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चक्र- अ – आगमन का चौथा इतवार

इसायाह 7:10-14; रोमियो 1:1-7; मत्ती 1:18-24

ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल धर्मप्रान्त)


आज के सुसमाचार में एक अव्यवहारिक, अकल्पनीय और शर्मिंदा करने वाली सच्ची घटना का जिक्र किया गया है। एक कुँवारी का बिना किसी पु़रुष के साथ संसर्ग किए गर्भवती होना और बच्चा उत्पन्न करना मानवीय सोच में असंभव है परंतु ईश्वर के लिए सब कुछ संभव है। यही आसाधारण घटना का वर्णन आज के पाठों में किया गया है और वह है कुँवारी मरियम द्वारा बालक येसु का जन्म।

हम प्रभु येसु के जन्म का वर्णन संत मत्ती और लुकस के सुसमाचार में पाते हैं। आज का पाठ संत मत्ती द्वारा रचित सुसमाचार से लिया गया है जो कि लूकस के सुसमाचार से भिन्न है। जहां क्रिसमस कहानी, चरवाहों का संदेश, उनका भेंट, चरणी, गौशाला, ठंड में लम्बी यात्रा, आदि का जिक्र नहीं किया गया है। पर ज्योतिषियों के आगमन का विवरण मत्ती के सुसमाचार के दूसरे अध्याय में मिलता है। हम जानते हैं कि येसु के जन्म की घटना में मत्ती का सुसमाचार संत यूसुफ को अधिक महत्व देता है और स्वर्ग दूत यूसुफ को दिखाई देते हैं। जबकि लूकस के सुसमाचार में यह घटना माता मरियम के इर्द - गिर्द घूमता हुआ प्रतीत होता है और स्वर्ग दूत का संदेश मरियम को मिलता है। यह बात सच है कि दोनों सुसमाचारों की प्राथमिकता और मकसद अलग-अलग है।

यहूदी समाज में मंगनी (सगाई) को इतना अधिक महत्व दिया जाता था कि मंगनी के बाद वे दोनों पति-पत्नी कहलाते थे। परन्तु वे अलग-अलग रहते थे, और उसे रद्द करने के लिये त्याग पत्र आवश्यक था। पवित्र वचन कहता है, "ऐसा हुआ कि उनके एक साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गयी"। (मत्ती1:18) यह जानकर कि मरियम गर्भवती है यूसुफ हक्का-बक्का हो गया। वह मन ही मन सोचने लगा। पर अब तक उसे मरियम पर इतना भरोसा हो गया था कि वह उन्हें धोखा तो नहीं दे सकती है, परन्तु मरियम का बिना शारीरिक संबंध के गर्भवती हो जाना यूसुफ को असमंजस में डाल दिया था। यूसुफ मरियम को निर्दोष मानते थे, और उन्हें कचहरी में बुलाकर त्यागपत्र देना चाहते थे। दूसरी ओर वह कानून की दृष्टि से मरियम की सन्तान का पिता बनने का साहस भी नहीं कर पा रहे थे। वह समाज के सामने मरियम को बदनाम नहीं करना चाहते थे। अतः वह मरियम को चुपके से त्यागपत्र देकर अलग हो जाने का विचार कर रहे थे। परन्तु प्रभु का वचन कहता है कि ऐसी परिस्थिति में प्रभु का दूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहते हैं कि अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां लाने से नहीं डरें क्योंकि उनके जो गर्भ है वह पवित्र आत्मा से है। (मत्ती1:20) दूत के ये वचन यूसुफ के संदेह और समस्या दूर कर देते हैं। वे अपनी बुलाहट और भूमिका को भली-भाँति समझ लेते हैं। पवित्र ग्रंथ कहता है कि वे नींद से उठकर प्रभु के दूत की आज्ञानुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आते हैं।

