namit_tigga

चक्र- ब – सामान्य काल का छठवाँ इतवार

लेवी 13:1-2, 44-46; 1 कुरिंथियों 10:31-11:1; मारकुस 1:40-45

ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल धर्मप्रान्त)


उस भयानक, दिल को दहला देने वाली, कोरोना महामारी का मंजर, जन - जन के दिलों में बसा हुआ है, इसे कोई भी भुला नहीं सकता। इस महामारी ने देश - विदेश के लोगों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। जिस तरह से लोगों की मृत्यु इस महामारी के वजह से हुई है, वह काफी भयावह और दिल को झकझोर देने वाली है। कोई भी इससे अछूता नहीं रहा। सब ने अपने परिवार के सदस्यों, सगे - संबंधियों, रिश्तेदारां, परिजनों में से किसी न किसी को खोया है।

महामारी का प्रभाव या डर इतना ज्यादा था, कि जो कोई सदस्य घर से बाहर था और घर वापस आना चाहता था उसे घर में अपने ही लोग प्रवेश करने की अनुमति देने के लिए डरते थे। यदि कोई आ भी जाता तो उसे घर परिवार या प्रिय जनों से दूर, लम्बे समय के लिए क्वारंटाईन में रखा जाता था ।

इसी तरह की घटना या बिमारी का जिक्र आज के सुसमाचार में किया गया है, जहां प्रभु येसु एक कोढ़ की बिमारी या कुष्ट रोग से ग्रसित व्यक्ति को, जो समाज से दूर रहा करते थे, अपने हाथों से स्पर्श करते हुए चंगाई प्रदान करते हैं। हम जानते हैं कि सदियों पहले कोढ़ बिमारी एक बहुत बुरी, घिनौनी या अछूत बिमारी मानी जाती थी। इस बिमारी से शिकार लोगों को समाज से बिल्कुल अलग, घर से बहुत दूर एकांत में छोड़ दिया जाता था। सामाजिक कार्यकलापों एवं लोगों के पहुंच से उनको एकदम दूर रखा जाता था। जब कभी कोई कोढ़ी, लोगों के आस पास से गुजरता था, तो उसे कोढ़ - कोढ़, अछूत - अछूत चिल्लाकर, घंटी बजाते हुए गुजरना पड़ता था, ताकि लोग सुनकर उससे दूर भाग जाए और बिमारी से बच सके। उनके लिए खाना - पीना, कुत्ते - बिल्ली की भांति दूर से ही दिया जाता था। इस तरह उन कोढ़ी लोगों को अपना जीवन अति निराशाजनक रुप से व्यतीत करना पड़ता था। यदि हम इस प्रकार के कोढ़ियों के जीवन की भावनावों को समझने का प्रयास करें तो ज्ञात होता है कि उनके दुरूखों का सबसे बड़ा कारण उनकी बिमारी या कूरुपता नहीं, बल्कि घर - परिवार एवं समाज द्वारा उनका बहिष्कार एवं अस्वीकृति मालुम पड़ता है। वे यह महसूस करने के लिए मजबूर हो जाते हैं, कि उनका मानवीय अस्तित्व निरर्थक, व्यर्थ, एवं आशाविहीन है।

आज के सुसमाचार के माध्यम से हम ऐसे ही एक बहिष्कृत एवं तिरस्कृत कोढ़ी से दो - चार होते हैं, जिसका यह दृढ़ धारणा या पक्का विश्वास था कि येसु उसे अस्वीकार नहीं करेंगे। उसे पूर्ण विश्वास था कि येसु निश्चय ही उसे चंगा करेंगे। येसु, एवं उनकी शक्ति पर विश्वास करने के वजह से उनके स्पर्श मात्र से कोढ़ी भला चंगा हो जाता है। येसु ने ऐसे कई तरह के आश्चर्यजनक या चमत्कारिक कार्य किया, यहां तक कि शब्द मात्र से मुर्दों को जिलाया। अगर वे चाहते तो शब्द मात्र से कोढ़ी को भी चंगा कर सकते थे, लेकिन उनके विचार हमारे विचार नहीं हैं। हो सकता है कि कोढ़ी लम्बे समय से किसी के प्यार या स्पर्श को अनुभव करने में असमर्थ था, और उसके लिए तरस रहा था। और प्रभु येसु ने उसकी इच्छा पूरी कर दी। या समाज में ब्याप्त उस कुप्रथा का निवारण करना चाहते थे। लोग परंपरा के अनुसार कोढ़ी को देखकर दूर भागते थे। लेकिन प्रभु येसु बड़े प्यार एवं अनुकम्पा से उन्हें स्पर्श करते हैं, सहलाते हैं, अपनत्व का अनुभव कराते हैं, इंसान का दर्जा देते हैं, एक ऐसा एहसास दिलाते हैं कि लागों से बढ़कर और कोई ऐसा शक्स है जो दु:खद और तिरस्कृत समय में भी अपना बनाकर या गले लगाकर नवजीवन प्रदान करते हैं।

इस घटना के द्वारा येसु का संवेदनशीलता, प्रेम, सहानुभूति एवं कोढ़ी का दृढ़ विश्वास प्रमाणित हो जाता है। यहां कोढ़ी की मनोवृत्ति ध्यान देने योग्य है। उसने येसु से किसी भी चीज की मांग नहीं की किन्तु अपनी समस्या को ज्यों का ज्यों प्रभु येसु के समक्ष रख दिया और शेष यह कहते हुए ईश्वर की इच्छा पर सब कुछ छोड़ दिया – “आप चाहें तो मुझे शुध्द कर सकते हैं।” (मारकुस 1:40) हम जानते हैं कि प्रभु येसु ने कभी भी उनकी प्राथनाओं को अस्वीकार नहीं किया, जो उनके पास पूर्ण भरोसे, आस्था एवं समर्पण के साथ आये।

अब हमें मनन चिंतन करने ही बात है कि प्रार्थनाओं के प्रति हमारा मनोभाव कैसा होता है? बहूधा जब हम प्रार्थना करते हैं तो हम चाहते हैं कि ईश्वर हमारी इच्छाओं एवं अभिलाषाओं के अनुसार कार्य करे। लेकिन हम देखते हैं कि येसु गेथसेमनी बारी में प्राण पीड़ा के दौरान प्रार्थना में स्वयं को ईश्वर की इच्छानुसार पूर्ण रूप से समर्पित करते हुए कहते हैं – “पिता ! यदि तू ऐसा चाहे, तो यह प्याला मुझ से हटा ले। फिर भी मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो।” (लूकस 22:42)

येसु की यह प्रार्थना हम सभी के लिए एक उत्तम आदर्श है। यही मनोभाव कोढ़ी की प्रार्थना में भी पायी जाती है। यदि हम ईश्वर के पास दृढ़ विश्वास एवं भरोसे के साथ आते हैं, तो वह निश्चय ही हमारी सहायता करेगा, जैसे कि प्रभु येसु ने कोढ़ी की प्रार्थना सुनी। तो आईये येसु एवं कोढ़ी से प्रेरणा पाकर, हम भी अपने दैनिक प्रार्थनाओं में उनके ही समान मनोभाव का विकास करने के लिए याचना करें। ईश्वर हमें आशिष एवं कृपा प्रदान करे कि हम उनके इच्छानुसार या योजनानुसार प्रार्थना करना सीखें । आमेन