namit_tigga

चक्र- ब – सामान्य काल का बारहवाँ इतवार

योब 38:1, 8-11; 2कुरिंथियों 5:14-17; मारकुस 4:35-41

ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल धर्मप्रान्त)


परम आदरणीय ख्रीस्तीय विश्वासी भाईयो एवं बहनो, मनुष्य चाहे कितना ही बलवान, निडर, साहसी या हिम्मत वाला क्यों न हो, कहीं न कहीं, किसी न किसी रुप में वह कमजोर जरुर होता है। कमजोरी अनेक प्रकार की हो सकती है - जैसे शारीरिक, मानसिक, बौधिक, आध्यात्मिक, या सामाजिक कमजोरी इत्यादि ।

हम जानते हैं कि प्रभु येसु ईश्वर और मनुष्य दोनों थे। आज के सुसमाचार में उनकी ईश्वरीय शक्ति एवं मानवीय क्रियाकलाप दोनों की विवेचना स्पष्ट रुप से की गयी है। प्रभु येसु मनुष्य होने के नाते दिन भर की व्यस्तता के कारण थकावट महसूस करते हैं और चलती नाव में आराम करने की कोशिश करते हैं परन्तु उधर भयावह तुफान से भयभीत शिष्य गण येसु को बाधा डालने में मजबूर हो जाते हैं। यह घटना मुख्यतः दो बातों को उजागर करती है -

1) विपदाओं में मानवीय विश्वास की कमी या दृढ़ता

2) ईश्वरीय शक्ति ही सर्वोपरि

हमारा मानवीय जीवन अनगिनत तुफानों से भरपूर है। कोई नहीं जानता कि कब हमारे जीवन रुपी नैया से संकट भरा आंधी या तुफान, लहर या झंझावत टकराए और उसे झकझोर दे। मानव जीवन में ऐसे कई सारे तुफान या झंझावत आते – जाते रहते हैं। कई बार ऐसा होता है कि हम उनको झेलने या सामना करने में असमर्थ हो जाते हैं और एक दूसरे के मदद की आस में चीखने – चिल्लाने को मजबूर हो जाते हैं। जिस प्रकार आज के सुसमाचार में शिष्य लोग तुफान से भयभीत होकर शोरगुल मचाते हुए येसु को जगाते हुए कहते हैं कि प्रभु बचाईये हम डूब रहे हैं।

यह मानवीय स्वभाव है कि जब कभी अपने परिवार में कोई संकट, बिमारियाँ, विपत्तियाँ, घटनाएँ या मृत्यु जैसे कोई दुःखद परिस्थतियाँ आ जाती हैं तो हम ईश्वर पर भरोसा, उसकी दयालुता एवं उसका अनन्य प्रेम पर संदेह करने लगते हैं। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि ईश्वर इन दुःख – संकटों या अप्रिय घटनाओं से परे हैं, इस प्रकार की दुःखद घड़ी का मकसद और महत्व अलग है। यदि इस संसार में प्रत्येक का जीवन सुख समृद्धि या सफलतापूर्वक गुजरता तो न जाने कितने लोग होंगे जो ईश्वर को याद कर रहे होते? तो शायद इन घटनाओं के माध्यम से ईश्वर उनसे हमेशा जुड़े रहने और योब की भांति कठिन समय में भी उन पर पूर्ण भरोसा रखने और उनसे अटूट संबंध बनाए रखने के लिए सिखाते हैं।

आंधी को शांत करने के तत्पश्चात येसु ने अपने शिष्यों को उनके विश्वास की कमी के लिए डांटते हुए कहा – तुम लोग इस प्रकार क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं है? (मारकुस 4:40) तुम लोगों का विश्वास कहां है? (लुक8:25) ईसा ने उन से कहा – अल्प विश्वासियो, क्यों डरते हो? (मत्ती 8:26) इस तरह हम देखते हैं कि तीनों समदर्शी सुसमाचारों में शिष्यों के विश्वास की कमी के कारण येसु उन्हें डांटते हैं। येसु की यह डांट न केवल उन शिष्यों के लिए, अपितु आज हम सभी के लिए लागू होती है। हमारे जीवन के अनेक समस्याओं एवं दुःख तकलीफों से घिरे होने के बावजूद भी हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि ईश्वर ने हमें त्याग दिया। वह ऐसा कभी नहीं कर सकता। वह अपने स्वभाव के विरुध्द नहीं जा सकता। वह अपने वादे से मुकरने वालों में से नहीं है। क्योंकि उसने कहा है – याद रखो – मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ। (मत्ती 8:20)

जब शिष्य गण प्रचण्ड आंधी के समक्ष संघर्ष कर रहे थे तब येसु सो रहे थे। शिष्यों के साथ – साथ उनका जीवन भी खतरे में था फिर भी वे शांति पूर्वक सो रहे थे – इस से हमें यह प्रतीत होता है कि उन्होंने स्वयं को पिता के हाथों समर्पित कर दिया था। उन्हें पूर्ण भरोसा था कि नाव पिता की इच्छा के बिना डूब नहीं सकता। शिष्य मानव होने के नाते और विश्वास की कमी के कारण इस बात को समझने में असफल रहे और प्रभु येसु के इस महान चमत्कारिक कार्य को देखकर असमंजस में पड़ गये। आज का सुसमाचार हमें यह भी सिखाता है कि ईश्वर का प्राकृतिक आपदाओं जैसे - आंधी, तुफान, बाढ़, आकाल, भूकम्प आदि पर पूरा अधिकार है। हमें ऐसे समय में प्रभु पर पूर्ण भरोसा रखने की आवश्कता है।

तो आईये हम सर्वशक्तिमान, सर्वसृष्टिकर्ता तारणहारपिता ईश्वर से प्रार्थना करें कि जो आंधी – तुफान के भी स्वामी हैं, जिनके अनुमति के बिना एक पत्ती भी नहीं हिल सकती, उन्हीं से प्रार्थना करें कि हमारे जीवन में उठने वाले छोटे – बड़े तुफानों को साहस के साथ सामना करने में हमारी सहायता करता रहे और उन्हीं पर पूर्ण भरोसा रखकर हमारे जीवन की नैया को खेने में या आगे ले जाने में हमारी मदद करता रहे। आमेन