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चक्र- अ – पास्का का दूसरा इतवार

प्रेरित-चरित 2:42-47; 1 पत्रुस 1:3-9; योहन 20:19-31

ब्रदर अभिषेक चरपोटा (इन्दौर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त मे मेरे प्रिय भाईयों और बहनों, आज के पवित्र सुसमाचार को ध्यान में रखते हुए हम थोमस, जो बारह में से एक शिष्य है, उसके जीवन की कुछ विशेषताओं पर मनन चितन करें। पहली विशेषता यह है कि थोमस डरा हुआ नहीं था। दूसरी विशेषता - थोमस येसु का अनुभव पाना चाहते हैं। तीसरी विशेषता - थोमस अपने संदेह को दूर करना चाहता है। और चौथी विशेषता - वह प्रभु के दुःख भोग का अनुभव करना चाहता है। आईए हम इन बिन्दुओं पर मनन करें।

पहली विशेषता थोमस डरा हुआ नहीं था:- आज के पवित्र सुसमाचार में हम सुनते हैं कि शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बन्द किये एकत्र थे। वाक्य 24 में कहा गया है कि “ईसा के आने के समय बारहों में से एक थोमस जो यमल कहलाता था, उनके साथ नहीं था”। थोमस यहूदियों से डरते नहीं थे। इसलिए जब अन्य सब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बन्द किये बैठे थे, तब थोमस बाहर निकल जाता है। संत योहन के सुसमाचार अध्याय 11: वाक्य 7-8 में लाज़रुस के बीमार होने के संदर्भ में हम सुनते हैं कि प्रभु ने अपने शिष्यों से कहा "आओ हम फिर यहूदिया चले।" शिष्य बोले, “गुरुवर कुछ ही दिन पहले तो यहूदी लोग आपको पत्थरों से मार डालना चाहते थे और आप फिर वहीं जा रहे हैं?" शिष्य, प्रभु के साथ रहते हुए भी बहुत डरे हुए थे और जब प्रभु उनके बीच से अपने पिता के पास चले गये तो शिष्य और भी डरे हुए थे। योहन 11:16 में थोमस जो यमल कहलाता था, अपने सहशिष्यों से कहा, "हम भी चलें और इनके साथ मर जायें।" इससे हमें स्पष्ट हो जाता है कि थोमस कितना साहसी था, यहाँ तक कि वह अपने प्राण भी प्रभु के नाम पर देने के लिए तैयार था।

दूसरी विशेषता - थोमस प्रभु येसु का अनुभव पाना चाहते हैं :- संत थोमस प्रभु का अनुभव करना चाहते है, वह प्रभु के हाथों में किलों का निशान और कीलों की जगह में पर उसकी उँगली रख कर और प्रभु की बंगल में उसका हाथ डाल कर अनुभव करना चाहते है। संत योहन के पहले पत्र अध्याय 1, वाक्य 1 में संत योहन कहते है "हमारा विषय वह शब्द है, जो आदि से विद्यमान था। हमने उसे सुना है। हमने उसे अपनी आँखो से देखा है। हमने उसका अवलोकन किया और अपने हाथों से उसका स्पर्श किया है।" संत थोमस प्रभु येसु को अपनी आँखो से देखना और अपने हाथों से स्पर्श करना चाहता है। किसी भी शिष्य के लिए प्रभु का अनुभव बहुत महत्व रखता है। वह अपने अनुभव के बल पर प्रभावशाली ढ़ंग से सुसमाचार सुना सकता है।

तीसरी विशेषता - संत थोमस अपने संदेह को दूर करना चाहता है। हमारे जीवन में भी बहुत सारे संदेह होते हैं जैसे कि - स्वर्ग-नरक, विश्वास और अविश्वास, दूतों और संतों, मृत्य और पुनरुत्थान जिनको हम जानना चाहते और अपने संदेह को दूर करना चाहते है। किसी ज्ञानी व्यक्ति से बात कर, कोई प्रवचन सुन कर या किताबें पढ़ कर हम इन संदे हों को दूर कर सकते हैं। लेकिन कई बार हम इन संदोहों दूर करने की कोशिश नहीं करते हैं। संत थोमस प्रभु के जीवन से जुड़े हुए संदेहों को प्रभु के दर्शन पा कर दूर करना चाहता है। कई बार हमारे मन में कुछ संदेह रहते है और हम अपने उन संदेहों को दूर करने हेतु गुरुजनों से पूछने से डरते या हिचकिचाते है और ऐसे संदेह हमारे मन में ही रह जाते हैं। जो विद्यार्थि सफल होना चाहता है, वह अपने संदेहों को दूर करने की कोशिश करता रहता है। इसी प्रकार जो शिष्य सफल होना चाहता है, वह भी विश्वास से संबंधित अपने सभी संदेहों को दूर करने की कोशिश करता रहता है। संत थोमस यही करता है।

चौथी विशेषता - संत थोमस प्रभु के दुःख भोग का अनुभव करना चाहता है। संत थोमस प्रभु के दुःखभोग और मृत्यु का अनुभव करना चाहता है। वह अपने विश्वास को मज़बूत करने के लिए किसी चमत्कार की माँग नहीं करता है, बल्कि प्रभु के घावों का अनुभव पाना चाहता है। इसायाह 53:5 में पवित्र वचन कहता है, “हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है। हमारे कूकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है। जो दण्ड वह भोगता था, उसके द्वारा हमें शान्ति मिली है और उसके घावों द्वारा हम भले-चंगे हो गये हैं।” संत थोमस भली भाँति जानता है कि प्रभु ने अपने घावों के द्वारा मानवजाति को मुक्ति दिलायी। प्रभु के मुक्तिदायक घाव हमारे लिए हमेशा प्रेरणास्रोत हैं।

इस प्रकार संत थोमस प्रभु में पूर्ण रूप से विश्वास करके प्रभु का अनुभव पा कर और उसके प्यार को दुनिया के हर एक कोने-कोने में हमारे बीच में प्रस्तुत करना चाहते है।

आइये हम भी प्रभु में अपने विश्वास को मजबूत करें और प्रभु का अनुभव करें तथा प्रभु के दर्शनों को प्राप्त करने के लिए अपने विश्वास को जगाये।