tamilarasan

चक्र- ब – वर्ष का दसवाँ रविवार

उत्पत्ति 3:9-15; 2 कुरिन्थियो 4:13-5:1; संत मारकुस 3:20-35

ब्रदर तमिलअरसन पॉलदास (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


“मुसीबत में महिमा प्रकट होती है”

ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाईयो एवं बहनो। इस दुनिया में मानव जीवन एक अद्भुत बात है। ईश्वर ने मनुष्यों को एक अद्भुत रीति से सृष्ट किया है। स्तोत्र ग्रंथ 139:14 में स्तोत्रकार प्रशन्सापूर्वक कहते है, “मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ -मेरा निर्माण अपूर्व है”। जी हाँ, पिता ने हमें अपने इच्छानुसार, अपने ही प्रतिरूप बनाया है। उन्होंने हमारे प्रति अनोखा प्यार दिखाया है। हमें समझदार होने की शक्ति व अच्छा-बुरा परखने की बुद्धि से भर दिया है। इसलिए हम सारी सृष्टि में अनोखे हैं। हमारे जीवनचर्या में हमें समय-समय पर निर्णय लेने की आवश्यकता है। हम अपने सोच-विचार, शब्द तथा कर्मो में हर क्षण निर्णय लेते ही हैं। मानव होने के नाते हम सब सफलता की दौड़ में लगे रहते हैं। इस दौड़ में हर पल, हर परिस्थिति में हमें निर्णय लेना पड़ता है। हम यह भी जानते हैं कि एक सच्चा जीवन जीने के लिए हमें सामाजिक नियमों का पालन करना चाहिये, नैतिक मूल्यों को अपनाना चाहिए और ईश्वर के आज्ञानुसार जीना चाहिए।

प्रिय विश्वासियो, आज के तीनों पाठ हमें मानव जीवन की ओर दृष्टि लगाने के लिए आमंत्रित करते हैं। इन पाठों पर आधारित तीन मुख्य बिन्धुओं पर आपके अंतरदृष्टि को मैं आकर्षित करना चाहता हूँ।

पहलाः दुर्बलता मानव स्वभाव है और यही मुसीबत का कारण बनता है।

दूसराः मुसीबत हमारी हिम्मत बढ़ाती है और आशा रखने की शिक्षा देती है।

तीसराः विश्वास, भरोसा तथा आज्ञापालन ही मानव स्वभाव से हमें ऊपर उठा सकते हैं।

आज के पहले पाठ में हम आदम और हेवा की दुर्बलता का वर्णन पाते हैं। पिता ईश्वर के अनंत प्रेम को आमने-सामने अनुभव करने का सौभाग्य उन्हीं को मिला था। वे दोनों ईश्वर के प्यार में आनन्दित थे। वे स्वतन्त्रता का जीवन जी रहे थे। परन्तु जब उन्होंने बुरे विचार से भर कर ईश्वर की दी गई आज्ञा का उल्लंघन किया तब उन्होंने अपनी स्वतंत्रता खो दी। उनकी दुर्बलता पूर्ण रूप से प्रकट होने लगी। हमारे आदि माँ-बाप निर्बल होने के कारण पाप के ऊपर पाप करने लगे। वे ईश्वर से डरने लगे और एक दूसरे से छुपने एवं दूर होने लगे। वे एक दूसरे की शिकायत करने लगे। उनकी दुर्बलता ने उन्हें ईश्वर के कोप का कारण बना दिया और उन्हें मुसीबत में डाल दिया।

