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चक्र- अ – पास्का काल का पाँचवा रविवार

प्रेरित चरित 61-7; 1 पेत्रुस 2:49; योहन 14:1-12

ब्रदर अमित भूरिया (झाबुआ धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयों और बहनों आज के सभी पाठों में विश्वास पर बल दिया गया है। हम सभी भाई-बहन उसी विश्वास के कारण ही प्रभु येसु से जुड़े हुए हैं एवं अपने विश्वास को मजबूत बनाए रखने का हमेशा प्रयत्न करते रहते हैं। आज के सुसमाचार के पहले वाक्य में लिखा है "तुम्हारा जी घबराए नहीं, ईश्वर में विश्वास करो और मुझ में भी विश्वास करो। विश्वास निराशा में आशा लाने का कार्य करता है लेकिन सवाल यह उठता है कि हमारे विश्वास की जड़ें मजबूत हैं या नहीं।

यदि हम अपने विश्वास में मजबूत नहीं बल्कि कमजोर है तो हम दो प्रकार से प्रभु में अपने विश्वास को गहरा कर सकते हैं।

पहला - ईश वचनों को हृदय से ग्रहण करना। रोमियों के नाम संत पौलुस के पत्र अध्याय 10 वाक्य 17 में पौलुस कहते हैं, “सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है और जो सुना जाता है, वह मसीह का वचन है”। सन्त योहन का सुसमाचार, अध्याय 4 में हम देखते हैं येसु का वचन सुनकर समारी स्त्री का विश्वास गहरा हो गया। लुकस का सुसमाचार, अध्याय 19 पद-संख्या 1 से 10 में हम देखते हैं जहाँ येसु से बातें करते-करते नाकेदार जकेयुस का विश्वास मजबूत बन गया| इस प्रकार येसु के वचनों को सुन कर बहुत से लोगों में विश्वास उत्पन्न हुआ या उनका विश्वास गहरा हो गया। प्रभु येसु ने कई महान चमत्कार दिखाए हैं। अपने शब्द मात्र से ही उन्होंने मुर्दों को जीवन-दान दिया। प्रभु की वाणी को सुनने वालों ने प्रभु का सामर्थ्य देखा। प्रभु येसु ने लाजरुस को मृतकों में से जिलाया, जेरूस की बेटी को जीवनदान दिया – उन्होंने केवल अपने शब्द मात्र से यह सब कुछ किया। इसलिए हमें प्रभु की वाणी पर विश्वास करना चाहिए।

विश्वास बढ़ाने का दूसरा तरीका है प्रार्थना करना। लुकस अध्याय 17 वाक्य 5 में हम पढ़ते हैं कि प्रेरितों ने अपने विश्वास की कमी को महसूस कर प्रभु येसु के पास जा कर उनसे याचना की, 'हमारा विश्वास बढ़ाइए’। हम लोगों को भी इसी प्रकार प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रभु हमारे विश्वास को बढ़ाए क्योंकि विश्वास ईश्वर का ही वरदान है। ईश्वर में विश्वास करने से हमारी घबराहट दूर हो जाती है। इसलिए प्रभु कहते हैं, ’तुम्हारा जी घबराए नहीं’। विश्वास करने वालों को ईश्वर की उपस्थिति का एहसास होता है तथा वे निडर बनते हैं।

रोमियों के नाम पत्र अध्याय 8 वाक्य 31 में संत पौलुस विश्वास के साथ कहते हैं यदि ईश्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे विरुद्ध होगा? बालक दाऊद विश्वमंडल के प्रभु ईश्वर पर विश्वास करता था जो उसे तथा उसकी भेड़ों को खतरनाक जंगली जानवरों से बचाता था। इसलिए, वह निडर होकर गोलियत के सामने खड़े होकर उसके ललकार का सामना करता है और ईश्वर की कृपा से उसे मार गिराता है। यदि हम भी प्रभु ईश्वर पर विश्वास करेंगे तो अपनी परेशानियों के सामने नहीं घबरायेंगे बल्कि निडर होकर उनका सामना करेंगे।

इस प्रकार ईशवचनों को हृदय से ग्रहण करके एवं प्रार्थना के द्वारा हम हमारे विश्वास को प्रभु में गहरा कर पायेंगे। ईश्वर के वचनों को सुनकर हम अपने जीवन को सही दिशा दे पाते हैं। एफेसियों के नाम पत्र अध्याय 6 वाक्य 17 में हम पढ़ते हैं "मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार अर्थात ईश्वर का वचन ग्रहण करें”। हम इन वचनों को स्वीकार करते हुए जीवन की सभी कठिनाइयों का सामना करने के लिए हमेशा तत्पर रहें। ईशवचन ऐसी तलवार है जिसके माध्यम से हम शैतान के षड्यंत्र को विफल कर सकते हैं। हम प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करें कि प्रभु हमारे हृदय के द्वार को खोल दें ताकि हम प्रभु वचनों को अपने हृदय में ग्रहण कर सकें और अपने विश्वास में दृढ़ हो सकें।