवार

निर्गमन 16: 2-4, 12-15; एफेसियों: 4:17-, 20-24; योहन: 6:24-35

ब्रदर अमित सोरेन (मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों, आज के पाठों के माध्यम से माता कलीसिया हमें स्वर्ग की रोटी 'मन्ना’ और जीवन की रोटी 'प्रभु येसु’ के बारे में बताती है। आज के पहले पाठ में हम सुनते हैं कि सारी इस्राएली जनता नबी मूसा और हारून से शिकायत करते हुए कहते हैं, “हम जिस समय मिस्र देश में मांस की हड्डियों के सामने बैठते थे और इच्छा-भर रोटियां खाते थे, यदि हम उस समय प्रभु के हाथ मर गए होते, तो कितना अच्छा होता ! आप हम को इस मरुभूमि में इसलिए ले आए हैं कि हम सब-के-सब भूखों मर जायें” (निर्गमन 16:3)। इस्राएलियों का यह शिकायत यह दर्शाती है कि उनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। वे भूखे हैं और साथ ही साथ नाराज भी हैं। इसलिए वे मूसा और ईश्वर के विरुद्ध भुनभुनाते हैं। उनके पास उनकी नयी स्वतंत्रता है किंतु वह उनके लिए कुछ खास मायने नहीं रखती है। वे मिस्र की गुलामी को भूल नहीं पाए थे, लेकिन गुलामी के उस देश को वे इसलिए याद कर रहे थे कि वे वहां अच्छा से बैठकर, मांसाहारी भोजन अपनी इच्छानुसार खाया करते थे। अपनी नयी आजादी पर ध्यान केंद्रित करने एवं उसका आनंद लेने के बजाय, समस्त इस्राएली अपने पेट की भूख के कारण मिस्र देश लौट जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं। भूख-प्यास के कारण उनको आजादी से गुलामी का स्वादिष्ट भोजन अधिक पसंद था। इस्राएली जनता भूख और गुस्से में नहीं मर जाते हैं, क्योंकि ईश्वर उनकी शिकायतें सुनता है और उन्हें स्वर्ग से रोटी के रूप में मन्ना और मांस के रूप में बटेर खिलाता है। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि हमारा ईश्वर हमारी समस्याओं से बड़ा है। ईश्वर हमारे लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं क्योंकि वह हमसे बहुत प्यार करता है। पिता ईश्वर इतने महान हैं कि वह हमारे लिए गहरे समुद्र में भी सड़क बना सकता है। पथरीली चट्टान से भी पानी निकाल सकता है और बंजर मरुस्थल में भी मन्ना खिला सकता है। लेकिन क्या हम उस शक्तिशाली ईश्वर की शक्ति और उसके प्यार पर विश्वास करते हैं? क्या हम मुश्किल क्षणों में ईश्वर पर भरोसा रख सकते हैं? क्या हम उस इस्राएली जनता के समान छोटी-छोटी समस्याओं के कारण शारीरिक भूख मिटाने के लिए ईश्वर के विरुद्ध भुनभुनाते हैं? हां प्रिय भाइयों एवं बहनों यह हमारे लिए सोचने की बात है।

आज के सुसमाचार में हम सुनते हैं कि येसु लोगों से कहते हैं, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - तुम चमत्कार देखने के कारण मुझे नहीं खोजते, बल्कि इसलिए कि तुम रोटियां खाकर तृप्त हो गए हो। नश्वर भोजन के लिए नहीं बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो अनंत जीवन तक बना रहता है” (योहन 6:26-27)। इस भागदौड़ की जिंदगी में प्रत्येक व्यक्ति अपने पेट के लिए दिन-रात मेहनत करता है। मानव की शारीरिक भूख इतनी तीव्र हो गई है कि हम अपने पेट के लिए कुछ भी कर बैठते हैं। जिसके फलस्वरूप हम सत्य के मार्ग से भटक जाते हैं। हम इस संसार के भौतिक चीजों में ऐसे खो बैठते हैं कि हमें आध्यात्मिक भूख लगती ही नहीं है। आज प्रभु हमें भौतिक भूख को त्याग कर आध्यात्मिक भोजन के लिए लालायित रहने के लिए निमंत्रण देता है। इसलिए प्रभु येसु हम सबों से कहते हैं, नश्वर भोजन के लिए नहीं बल्कि आध्यात्मिक जीवन के लिए परिश्रम करो। भोजन हमारी भूख को मिटा कर हमें शक्ति और आनंद प्रदान करता है, लेकिन हमारे प्रभु येसु,जो जीवन की रोटी है, यदि हम उसे आध्यात्मिक भोजन के रूप में ग्रहण करेंगे तो हमें उससे अधिक शक्ति और आनंद मिलेगा।