अक्सर हमारे जीवन में भी यही होता है। हम भी दुर्बल ही हैं। हम भी पाप में गिर जाते और मुसीबतों का सामना करते हैं। इस स्थिति में, यह सवाल उठता है, “क्या यह सांसारिक मुसीबतें हमें हरा सकती हैं?” इसका जवाब संत पौलुस आज के दूसरे पाठ द्वारा हमें देते हैं। वे हमें आश्वासन देते हुए बताते हैं कि जिस संसार में हम जीते हैं यह क्षणिक है। इस दुनिया में हम अलग-अलग समस्याओं का सामना करते हैं, दुःख-तकलीफ महसुस करते हैं, मुसीबत में पड़ जाते हैं, और असफलता से निराश हो जाते हैं। यह सब अनुभव पल भर का है। हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए क्योंकि हमारी असली मंज़िल तो स्वर्ग है जिसे हम प्रत्यक्ष रूप में अनुभव नहीं कर सकते हैं। हमारा भरोसा एवं हमारी आशा स्वर्गिक महिमा की ओर रहना चाहिए। इसी बात को संत पौलुस स्पष्ट रुप से कहते हैं, “हमारी क्षण-भर की हलकी-सी मुसीबत हमें हमेशा के लिए अपार महिमा दिलाती है।” (2 कुरि. 4:17) हमें इस से यह प्रेरणा मिलती है कि मुसीबत महिमा प्रकट होने का माध्यम है। इस पापमय जिंदगी में दुख-तकलीफ के सामना किये बिना सांत्वना मिल नहीं पाती; इसलिए हमें हिम्मत हारे बिना लड़ना है, तभी हम ईश्वरीय महिमा के भागी बन सकेंगे।

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमें आध्यात्मिक अनुशासन की शिक्षा देते हैं। प्रभु येसु मानव मुक्ति के लिए अपना ईश्वरीय स्वभाव त्याग कर हमारे बीच में आ बसे। उन्होने पाप को छोड़ कर सब में मानव स्वभाव धारण किया। आज के पाठ में हम देखते हैं कि शास्त्री लोग येसु के विरुद्ध आरोप लगाते हुए उनकी निंदा करने की कोशिश करते हैं। मानव स्वभाव में रहते वक्त येसु दु:ख महसुस कर सकते थे। फिर भी वे उस मुसीबत की घड़ी में भी आत्म विश्वास के साथ परिस्थिति को अपने अधीन कर लेते हैं। प्रभु अपने आरोपियों को अपनी-अपनी अन्तरात्मा परखने की चुनौती देते हैं। किसी भी व्यक्ति की उन्नति उसकी अन्तरात्मा की ताकत से होती है। यदि किसी का आत्मबल गहरा है तो कोई भी समस्या उसे हरा नहीं सकता। यह आत्मबल पवित्र आत्मा से ही प्राप्त होता है। और यही पवित्र आत्मा हमें ईश्वर के इच्छानुसार जीने का मार्गदर्शन करता है।

हम सब यह विश्वास करते हैं कि हम ईश्वर की संतान हैं, प्रभु येसु के बन्धु-मित्र हैं। प्रभु हमें प्रेरित करते हैं कि यह सौभाग्य प्राप्त करने और प्रभु के सम्बन्धि बनने की योग्यता है, ‘ईश्वर की इच्छा जानना और पूरी करना।’

अब, ईश्वर की इच्छा क्या है? मित्रों! आज के समय में, हम सब ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ उलझन फैली हुई है। हर परिस्थिति और हर बात में हम उलझन का सामना करते हैं। हम सच्चाई और बुराई, असलीयत और नकलीपन को पहचान ने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में हमें ईश्वर में लीन रहना चाहिए। संत पौलुस 1 थेसलनीकियो 5:10 में लिखते हैं, “आत्मा का दमन नहीं करे।” और आगे, वाक्य 21 में लिखते हैं, “सब कुछ परखें और जो अच्छा हो, उसे स्वीकार करें। हर प्रकार की बुराई से बचते रहें।”

प्रियजनों! ईश्वर चाहते हैं कि हम पवित्रता में आगे बढ़ें। हमारा ईश्वर मुसीबत में भी रास्ता निकालने वाला ईश्वर है, असम्भव को भी सम्भव करने वाला ईश्वर है, शून्य का भी सम्पूर्ण में पुनर्निर्माण करने वाला ईश्वर है, हमारी दुर्बलता में हमें समझने वाला और हमारे साथ रहने वाला ईश्वर है। हम अपने अन्तकरण की परख करें, हर समय सतर्क रहें तथा प्रभु में दृढ़ विश्वास एवं भरोसा रखें। हम सदा प्रार्थना में लीन रहें और ईश्वर से कृपा मांगे जिससे हम अच्छाई और बुराई का सही पहचान कर सकेंगे तथा अपनी दुर्बलता में विजय हासिल कर सकेंगे। आईये, इस विचारधारा के साथ हम ख्रीस्त में जीवन यापन करें। प्रभु हमें प्रचुर मात्रा में कृपा और आत्मबल प्रदान करें। आमेन।