Kapil Dev

चक्र- अ – पुण्य गुरुवार - शाम का मिस्सा बलिदान

निर्गमन 12:1-8, 11-14; 1 कुरिन्थियों 11:23-26; योहन 13:1-15

ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में, मेरे प्रिय भाइयो और बहनो, आज के पाठों में हमें ईश्वरीय प्रेम का प्रमाण देखने को मिलता है। ईश्वर जिसे प्यार करता है, वह उनसे एक अटूट रिश्ता बना लेता है। वह उन्हें गलती करने पर दंड तो देता है, परंतु उन्हें कभी छोड़ता नहीं है। वह उन्हें कुछ समय के लिए अपनी असीम आशिषों एवं वरदानों से वंचित रखता है, परंतु उसका ह्रदय अपने भक्तजनों की पीड़ाओं को देखकर सदैव दया और प्रेम से उमड़ता रहता है।

हम पहले पाठ में देखते हैं कि फिराउन और मिस्रियों ने इस्राएलियों का शोषण और उन पर अनेक प्रकार से अत्याचार किया करते थे। जब इस्राएली जनता अपने पुरखों, इब्राहीम, इसहाक और याकूब के ईश्वर की दुहाई देती है, तब ईश्वर दया और प्रेम से द्रवित होकर इस्राएली जनता की पीड़ा की गुहार को सुनकर, फिराउन और मिस्रवासियों के बीच अनेकों घातक विपत्ति भेजकर, उन्हें दंड देता है और मिस्र के सभी पहलौठे, चाहे वह मनुष्य हो या पशु, उन्हें मृत्यु दंड देता है।

इस दुनिया में रहते समय प्रभु येसु अपनों को प्यार करते आ रहे थे। आज के पाठ में वे दुनिया का सबसे अनमोल प्रेम का अनोखा उदाहरण देते हैं। वे ईश्वर होने के बावजूद भी अपने आप को दास बना लेते हैं। उन्होंने मती. 11:29 में स्वयं कहा था, ‘मुझसे सीखो मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ’। इसलिए प्रभु येसु भोजन पर से उठ कर, अपने कपड़े उतार कर, कमर में अंगोछा बांधकर, परात में पानी लेकर, अपने शिष्यों के पैर धोते और पोंछते हैं। यह ईश्वर की ओर से अविश्वसनीय प्रेम का उदाहरण है। परंतु पेत्रुस इस बात को न समझते हुए बोलते हैं, “प्रभु! मैं अपने पैर आपको कभी नहीं धोने दूंगा”। पेत्रुस का यह कहना कहीं हद तक सही भी था क्योंकि कोई भी शिष्य अपने गुरु से कैसे पैर धुलवा सकता हैं! प्रभु येसु इस बात को स्पष्ट करते हुए योहन 13:8 में कहते हैं, “यदि मैं तुम्हारे पैर नहीं धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई संबंध नहीं रह जाएगा”। जब पेत्रुस ईश्वरीय संबंध की गहराई को समझते हैं तो बोल उठते हैं, “प्रभु! तो मेरे पैर ही नहीं मेरे हाथ और सिर भी धोइए”।

ईश्वर का प्रेम एक ऐसा अटूट रिश्ता है जो इंसानों की समझ के परे है, लेकिन जो ईश्वर के प्रेम की गहराई को समझता है उसके जीवन की नैया पार हो जाती है और उसे एक ऐसा मुकुट प्राप्त होता है जिसे उससे कोई चुरा नहीं सकता और ना ही छीन सकता है। परंतु जो ईश्वर के प्रेम को नहीं समझ पाता है, ईश्वर उसने साथ पक्षपात नहीं करते हैं। वे अपने कार्य को भलीभांति करते हुए यूदस के भी पैर उसी सम्मान व प्रेम से धोते और पोंछते हैं, जैस कि उन्होनें दुसरे शिष्यों के पैर धोये थे। इस प्रकार से प्रभु येसु ने अपने 12 शिष्यों के पैर धो कर यह संदेश दिया था कि वे गुरु होकर भी एक दास की तरह सेवा करने आए थे। आज इस परंपरा को माता कलीसिया बड़े हर्ष और उल्लास के साथ पुण्य गुरुवार को मनाती है। यह ख्रीस्तियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन और सेवा-स्वभाव का एक दिव्य उदाहरण है।

तत्पश्चात प्रभु येसु अपने शिष्यों के साथ अंतिम बार भोजन करने बैठते हैं। भोजन करते समय वे अपने शरीर और रक्त के द्वारा दो महान, पुरोहिताई और यूखरिस्त, पवित्र संस्कारों की संथापित करते हैं तथा उनकी स्मृति में यह किए जाने का आदेश भी देते हैं। जब-जब हम मिस्सा-बलिदान चढाते हैं, तब हम प्रभु येसु के द्वारा स्थापित की गयी इन पवित्र संस्करों की यादगारी करते है। इसलिए हम जब भी मिस्सा-बलिदान मे भाग लेते हैं हमें अपने आप को योग्य बनाना है और पुरे ह्र्दय से, पवित्रता के साथ प्रभु येसु को परम प्रसाद के रूप मे ग्रहण करना है।