उत्पत्ति 2:7-9, 3:1-7; रोमियों 5:12-19; मत्ती 4:1-11
ख्रीस्त में प्यारे भाइयो एवं बहनो, आज के पहले पाठ में मनुष्य के पतन के बारे में जिक्र किया गया है। आज संसार भर के लोग विलासितापूर्ण जीवन, पैसा, दौलत, खूबसूरती, आकर्षण, नाम और शोहरत के पीछे भाग रहे है। क्योंकि संसार बहुत लुभावना है। ठीक उसी तरह हम आज के पहले पाठ में देखते है फल बहुत सुंदर, स्वादिष्ट व लुभावना होने के कारण आदि मानव पाप का शिकार हो जाते हैं। परिणामतः उनकी आखें खुल गई और उन्होंने देखा कि वे नंगे हैं अर्थात पाप के बाद उनकी दृष्टि एक दूसरे की नग्नता की ओर गई और वे दुनियाई दृष्टि से एक दूसरे को देखने लगे। पाप के बाद उनकी दृष्टि प्रदूषित हुई तथा वे नग्नता देखने में ज्यादा रुचि लेने लगे। आज की आधुनिक परिस्थिती भी कुछ ऐसे ही है।
आज का दूसरा पाठ हमें पाप के परिणाम के बारे में बताता है। रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र 6:23 में वचन कहता है पाप का वेतन मृत्यु है। यानी जो पापमय जीवन जीता है, वह मृत्यु को अपनाता है। यदि हम संसार में परिर्वतन चाहते है तो खुद को बदलना होगा। तभी समाज या कलीसिया बदलता नजर आएगा। संसार में एक व्यक्ति द्वारा पाप का प्रवेश हुआ और एक ही व्यक्ति द्वारा पाप मुक्ति हुयी। थेसलनीकियों के नाम पहला पत्र 5:10 में वचन स्पष्ट रूप से कहता है, “मसीह हमारे लिए मरे जिससे हम चाहे जीवित हों या मर गये हों, उन से संयुक्त होकर जीवन बितायें”। आगे योहन रचित सुसमाचर 3:16 में वचन कहता है ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।“
आज का सुसमाचार हमें पाप की प्रकृति पर मनन चिंतन करने के लिए आमन्त्रित करता है। येसु के जीवन में पिता के प्रति निरंतर समर्पण था। योहान के सुसमाचार 4:34 में प्रभु येसु कहते हैं “जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है”। आगे उसी सुसमाचार 6:38 में प्रभु कहते है “मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ”।
येसु के सामने जो प्रलोभन या परीक्षा आये वे ईश्वर को अस्वीकार करने के लिए थे। चाहे पाप छोटा हो या बड़ा हो ईश्वर की अस्वीकृति और शैतान की स्वीकृति है। प्रभु ईश्वर ने आदम तथा अय्यूब को भी प्रलोभन में पड़ने के लिए अनुमति दी। ऐसे कई उदाहरण हमें पुराने विधान में देखने को मिलते हैं। ठीक उसी तरह हम आज के सुसमाचार में देखते हैं। जीवन एक संघर्ष है जहाँ सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय, भलाई-बुराई और अंधकार-प्रकाश इत्यादि है और मानव इन वास्तविकताओं से जुझ रहा है।
तो ख्रीस्त में प्यारे भाइयो एवं बहनो, बुराई, अन्याय, अंधकार तथा प्रलोभन इत्यादि पर विजय पाने का सर्वोत्तम माध्यम है: प्रार्थना और ईश्वर का वचन। क्योंकि आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ने चालीस दिन की प्रार्थना, उपवास और ईश्वर के वचन के बल पर शैतान को हराया। क्योंकि संत पौलुस एफेसियों के नाम पत्र 6:17 में ईशवचन को आत्मा की तलवार कहते है। और इब्रानियों के पत्र 4: 12 में ईश्वर के वचन को दुधारी तलवार से तेज कहा गया है।