निर्गमन 12:1-8, 11-14; 1 कुरिन्थियों 11:23-26; योहन 13:1-15
वह हमारे ही दुखों से लदा हुआ था... हमारे पापों के कारण छेदित किया गया है। हमारे कुकर्मों के कारण कुचल दिया गया है...." ( इसायाह 53:4-5)
ख्रीस्त में प्यारे भाइयों और बहनों, पुण्य शुक्रवार एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन खुशी का है और साथ-साथ दुःख का भी दिन है। यह दिन खुशी का है क्योंकि इस दिन प्रभु येसु ने स्वर्गिक पिता की इच्छा को पूरा करते हुए हमें पापों से मुक्त किया। यह दिन दुःख का भी है क्योंकि इस दिन प्रभु येसु को अपने ही लोगों ने क्रूस पर चढ़ाया।
क्रूस पर आकाश और पृथ्वी के बीच टंगे हुए येसु ने कहा "सब कुछ पूरा हो चुका है"। इन शब्दों को कहकर प्रभु येसु ने अपना सिर झुका कर अपने प्राण त्याग गिये। इन अंतिम शब्दों से हमारे विचारों की शुरुआत होनी चाहिए। उन्हें मन में रखकर हम प्रभु येसु के दुःख-भोग और मृत्यु का अर्थ समझने की कोशिश करेंगे। आज के ही दिन प्रभु येसु ने मानव जाति के लिए अपना जीवन का बलिदान कर दिया। उनके आत्मत्याग के कारण ही आज हमें मुक्ति प्राप्त हुयी है। आज हमें प्रभु येसु का दुःख भोग तथा मरण याद दिलाते हैं कि प्रभु ने कैसे मानव जाति को पापों की गुलामी से मुक्त किया। प्रभु येसु के दुखों पर हमें प्रतिदिन मनन करना चाहिए क्योंकि उन्हीं दुखों के द्वारा ही हमें मुक्ति मिली है।
हम पुराने विधान में निर्गमन ग्रंथ में अध्याय 1 से सुनते हैं कि ईश्वर अपनी चुनी हुई प्रजा को बहुत प्यार करता था। ईश्वर ने देखा कि यह प्रजा मिस्र में एक गुलामी का जीवन जी रही थी, फिराउन के क्रूर हाथों से दुःख और पीड़ा सह रही थी। लोगों ने ईश्वर से प्रार्थना की और यह प्रार्थना ईश्वर के कानों तक पहुंची। ईश्वर ने मूसा को एक मसीहा के रूप में उनके पास भेजा। मूसा लोगों को फिराउन की दासता से छुड़ाकर ईश्वर के दिखाए हुए देश में ले जाता है। इसी तरह हम नये विधान में सुनते हैं कि जब संसार में पाप बढ़ जाते हैं तब ईश्वर अपने इकलौते पुत्र प्रभु येसु को इस संसार में भेजता है ताकि वह सभी लोगों को उनके पापों से मुक्ति दिला सके। प्रभु येसु आज के दिन सभी मानव जाति के पापों के लिए क्रूस पर अपने प्राण समर्पित कर देते हैं।
हम पुराने विधान में गणना ग्रंथ 21:49 में पढ़ते हैं कि ईश्वर ने मूसा से कहा "कॉसे का सांप बनवाओ और उसे ठंडे पर लगाओ। जो सांप द्वारा काटा गया, वह उसकी और दृष्टि डालें और वह अच्छा हो जाएगा"। लोगों ने उसकी ओर देखा और वे चंगे हो गई। हम आज के पाठ में प्रभु येसु को स्वयं क्रूस पर टंगे देखते हैं। जो उसको देखकर विश्वास करता है उसके सभी पाप कलंक दूर हो जाते हैं। यह प्रभु येसु ने दुनिया के प्रेम के खातिर किया। उसे हमारे लिए मनुष्य के रूप में जन्म लेना पड़ा और क्रूस पर हमारे पापों के खातिर मरना पड़ा। हम योहन रचित सुसमाचार में ( 3:16) में सुनते हैं कि ईश्वर का प्रेम इतना महान था कि उसने अपने इकलौते पुत्र को संसार में मुक्ति हेतु भेजा ताकि जो उस पर विश्वास करेगा, अनंत जीवन प्राप्त करेगा। यह सब उन्होंने मानव जाति के प्रति अपने प्रेम के खातिर किया। मनुष्य के प्रति ईश्वर का महान प्रेम यही है। इसलिए पुण्य शुक्रवार के दिन ईश्वर के प्रेम को स्मरण करते हैं। इसी से प्रेरणा पाकर हमें प्रेम से जीवन जीना चाहिए।
ईश्वरीय प्रेम के कारण ही आज हम प्रभु येसु के गहरे प्रेम में बंधे हुए हैं। इस अटूट प्रेम को हमें हमेशा दूसरों को बांटना चाहिए। यह प्रेम हर एक के जीवन में परिवर्तन लाता है। जब हम प्रभु येसु के दुःख भोग और मरण पर मनन चिंतन करते हैं तो यही प्रेम हमारे हृदय की गहराई को स्पर्श करना चाहिए।
हम लूकस रचित सुसमाचार 23:34 में सुनते हैं कि क्रूस पर टंगे येसु ने कहा "पिता उन्हें क्षमा कर, क्योंकि यह नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं”। जिन्होंने भी प्रभु येसु को सताया, दुःख पीड़ा और यातना दी, उन सभी को प्रभु येसु क्षमा करते हैं। प्रभु येसु के जीवन का नियम ही सभी को प्यार करना था। इसका पालन वे अपने जीवन के अंतिम क्षण तक करते हैं। यह प्रभु येसु की महान सच्चाई है। इससे हमें यह सीखना चाहिए कि जिस तरह प्रभु येसु ने दुःख पीड़ा व दर्द का प्रेम पूर्वक सामना किया, उसी तरह हमें भी अपने जीवन की दुःख पीड़ा, यातना और परेशानियों का प्रेम पूर्वक सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्रभु येसु आशीर्वचन में मती रचित सुसमाचार अध्याय 5 वाक्य 11 में कहते हैं, “मेरे कारण तुम लोगों का अपमान किया जाएगा, तुम्हारे ऊपर तरह-तरह के झूठे दोष लगाए जाएंगे, अत्याचार किया जाएगा।” हमें इन सभी का प्रेम से, धीरज से सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
इसी कृपा की याचना करते हुए, आइये हम आज की पुजनविधि में भाग लें। आमेन।