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चक्र- अ – खजूर इतवार

इसायाह 50:4-7; फिलिप्पियों 2:6-11; मत्ती 26:14-27; 66

ब्रदर अनिल हेम्ब्रम (मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयों और बहनों खजूर पर्व अर्थात खजूर इतवार के समारोह के साथ हम पवित्र सप्ताह में प्रवेश करते हैं, इसे हम पुण्य सप्ताह भी कहते हैं। खजूर पर्व को मनाने के लिए हम राख बुधवार के दिन से अपने आप को तैयार करते आ रहे हैं। खजूर पर्व येरुसालेम में महिमा के साथ येसु के प्रवेश का महोत्सव है। मसीह के आगमन की भविष्यवाणी जकर्या के ग्रंथ अध्याय नौ पद संख्या नौ में पाते हैं, लिखा है “सियोन की पुत्री! आनंद मना! येरुसालेम की पुत्री! जयकार कर! देख! तेरे राजा तेरे पास आ रहे हैं! वह न्याय और विजयी हैं। वह विनम्र हैं। वह गदहे पर, बछड़े पर, गदही के बच्चे पर सवार हैं।” आज वह भविष्यवाणी खजूर पर्व के साथ पूर्ण होती है, जैसे कि जुलूस के पहले संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार अध्याय 21 पद संख्या 5 से हमने सुअना है, “सियोन की पुत्री से कहो: देख! तेरे राजा तेरे पास आते हैं। वह हम विनम्र हैं। वह गदहे पर, बछड़े पर, लद्दू जानवर के बच्चे पर सवार हैं।”

अब सोचने वाली बात है, कि प्रभु येसु अपनी सवारी के लिए गदहे को ही क्यों चुनते हैं? हाथी, घोड़ा या अन्य दमदार पशु या जानवर पर सवार होकर येरुसालेम में प्रवेश कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्यों? क्योंकि गदहे शांत स्वभाव का होता है, और प्रभु येसु स्वयं नम्र और विनीत हैं। उसमें किसी प्रकार का घमंड नहीं है। आज के तीनों पाठों के माध्यम से प्रभु येसु हमें नम्र बनने के लिए आमंत्रित करते हैं। आज के पहले पाठ से हमने सुना, “मैंने मारने वालों के सामने अपनी पीठ कर दी और दाढ़ी नोचने वालों के सामने अपना गाल। मैंने अपमान करने और थूकने वालों से अपना मुख नहीं छिपाया।’’

प्यारे भाइयों और बहनों कौन व्यक्ति मारने वालों के सामने अपनी पीठ कर देगा और दाढ़ी नोचने वालों के सामने अपना गाल, कौन अपमान और थूकने वालों से अपना मुख नहीं छिपायेगा? यह सब वही कर सकता है, जिसमें नम्रता की भाव हो। आज के दूसरे पाठ में हम देखते हैं कि ईश्वर ने प्रभु येसु को महान बनाया और उनको वह नाम प्रदान किया जो सब नामों में श्रेष्ठ है। पिता ईश्वर ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि प्रभु येसु जन्म से लेकर क्रूस मरण तक आज्ञाकारी और नम्र बने रहे। इसलिए संत पौलुस फिलिप्पियों को पत्र लिखते हुए अध्याय 2 पद संख्या 5 में कहते हैं, “आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें।’’ आज के सुसमाचार में हमने सुना, येसु का मजाक उड़ाया गया, उसे मारा-पीटा, मुंह पर थूका और अंत में उसे क्रूस पर लटका कर इस संसार से विदा कर दिया। लेकिन, प्रभु येसु ने जवाब में किसी को एक अपशब्द भी नहीं बोला।

प्यारे भाइयों और बहनों, यह प्रभु येसु की महान नम्रता है। संत मत्ती के सुसमाचार अध्याय 11 पद संख्या 29 में प्रभु येसु कहते हैं, “मुझसे सीखो, मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं।”

आइए, हम प्रभु येसु से नम्र बनने के लिए प्रार्थना करें, कि प्रभु हमें नम्र बनने के लिए प्रचुर मात्रा में साहस, शक्ति, एवं कृपा प्रदान करें।