हम लोगों में न सिर्फ एक शारीरिक भूख, बल्कि कई तरह के भूख विद्यमान हैं। किसी को धन दौलत की भूख, किसी को मान-सम्मान की भूख है। और इस तरह से भूख इंसान को बहुत कुछ करने को बाध्य करती है। इसके अलावा एक जो आध्यात्मिक भूख है; ईश्वर को खोजने की भूख, ईश्वर को जानने एवं अनुभव करने की भूख, प्रत्येक व्यक्ति में रहती है। लेकिन हम में से बहुत ही कम लोग उसे पहचान पाते हैं। इसलिए प्रभु हम सबों से कहते हैं, “जीवन की रोटी मैं हूं। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी” (योहन:6:35)। प्रभु येसु के कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरह भोजन हमारे लिए, जीने के लिए आवश्यक है वैसे ही प्रभु येसु हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्रभु येसु अपने आप को रोटी से तुलना करते हैं, उस भोजन से तुलना करते हैं जो हमें अनंत जीवन देता है और वह जीवंत रोटी स्वयं येसु ख्रीस्त हैं। हमारे जीवन में प्रभु का होना अति आवश्यक है। हम उसके बिना जी नहीं सकते, क्योंकि उसके बिना हमारा अस्तित्व व्यर्थ है। इसलिए हम न सिर्फ नश्वर चीजों की खोज करें, बल्कि येसु जो अनंत जीवन है उसकी खोज में लगें रहें। हम अपने भौतिक जीवन के लिए मेहनत करते हैं। रात-दिन हम उसके पीछे लगे रहते हैं, लेकिन क्या हम आध्यात्मिक भोजन के लिए प्रभु को खोजते हैं? क्या हमारा विश्वास और हमारी भूख, प्रभु को खोजने की और उनके पास जाने की इच्छा जताता है? प्रिय भाइयों एवं बहनों हम भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए यूं ही समय ना गवाएं बल्कि हम उस अनंत जीवन की खोज करें जो प्रभु येसु में पूर्ण है।

नबी इसायाह अपने लोगों को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि तुम लोग साधारण रोटी की खोज में इतने लीन क्यों हो, कहीं ऐसा ना हो कि आप लोग असाधारण रोटी को भूल जाएं। नबी कहते हैं, “जो भोजन नहीं है, उनके लिए तुम लोग अपना रुपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता, उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो?” (इसायाह 55:2)। प्रिय भाइयों एवं बहनों अक्सर हम अपनी इंद्रियों को तृप्त करने के लिए आत्मा को भूखा रखने का विकल्प चुन लेते हैं, हम जिस प्रकार अपने दैनिक रोटी के लिए भूखे रहते हैं उसी प्रकार हमें अपनी आत्मा के लिए, जो जीवन की रोटी है, उसके लिए हमें अधिक उत्साह से भूखा रहने की आवश्यकता है। जो संतुष्टि हम अपने भौतिक जीवन से पाते हैं, प्रभु येसु हमें उससे अधिक संतुष्टि प्रदान करेंगे। मत्ती रचित सुसमाचार 4:4, में वचन कहता है, “मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है”। प्रभु का वचन हमारे लिए जीवंत रोटी है। जिस प्रकार हमें अपने शरीर को बनाए रखने के लिए भौतिक भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार हमें अपनी आत्मा को जीवित रखने के लिए ईश्वर का वचन अति आवश्यक है। तो आइये प्रिय भाइयों एवं बहनों, हम प्रभु येसु से यही आशीष एवं कृपा मांगे कि हम अपने आध्यात्मिक जीवन में प्रभु येसु से हमेशा जुड़े रहें, ताकि हम अपनी आध्यात्मिक भूख को मिटा सकें। हम सांसारिक चीजों में ना खोकर प्रभु येसु जो जीवन की रोटी है, हमारी आत्मा का भोजन है, उसे हम नित्य ग्रहण करें ताकि हम प्रभु येसु में अनंत जीवन पा सकें।