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चक्र- अ – चालीसे का तीसरा रविवार

निर्गमन ग्रंथ 17: 3-7; रोमियों 5:1-2, 5-8; योहन 4:5-42

ब्रदर स्तानिसलास लकडा (अम्बिकापुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्रिय माता-पिताओ, भाईयो एव बहनो, आज हम चलीसा काल के तीसरे रविवार में प्रवेश करते हैं। आज माता कलीसिया हमें मुक्तिदाता को ओैर उसके महान कार्यो को पहचानने के लिए बुलाती है।

पानी बुनियादी जीवन के लिए बहुत जरुरी है। हमने अपने गावों, शहरों एवं कस्बों में पानी की कमी को महसूस किया होगा। निर्गमन ग्रंथ से आज का पहला पाठ कहता है कि इस्राएल के लोग पर्वत पर मूसा से पानी की कमी के बारे में शिकायत करते हैं। होरेब पर्वत में ईश्वर के हस्तक्षेप से उन्हें पानी मिल जाता है।

आज के सुसमाचार में हम समारी स्त्री के बारे में सुनते हैं जिसकी मुलाकात येसु के साथ कुएं के पास हो जाती है। वह स्त्री दोपहर की गर्मी के बीच में कुएं के पास आती है ताकि अपने शहर की अन्य स्त्रियों की नजरों से बच सके, क्योंकि वह एक पापिनी स्त्री थी। येसु उसके साथ थोड़ी देर बात करते हैं, और वह इस आकस्मिक परिवर्तनकारी बातचीत से गहराई से प्रभावित होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि येसु के साथ बात करने का तथ्य ही उसे छू गया। वह तथ्य यह है कि वह एक सामरी थी और येसु एक यहूदी थे। यहूदी सामरी स्त्रीयों से बात नहीं करते थे।

लेकिन यहाँ कुछ और भी बात थी जो येसु ने कहा था जिसका उस पर गहरा असर पड़ा। जैसा कि वह स्त्री खुद हमें बताती है, “उसने मुझे वह सब कुछ बताया जो मैंने किया है”। वह न केवल इस बात से प्रभावित थी कि येसु उसके अतीत के बारे में सब कुछ जानता था। इस मुलाकात में साधारण तथ्य के अलावा और भी बहुत कुछ है। येसु ने उसे उसके पिछले पापों के बारे में बताया था। वास्तव में उसे छू लेने वाली बात यह भी थी कि येसु ने, उसके पिछले जीवन के सभी पापों और उसके टूटे हुए रिश्तों को जानने के बाद भी, उसके साथ सम्मान और गरिमा का व्यवहार किया। यह उसके लिए एक नया अनुभव था! हम निश्चित कर सकते हैं कि वह स्त्री प्रतिदिन सामुदायिक शर्म का अनुभव करती थी। वह जिस तरह से अतीत में रहती थी और जिस तरह से वह वर्तमान में जी रही थी, वह स्वीकार्य जीवन शैली नहीं थी। और वह इसके लिए शर्मिंदगी महसूस करती थी, जैसा कि पहले बताया गया है। यही कारण था कि वह स्त्री दोपहर में कुएं पर आयी थी जबकि साधारणत: स्त्रियाँ सुबह या शाम को पानी लेने जाती हैं। वह दूसरों से अलग रहती थी। लेकिन यहाँ येसु था जो उसके बारे में सब कुछ जानता था। फिर भी उसे संजीवन जल देना चाहता था। वह उस प्यास को तृप्त कराना चाहता था जो वह अपनी आत्मा में महसूस कर रही थी। जैसे ही उस स्त्री ने येसु से बात की, और येसु की नम्रता और स्वीकृति रूपी व्यवहार का अनुभव किया, वह प्यास बुझने लगी।

उसकी प्यास इसलिए बुझना शुरू हो गया कि उसे वास्तव में उसी चीज की जरूरत थी, जो हम सभी को चाहिए, और वह है येसु का पूर्ण प्रेम और स्वीकृति, जो येसु प्रदान करता है। दिलचस्प बात यह है कि महिला कुएं के पास अपना पानी का घड़ा छोड़ दिया। उसे वह पानी नहीं मिला जिसके लिए वह आयी थी। प्रतीकात्मक रूप से, कुएं पर पानी के घड़े को छोड़ने का कारण इस बात को संकेत करता है कि येसु के साथ मुलाकात के बाद उसकी आन्तरिक प्यास बुझ गई थी। अब वह प्यासी नहीं थी, वह आध्यात्मिक रूप से बोल रही थी। येसु ही संजीवन जल का स्रोत है। आज हमें अपने भीतर मौजूद आध्यात्मिकता की प्यास पर चिंतन करने की जरूरत है। यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम भी अपने पीछे बहुत से घड़े छोड़ देंगे जो बहुत लंबे समय तक हमें संतुष्टी प्रदान नहीं दिला पायी।

ख्रीस्त में प्रिय माता-पिताओं आज येसु अपने बातचीत में एक सरल पद्धति का पालन करते हैं जिसका सभी माता-पिताओं, शिक्षकों, प्रचारकों को अपने वर्तालप में प्रयोग करना चाहिए। उस स्त्री के बारे में पूरी जानकारी होने के बावजूद भी येसु उस स्त्री के पति को बुलाने को कहते हैं। ऐसा करने का उद्देश्य अतीत के दर्द को ठीक करने का था और अपने मिशन कार्य में भेजने का था।

इस मुलाकात का एक आकर्षक पहलू यह भी है कि उसने येसु से कुएं के पास मिलने की उम्मीद नहीं की थी, और दुनिया के उद्धारकर्ता येसु यहाँ अपने आप को प्रकट करता है जिससे वह स्त्री गांव के सामने यह घोषणा कर सके, “आओ और देखो उस मनुष्य को जिसने मुझे वह सब बताया जो मैंने कभी किया है। क्या वह मसीहा तो नहीं है?” येसु धीरे-धीरे अपने बारे में उसे बताता है कि वह मसीह है जिसका इस्त्राएली इंतजार कर रहे हैं।

मुझे विश्वास है कि येसु लगातार हम प्रत्येक के साथ इसी तरह बात करता है। यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि ईश्वर हमारे साथ हमारे ज्ञान, धर्मशास्त्र, कला के आधार पर नहीं, बल्कि जिस स्थिति में हम हैं, उसी स्थिति में हम से बात करना चाहता हैं। प्रश्न यह है कि क्या हम उसकी बातों तथा उसके वचनों पर ध्यान देते हैं?

येसु को इस दुनिया में भेजने का मुख्य उद्देश्य हमारे लिए ईश्वर की चिंता और उसके प्रेम को समझाना था। ईश्वर का प्रेम स्थायी, अपरिवर्तनीय और निश्चित रूप से बिना किसी शर्त का है। समारी स्त्री का दृष्टांत आज हमें यह बताता है कि ईश्वर हमसे मिलना चाहता है जिस स्थिति में हम हैं, चाहे हम पाप की स्थिति में ही क्यों ना हो।

ख्रीस्त में आदरणीय माता-पिताओं और भाइयों एवं बहनों, हमें यह देखने की जरूरत है कि हम कितना ज्यादा उत्साहित और उत्तेजित है उस जल को प्राप्त करने के लिए जिसका स्रोत प्रभु येसु है। आज येसु उस समारी स्त्री के माध्यम से हमसे यह वादा करता है कि जो वचन सुनता और येसु को अपने हृदय में ग्रहण करता है, उसे कभी भी प्यास नहीं लगेगीं क्योंकि येसु ही संजीवन जल का स्रोत है।