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चक्र- ब – वर्ष का पाँचवा इतवार

अय्यूब 7:1-4, 6-7; 1 कुरिन्थियो 9:16-19, 22-23; मारकुस 1:29-39

ब्रदर रोशन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)


आज के पाठों के द्वारा माता कलीसिया हमें जीवन मे पवित्र सुसमाचार को प्रचार करने के कार्य को प्राथमिकता देने हेतु आह्वान करती है। वह हमें इस बात पर विचार करने हेतु आग्रह करती है कि हम हमारे जीवन मे ईश्वर के वचन को फैलाने हेतु कितनी उत्सुकता दिखाते है।

सुसमाचार मे हमें येसु के मिशन कार्य का वर्णन प्राप्त होता है जहाँ येसु सभागृह से निकलकर सर्वप्रथम पेत्रुस की सास को चंगाई प्रदान करते है। तथा सन्ध्या समय वह सभी रोगियों एवं अपदूतग्रस्तों को स्वास्थ्यलाभ एवं छुटकारा प्रदान करते है। एवं दूसरे दिन सुबह प्रार्थना करने के पश्चात येसु अपने शिष्यों से कहते है कि हम आसपास के कस्बों मे चले। मुझे वहाँ भी उपदेश देना है इसलिए तो आया हूँ। इस वाक्य के द्वारा हम समझ सकते है कि येसु ईश्वर के वचन को फैलाने के लिए कितने तत्पर थे। प्रभु येसु के तीन वर्षीय मिशन कार्य मे हम पाते है कि उन्होने अधिक से अधिक लोगों तक सुसमाचार को फैलाया। प्रभु येसु ने पिता ईश्वर की इच्छा को अपने जीवन मे प्राथमिकता दी। हमें संत लूकस के सुसमाचार4:18-19 में प्रभु येसु के मिशन कार्य की घोषणा का वर्णन प्राप्त होता है जहाँ लिखा है, “प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है उसने मुझे भेजा है जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बन्दियों को मुक्ति का अंधो को दृष्टिदान का संदेश दूँ, दलितो को स्वतंत्र करू और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।” एवं इस कार्य को प्रभु येसु पूरी लगन से करते है। वे उनके सभागृह मे शिक्षा देते अपदूतो को निकालते एवं सारी गलीलिया मे घूमते रहते है।

दूसरे पाठ में संत पौलुस कुरिंथियो को कहते है धिक्कार मुझे यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ। वह सुसमाचार प्रचार के कार्य को पूरी गंभीरता से लेते है। वह कुरिंथियों से कहते है कि उन्हे सुसमाचार प्रचार करने का आदेश मिला एंव वह इस बात पर गर्व नही करते है। हम संत पौलुस के जीवन मे पाते है कि प्रभु येसु से मुलाकात के बाद वे अपने जीवन को पूरी तरह से येसु को समर्पित कर देते है। वह ईश्वर के वचन को फैलाने हेतु लंबी-लंबी एंव कठिनाई भरी यात्रायें करते है। एंव इस कार्य के दौरान उन्हे कई समस्याओं का सामना करना पडता है। इसलिए संत पौलुस फिलेमोन के नाम पत्र मे कहते है कि मै येसु मसीह के कारण कैदी हूँ। वह सुसमाचार प्रचार के कार्य मे इतने मग्न हो जाते है कि वह प्रभु येसु की प्राप्ति को अपने जीवन का लक्ष्य मानते है। इसलिये वे फिलिपियों के नाम पत्र1:21 मे कहते है ”मेरे लिये तो जीवन है मसीह और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति।”

हम दोनों पाठों मे पाते है कि प्रभु येसु एंव संत पौलुस सुसमाचार को फैलाने हेतु निरन्तर कार्यरत रहते है। आज के पाठ हमे सुसमाचार के प्रचार हेतु आग्रह करते है। संत मारकुस के सुसमाचार16:15 मे हम पाते है कि येसु अपने शिष्यों से कहते है कि “संसार के कोने-कोने मे जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओं ।” यह आदेश सर्वप्रथम शिष्यों को प्राप्त हुआ था एंव उन्होंने इस कार्य को पूरी जिम्मेदारी से किया। उन्होंने अलग-अलग स्थानों पर जाकर अत्याचार एंव कष्ट सहते हुए ईश्वर के वचन को फैलाया। उनकी लगन एंव कठोर परिश्रम के फलस्वरूप ईश्वर का वचन अधिक लोगों तक पहुँचा। प्रभु येसु हमे भी यह आदेश देते है कि हम भी ईश्वर का वचन फैलाये। ख्रीस्तीय होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि हम इस कार्य मे अपनी भागीदारी प्रदान करे। हमें न केवल ईश्वर का वचन सुनना वरन हमें इसका पालन भी करना है एंव इस हेतु संत याक़ूब अपने पत्र1:25 मे कहते है “आप लोग अपने को धोखा नहीं दे वचन के श्रोता ही नहीं बल्कि उसके पालनकर्ता भी बने।”हमें वचन को सुनना है, उसका पालन करना एंव दूसरों को ऐसा करने हेतु प्रोत्साहन देना है। तभी हम ईश्वर के आदेश को पूरा कर पायेंगे।

परंतु हमे ईश्वर के वचन के प्रचार-प्रसार हेतु एक बात पर विशेष ध्यान देना है वह है प्रार्थना। सुसमाचार मे हम पाते है कि येसु बडे सबेरे उठकर घर से निकले और किसी एकांत स्थान जाकर प्रार्थना करते रहे एंव प्रार्थना करने के पश्चात वह अपने मिशन कार्य मे लग जाते हैं। प्रभु येसु पिता ईश्वर से बल एंव शक्ति पाकर सुसमाचार का प्रचार करते है। यह हमे इस बात को समझाती है कि अगर हमे सुसमाचार का प्रचार करना है, तो प्रार्थना के द्वारा ईश्वर से जुडे रहना है और उनसे बल एंव शक्ति पाकर वचन का प्रचार करना है। यह कार्य इतना आसान नहीं है इस कार्य हेतु हमे अत्याचार व कष्टों के मार्ग से गुजरना पड़ेगा। परन्तु हमें इन सब बातों से डरने की अवश्यकता नही है क्योंकि प्रभु येसु हमारा साथ देगें। यह बात हमे मत्ती28:20 में देखने को मिलती है जहाँ लिखा है “मैने जो-जो आदेश दिये है तुम लोग उनका पालन करना मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।” इस बात का आश्वासन स्वयं प्रभु येसु ने दिया है।

आइये हम इन बातों पर विचार करें। एंव ईश्वर से आशिष मांगे कि ईश्वर के वचन को हम सुने उसका पालन करें एंव वचन के प्रचार हेतु हरसंभव प्रयास करे। ईश्वर के साथ प्रार्थना द्वारा अपना संबध मजबूत बनाये रखें एंव अपने सभी कार्य प्रभु की आशिष के द्वारा शुरू करें। आमेन।