निर्गमन 34:4-6, 8-9; 2 कुरिंथियों 13:11-13; योहन 3:16-18
ख्रीस्त में मेरे प्यारे भाइयों बहनों, हम ईसाई लोगों की प्रथा है कि जब भी हम अच्छे कार्य की शुरुआत करते हैं, उसके पहले हम प्रार्थना करते हैं, ईश्वर की आशीष मांगते हैं। प्रार्थना की शुरुआत और अंत हम पिता पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर करते हैं, अर्थात प्रार्थना के शुरू और अंत में पवित्र त्रित्व का नाम लेते हैं। जब भी हम ऐसा करते हैं, हम ईश्वर के उपस्थिति का अनुभव करते हैं, हमें ईश्वर की आशिष मिलती है और हम त्रियेक ईश्वर में एक हो जाते हैं। हम विश्वास करते हैं और यह स्वीकार भी करते हैं कि एक ईश्वर है और एक ईश्वर में तीन जन हैं - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। यह काथलिक कलीसिया के चार सत्य में से प्रथम दो सत्य हैं। काथलिक कलीसिया हमें सिखाती है कि पिता सृजनहार है, पुत्र मुक्तिदाता है, और पवित्र आत्मा पवित्र अर्थात परिशुद्ध करने वाला है।
आज जब हम पवित्र त्रित्व का पर्व मनाते हैं, तो हमारे लिए उचित और आवश्यक है कि पवित्र त्रित्व के कार्यों पर मनन चिंतन करें और उनके प्रति अपना आदर दिखाएं। उत्पत्ति ग्रंथ अध्याय एक पद संख्या दो में हम पढ़ते हैं कि ईश्वर ने संसार की सृष्टि की। उत्पत्ति ग्रंथ अध्याय 1 पद संख्या 31 में हम पढ़ते हैं, कि ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उसको अच्छा लगा। जब हम किसी अच्छी वस्तु को देखते हैं तो हम बहुत खुश हो जाते हैं। पिता ईश्वर को हम से भी अधिक खुशी का अनुभव हुआ था। लेकिन, ईश्वर को अच्छा नहीं लगा, जब संसार भ्रष्टाचारी और हिंसा से भर रहा था। उत्पत्ति ग्रंथ अध्याय 6 पद संख्या 12 में लिखा है, ईश्वर ने देखा कि संसार भ्रष्टाचारी हो गया है, क्योंकि, सब शरीर धारी कुमार्ग पर चलने लगे थे। इन सब के बावजूद भी ईश्वर ने हमसे नाता नहीं तोड़ा, बल्कि एक योजना तैयार किया, कि कैसे मानव जाति को उनके कुमार्ग से बाहर लाया जाए। इसी योजना को हम आज के सुसमाचार संत योहन अध्याय 3 पद संख्या 16 में पढ़ते हैं, “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने इकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमें विश्वास करता है, उसका सर्वनाश ना हो बल्कि अनंत जीवन प्राप्त करें।” ईश्वर ने अपने इकलौते पुत्र को इसलिए भेजा कि मानव जाति उसको देखकर कुछ अच्छे कार्य सीख सकें और अपने लिए पुण्य कमा सकें। इसलिए इस पृथ्वी पर रहते वक्त प्रभु येसु ने मानव जाति को समझाने के लिए कई चमत्कार एवं दृष्टांतों का उपयोग किया। फिर भी हम पापी मनुष्य समझ नहीं पाए। इसलिए अभी तक हम पाप की जंजीरों से जकड़े हुए हैं।
संत योहन के सुसमाचार अध्याय 14 पद संख्या 16 में प्रभु येसु कहते हैं, “मैं पिता से प्रार्थना करूंगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा, जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा।” फिर आगे अध्याय 14 पद संख्या 26 में प्रभु येसु कहते हैं, “परंतु वह सहायक वह पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम पर भेजेगा, सब कुछ समझा देगा। मैंने तुम्हें जो कुछ बताया वह उसका स्मरण दिलाएगा।”
प्यारे भाइयों बहनों, पवित्र त्रित्व हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं। यदि हम पवित्र त्रित्व में विश्वास ना करें और उनका नाम ना लें, तो हमारा शुभ कार्य अधूरा ही रह जाएगा। कोई पवित्र त्रित्व के आशीर्वाद से छूट ना जाए, इसलिए संत पौलुस कुरिंथियों को पत्र लिखते हुए याद दिलाते हैं, “प्रभु ईसा मसीह का अनुग्रह, ईश्वर का प्रेम तथा पवित्र आत्मा की सहभागिता आप सभी को प्राप्त हो।” आइए हम पवित्र त्रित्व के कार्यों पर विश्वास करने एवं एक ही ईश्वर पर अटल बने रहने के लिए प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करें।