Albin_Lukose

चक्र- ब – सामन्य काल का सत्रहवाँ रविवार

2 राजाओं 4: 42-44; एफेसियों 4:1-6; योहन 6:1-15

ब्रदर अल्बिन लूकोस (खंडवा धर्मप्रान्त)


जरूरतमंद व्यक्ति को ईश्वर कभी भी त्यागता नहीं है। विभिन्न माध्यमों एवं व्यक्तियों द्वारा ईश्वर उसकी सहायता करता है। येसु अपने जीवन द्वारा हमेशा लोगों की आध्यात्मिक एवं भौतिक आ्वश्यकताओं का ख्याल रखते थे। उन्होंने रोगियों को चंगा किया, मृतकों को जिलाया, भूखों को खिलाया और पापियों को माफ किया। आज के सुसमाचार में हमने रोटियों के चमत्कार के बारे में सुना। यह हमें स्पष्ट रूप से बताता है कि येसु हमारी आवश्यकताओं को भली-भाँति जानते और हमेशा हमारी मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं।

एक विशाल जनसमूह येसु के वचनों को सुनने के लिए उनके पीछे हो लिया। वे बिना कुछ खाये-पीये लम्बे समय तक येसु के साथ रहे। यह देखकर येसु को उन पर दया एवं तरस आया। उन्होंने अपने शिष्य फिलिप से कहा,“हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें?” फिलिप ने निराश होकर उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटियों भी इतनी नहीं होगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके”। लेकिन दूसरा शिष्य अन्द्रेयस ने पाया कि एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियों और दो मछलियों थी, जिन्हें वह शायद सन्ध्या के भोजन के लिए लाया था। येसु ने रोटियाँ एवं मछलियाँ ली, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और उन्हें अपने शिष्यों को देकर, बैठे हुए लोगों में बांटने के लिए कहा। लोगों ने भरपेट खाया और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भरे।

आज के पहले पाठ में भी हम नबी एलीशा द्वारा किए गए एक अन्य चमत्कार के विषय में सुनते हैं। जब उनके सैकड़ों शिष्य उनके चारों ओर एकत्र हुए तब एक किसान एलीशा के पास आया और प्रथम फल के रूप में जौ की बीस रोटियों तथा नए अनाज का बोरा दिया। वास्तव में ये भी सौ लोगों को खिलाने के लिए अपर्याप्त थी। फिर भी एलीशा ने इन्हें लोगों के बीच बाँटने के लिए अपने नौकरों को आज्ञा दी। वहाँ उपस्थित उन सभी ने भरपेट भोजन किया, फिर भी रोटियों के कुछ टुकड़े बच गए।

आज काथलिक कलीसिया पुराने विधान की उस घटना से, येसु द्वारा किए गए रोटियों के चमत्कार की तुलना करते हुए प्रस्तुत करती है। एलीशा ने बीस रोटियों से सौ लोगों को खिलाया, जबकि येसु ने सिर्फ पाँच रोटियों से पाँच हजार लोगों को खिलाया। इस घटना से हमें यह ज्ञात होता है कि पुराने विधान में प्राप्त वरदानों की अपेक्षा येसु द्वारा मानवजाति को दिए गए वरदान कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। येसु द्वारा किए गए इस चमत्कार से हमें यह ज्ञान होता है कि ईश्वर मनुष्यों के भौतिक भोजन का भी ख्याल रखता है, जो उसके दैनिक जीवन में आवश्यक होता है। ईश्वर चाहता है कि हर एक को अपने जीवन के लिए पर्याप्त भोजन मिले। वह यह नहीं चाहता कि लोग भूखे रहे। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम हमेशा ईश्वर द्वारा प्राप्त चमत्कारिक भोजन की अभिलाषा करें। इसका अर्थ यह है कि जब हम्, हमसे बनने वाले उन सभी कार्यों को करते या हमारे पास, जो साधन है, जब हम उनका सही इस्तेमाल करें येसु हमारी मदद अवश्य करेन्गें । यदि हम पूर्ण श्रध्दा एवं विश्वास के साथ येसु की ओर आते हैं, तो वे हर कठिनाईयों में हमारी सहायता करेंगे।

आज के इस चमत्कार के वर्णन में हम पाते हैं कि न तो शिष्यगण और ना ही 5000 लोगों ने येसु से भोजन मांगा, बल्कि येसु उनकी आवश्यकताओं को समझ गए और यह भी समझ गए कि उनके वचनों को सुनने के लिए ही, लोगों को यह भूख सहनी पड़ी। इसलिए येसु ने उनके मांगने से पहले ही, उन्हें वही प्रदान किया, जिसकी उन्हें आवश्यकता थी। यदि हम भी येसु के प्रति निष्ठावान है, तो हम आशा कर सकते हैं कि उनकी कृपा एवं शक्ति हमरी आवश्यकताओं में हमारे साथ रहेगी। यदि हम अपने जीवन की ओर मुडकर देखें तो हमें याद होगा कि हम विभिन्न प्रकार की कठिनाईयों, भारी संकटों एवं दुर्घटनाओं से बचाए गए है। शायद हमने इन घटनाओं से बचने के लिए येसु से कोई सहायता नहीं मांगी होगी, फिर भी हमारी आवश्यकताओं को समझकर उन्होंने हमारी मदद की। आईये, आज हम येसु से प्राप्त सभी वरदानों के लिए उन्हें धन्यवाद दें और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए उनके प्रति निष्ठावान एवं ईमानदार बनें रहें।