प्रकाशना ग्रन्थ 7:2-4,9-14; 1योहन 3:1-3; मत्ती 5:1-12
“स्वर्गीय महिमा की ओर हमारी यात्रा”“
आज का पर्व हमे उन सभी धर्मात्माओं की याद दिलाता है जो इस दुनिया में रहते समय प्रभु येसु के पदचिन्हों पर चलते हुए अपने जीवन द्वारा प्रभु के साक्षी बन गए हैं। हम विश्वास करते हैं कि अपने विश्वास भरे जीवन, प्रेम भरी सेवा कार्य और साहसी मृत्यु द्वारा प्रभु के साक्षी होने के कारण उन्हें स्वर्गिक पुरस्कार प्राप्त हुआ हैI यह पर्व हमें प्रभु येसु की मृत्यु पर विजय का स्मारण दिलाता हैI पुनरुत्थान और संतों की सहभागिता में भरोसा रखना ही आज का पर्व मनाने का मुख्य उद्देश्य हैl
प्रिय विश्वासियो आज का पहला पाठ प्रकाशना ग्रंथ से लिया गया हैI इस में हम, संतों का पुण्यस्तिथि और स्वर्ग में उन के द्वारा की जाती स्तुति-महिमा का सुंदर वर्णन पाते हैं। स्वर्ग में धर्मियों की आत्माएं ईश्वर के सामने उपस्थित रहती हैंI वे सदैव ईश्वर की स्तुति और महिमा करती रहती हैंI यह स्वर्गिक पुरस्कार केवल उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है जो इस संसार में पवित्र जीवन जीते हैं और पवित्रता के कारण दुःख तकलीफ सहते हैंI प्रकाशना ग्रंथ 7:14 में हम पढ़ते हैं, ““ये वे लोग हैं, जो महा संकट से निकल कर आये हैंI इन्होंने मेमने के रक्त में अपने वस्त्र धोकर उजले कर लिये हैंI” जो लोग इस संसार में अपने स्वयं पर विजय पाते हैं और विपत्तियों का सामना साहसपूर्वक करते हैं, उन्हें पवित्रता का वह मुकुट प्रदान किया जाता है जो सभी संतों ने प्राप्त किया हैI हम सब पवित्र जीवन जीने के लिए बुलाये गये हैंI इसी बात पर प्रकाश डालते हुए आज के दूसरे पाठ में संत योहन बताते हैं कि हम सब ईश्वर की निजी सन्तान हैं और उन्होंने हमें अपने प्रेम से भर दिया हैI वर्तमान काल में हमारा यह जीवन क्षण भर का हैI जब हम प्रभु के सामने वास्तव में प्रस्तुत होंगे तभी यह प्रकट होगा कि हम क्या बनेंगे? इसका अर्थ यह है कि हमे अपने दैनिक कार्यों में पवित्रता की खोज में रहना है और अपने जीवन द्वारा उस महिमा के योग्य पाये जाना है जिसे प्रभु हमें प्रकट करेंगेI इस विषय में संत योहन अपने पहले पत्र में अध्याय 3:3 हमें संकेत करते हैं, ””जो उससे ऐसे आशा करता है, उसे वैसे ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसे कि वह शुद्ध हैI”
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने आशीर्वचन द्वारा एक महत्वपूर्ण शिक्षा देते हैंI वे एक धन्य जीवन जीने के लिए आवश्यक मार्ग बताते हैं, विशेष कर मत्ती 5:8 में प्रभु येसु कहते हैं “धन्य है वे, जिनका हृदय निर्मल है! ईश्वर के दर्शन करेंगे।” इससे हमें यह स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर के दर्शन करने के लिए हमें शुद्ध होना चाहिए। ईश्वर के योग्य होने के लिए पवित्रता ही उचित मार्ग है और अन्य बात नगण्य है। आगे मत्ती 5:11-12 में प्रभु येसु कहते हैं, ““धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनंद मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगाI”
प्रिय मित्रो! सभी संतों ने भी जिनका स्मरण आज हम कर रहे हैं ऐसा ही किया था। वे अपने विश्वास के कारण अपना प्राण त्याग करने के लिए भी तैयार रहे। कुछ संत लोग ऐसे भी थे जिन्होंने अनेकों प्रकार के अत्याचारों को प्रभु के नाम पर खुशी से स्वीकार किया। इन संतों के जीवन द्वारा हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी ईश्वर और मनुष्य के प्रति इमानदार रहना चाहिएI हमें इस बात को हमेशा याद रखना है कि सांसारिक दुःख-तकलीफ़ या मृत्यु हमारा जीवन का अंत नहीं है बल्कि स्वर्गिक जीवन का द्वार हैI इस कारण हम विश्वास का वाहक बनने तथा पवित्र जीवन बिताने के लिए बुलाए गए हैंI प्रभु हमें प्राचुर र्मात्रा में आशीर्वाद एवं बल प्रदान करें और सही मार्ग पर ले चलें। आमेन।