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चक्र- अ – चालीसा काल का चौथा इतवार

1समूएल 16:1, 6-7,10-13; एफेसियों 5:8-14; योहन 9:1-41

ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल धर्मप्रान्त)


परम आदरणीय ख्रीस्तीय विश्वासी भाईयो एवं बहनो, चालीसा काल के चौथे इतवार में माता कलीसिया हमें एक बार फिर से याद दिलाती है कि पिता ईश्वर हम से बहुत प्यार करते हैं और हम से आशा करते हैं कि हम उस प्यार भरे रिश्ते को बरकरार रखें। हम जानते हैं कि रिश्ता तभी आगे बढ़ता या मजबूत होता है जब एक दूसरे में आपसी सामंजस्य या सहयोग होता है। तो हमारा कर्त्तब्य बनता है कि हम ईश्वर के साथ उस रिश्ते को दिन प्रति दिन मजबूती प्रदान करते रहें।

जैसे-जैसे हम प्रभु के पास्का महोत्सव को मनाने के नजदीक पहुँच रहे हैं हमारी तैयारी में भी गहराई बढ़ती जा रही है। आज के पाठों में हमसे आहवान किया गया है कि हम सही मायने में, वास्तविक रुप से तैयारी करें। और वह है आंतरिक तैयारी, हमारे हृदय की तैयारी जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है। पवित्र वचन कहता है - प्रभु के मंदिर में वही रह पाएगा जिनका हाथ निर्दोष और हृदय निर्मल है। (स्तोत्र 24:2-3)

हम जानते हैं कि हमारे मानव शरीर में हृदय एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। इसलिए ईश्वर ने हमारी रचना के समय बड़े सूझ - बूझ के साथ इसका निर्माण किया और इसे मजबूत हडिडयों से छिपा के रखा है ताकि इसे कोई चोट न लगे। पवित्र बाईबल में कई बार हृदय के बारे में कहा गया है जो कि हृदय की महत्वपूर्णता को दर्शाता है। हृदय मनुष्य के शरीर का केन्द्र बिन्दु या मुख्य अंग है जहां से मनुष्य के सारे सोच-विचार और मनोभाव उत्पन्न होते हैं। अतः निश्कपट हृदय का होना अति आवश्यक है। क्योंकि पवित्र वचन कहत है - धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे। (मत्ती 5:8)

आज के पहले पाठ में नबी समूएल बेथलेहेम निवासी यिशय के यहां उसके पुत्रों में से एक को राजा के रुप में अभिषेक करने के लिए भेजा जाता है। और वहां वह एलीआब को देखता है जिसका रंग - रुप सुन्दर और लम्बे कद का था, सोचता है कि उसी को ईश्वर ने चुना है। परन्तु ईश्वर ने उससे कहा, “उसके रुप - रंग और लम्बे कद का ध्यान न रखो मैं उसे नहीं चाहता। प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य तो बाहरी रुप - रंग देखता है, किन्तु प्रभु हृदय देखता है। (समुएल 16:6-7)

संत याकुब भी अपने पत्र (2:1-4) में बड़े ही सुन्दर ढंग से बताते हैं कि किसी व्यक्ति के कीमती वस्त्र का ध्यान रखकर उसे प्रमुख आसन पर बैठाना और फटे पुराने कपड़े पहने कोई कंगाल को नीचे बैठाकर अपमानजनक भेदभाव नहीं करना चाहिए। क्या हम भी अपने जीवन में जाति, रंग, भाषा, संस्कृति, लिंग, गरीब, अमीर, आदि के आधार पर भेद भाव करते हैं?

आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस एफेसियों को लिखते हुए कहते हैं कि वे पहले अंधकार में थे, अब वे प्रभु के शिष्य होने के नाते ज्योति बन गए हैं। इसलिए ज्योति की संतान की तरह आचरण करें, और ऐसा जीवन बिताएं जो कि प्रभु को प्रिय है।

आज का पवित्र सुसमाचार जन्मान्ध को दृश्टिदान, और फरीसियों का अन्धापन के माध्यम से आध्यत्मिक दृश्टि पर मनन चिंतन करने के लिए बाध्य करती है। जन्मान्ध को दृश्टिदान के द्वारा ईश्वर की महिमा को देखने के बजाय फरीसी लोग यह सवाल उठाते हैं कि वह किसके पाप के कारण अंधा जन्म लिया था?

मानव स्वभाव ऐसा है कि हम अक्सर दूसरों की गलती एवं बुराई खोज निकालने की कोशिश में लगे रहते हैं। आज के पाठ के माध्यम से प्रभु येसु अपने अंतःकरण को देखने के लिए आहवान करते हैं। हम अपने आप में झांकने का प्रयास करें कि मुझमें ऐसा क्या है जो मुझे अंधा बनाता है। मेरा गुस्सा, बुरी सोच, बुरी आदतें, आलस्य आदि। शुभ संदेश तो यह है कि हमने प्रभु येसु का अनुसरण करने का, उसकी रोशनी पर चलने का फैसला लिया है और यह विश्वास, आशा और मुहाब्बत हमारी आध्यत्मिक दृश्टि को अनंत जीवन की ओर बढ़ने के लिए मजबूत करेगा।

तो आईये हम सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर की ओर आँखें उठाएँ, वो हमारी वास्तविक स्थिति को जानते हैं। उनसे प्रार्थना करें और कहें कि प्रभु मैं स्वभाव से पापी हूँ। मुझ पापी पर दया कर। मैंने अपने मन वचन और कर्म से आपके विरुद्ध पाप किया है। मैं अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से आप को प्यार करने में असफल रहा। मैंने अपना हृदय को कई सारी दुश्टताओं से अशुद्ध किया। हे ईश्वर मुझे क्षमा कर, मुझे पूर्ण रुप से धो डाल, मेरा ह्नदय फिर से शुद्ध कर, अपने सान्निध्य से मुझे दूर न कर और अपने पवित्र आत्मा से वंचित न कर। आमेन