हम जानते हैं कि पुराने विधान में कई बार प्रभु येसु के जीवन के बारे में उनके जन्म के कई साल पहले ही कहा गया है और आज के पहले पाठ में उसका एक अंश हम पाते हैं जहां राजा आहाज़ से कहा जाता है कि वे प्रभु ईश्वर से चिन्ह मांगें, पर वह मना कर देता है और ईश्वर उन्हें स्वयं एक चिन्ह प्रदान करने का आश्वासन देते हैं - और वह यह है, "एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र प्रसव करेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।" (इसा.7:14) यही उध्दरण संत मत्ती अपने सुसमाचार में लेते हैं। संत मत्ती स्पष्ट कर देते हैं कि इम्मानुएल का अर्थ है - ईश्वर हमारे साथ। और नबी इसायाह इम्मानुएल को - विजय का प्रतीक भी मानते हैं। (इसा. 8:9-1) बाईबल कहती है, "यह सब इसलिए हुआ कि नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था वह पूरा हो जाए।" इस तरह आज हम इस भविष्यवाणी को पूर्ण होते देखते हैं।

जिस प्रकार हमने कहा कि मत्ती का सुसमाचार यूसुफ केंद्रित सुसमाचार है तो आईए हम उनके जीवन पर मनन-चिंतन करें। यूसुफ की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं -

1. नम्र और सरल स्वभाव - सबसे पहले तो आज के पाठ से हमें यह प्रतीत होता है कि उनका जीवन नम्र और सरल स्वभाव का था। महान व्यक्ति की पहचान उनकी नम्रता और सरलता द्वारा की जा सकती है।

2. धार्मिक प्रवृत्ति - धार्मिक प्रवृत्ति यूसुफ का बहुत बड़ा गुण है। धर्मग्रंथ कहता है, "वह मरियम को बदनाम नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह धर्मी था।" धर्मी वही है जो सच्चाई और अच्छाई को धारण करता है। वह किसी की बुराई करना और सुनना पसंद नहीं करता है। वह समाज में अच्छा मानव बनकर लोगों से हट कर या अलग जीवन जीता है। वह नियमों का उचित रीति से पालन करता है।

3. पवित्र जीवन - यूसुफ का जीवन धार्मिक होने के साथ -साथ पवित्र मिजाज वाला था। जिस प्रकार हम जानते हैं कि आधे जल से भरा घड़ा छलकता और आवाज करता है। परन्तु यूसुफ एकदम शांत हैं। उन्हें अपने बारे में बताने की कोई आवश्कता नहीं।

4. आज्ञाकारिता - सपने में प्रभु ईश्वर के दूत से स्पष्टीकरण प्राप्त होने पर यूसुफ द्वारा बिना कोई सवाल किए येसु का पिता और मरियम का पति बनने के लिए राजी होना अपने आप में ईश्वर के समक्ष आज्ञाकारी होने का एक बेमिसाल उदाहरण है।

5. संकट में ईश्वर से सलाह - हमारा मानवीय स्वभाव यह है कि हम कोई संकट या संदेह की घड़ी में अपने माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार या मित्र विशेष से सलाह लेने की बात करते हैं। पर यूसुफ ने सीधे ईश्वर से ही सलाह ली।

6. वफादार श्ष्यि का उदाहरण - जब से उन्होंने दूत की आज्ञा स्वीकार की उनके जीवन में बहुत सारी समस्याएं एवं बाधाएं सामने आयीं। पर उन्होंने बड़े ही धैर्य एवं साहस के साथ उनका सामना किया। उन्होंने सम्पूर्ण रूप से अपने आप को ईश्वर की योजना के लिए समर्पित किया और अन्त तक अपनी वफादारी का परिचय दिया।

यूसुफ के जीवन के बारे में हम लम्बी -लम्बी बातें कर सकते हैं, लेख लिख सकते हैं, नाटक कर सकते हैं परन्तु सबसे ज्यादा आवश्यक बात यह है कि हम उनके किसी उदाहरण को हमारे जीवन में आत्मसात करें। माता मरियम का जिक्र नहीं किया गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसे इन्कार करते हैं परन्तु बात यह है कि ईश्वर की योजनानुसार येसु के जन्म में यूसुफ और मरियम दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दोनों ने अपना सर्वस्व ईश्वर की योजना के लिए समर्पित कर दिया। तो आईये हम भी अपने आप को उनके हाथों में सौंप दे जिससे कि वह हमें अपने मुक्तिदायक कार्यों का माध्यम बनाये।