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चक्र- अ – आगमन का तीसरा इतवार

इसायाह 35:1-6अ, 10; याकूब 5:7-10; मत्ती 11-2-11

ब्रदर संतोष कुमार (पोर्ट ब्लेयर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में प्रिय भाईयो एवं बहनो !

काथलिक कलीसिया में पूरे वर्ष अलग-अलग समय में हमें विशेष अवसरों के पूर्व आध्यात्मिक तैयारी के लिए आमंत्रित किया जाता है। अभी हम पूजन वर्ष के आगमन काल में हैं। यह समय हमारे लिए आध्यात्मिक तैयारी के लिए है ताकि हम अच्छे से क्रिसमस मना सकें। साथ ही प्रभु के अंतिम आगमन के लिए भी तैयार रहें। आज हमारी आध्यात्मिक तैयारी के लिए कलीसिया ने सुंदर पाठों को हमारे सामने रखा है।

दूसरे पाठ में जो कि याकूब के पत्र से लिया गया है, हम सुनते हैं कि हमें प्रभु के आने तक धैर्य से रहने की आवश्यकता है। जैसे एक किसान अपने खेत की फसल की बाट जोहता है, वैसे ही हमें हिम्मत नहीं हारने के लिए कहा जा रहा है। संत याकूब हमें शिक्षा देते हुए कहते हैं कि प्रभु की प्रतीक्षा करते हुए हमें एक दूसरे की शिकायत नहीं करनी चाहिए जिससे हम पर भी दोष नहीं लगाया जायेगा।

सुसमाचार में हमने सुना कि योहन बपतीस्ता बंदीगृह में था और जब उसने येसु के कार्यों के बारे मे सुना तो अपने शिष्यों को उनसे यह पूछने भेजा कि क्या आप वही हैं जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें? यह वही योहन है जिसे येसु का मार्ग तैयार करने के लिए भेजा गया था, और जब माता मरियम एलीज़बेथ से भेंट करने गयी थीं तो माता मरियम की आवाज सुनकर बच्चा गर्भ में खुशी से उछल पड़ा था; प्रभु के बपतिस्मा के समय उसने कहा था कि मुझे तो आप से बपतिस्मा लेने की जरुरत है और आप मेरे पास आते हैं, और जब बपतिस्मा के बाद स्वर्ग का द्वार खुल गया और पवित्र आत्मा कपोत के रूप में येसु के उपर ठहरा - योहन वही था जिसने आंखो से देखा था और कानों से सुना था। फिर भी वह संदेह कर रहा है। इसलिए उसने अपने शिष्यों को येसु के पास यह पूछने भेजा कि क्या आप वही हैं जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें? याद कीजिएगा कि योहन ने अपने उपदेश की शुरुवात यह बोल कर की थी कि- पश्चाताप करो, स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप का उचित फल उत्पन्न करो। अब पेडों मे कुल्हाड़ी लग चुकी है। जो पेड़ अच्छा फल नहीं देता, वह काटा और आग में झोंक दिया जाएगा। वे हाथों में सूप ले चुके हैं, जिससे वे अपना खलिहान ओसा कर साफ करें। वे अपना गेहूँ बखार में जमा करेंगें। वे भूसी को न बुझने वाली आग में जला देंगे। योहन की शिक्षा और येसु के जीवन में कोइ मेल नहीं दिखाइ देती है। इसीलिए योहन ने अपने शिष्यों को यह पूछने भेजा, कि क्या आप वही हैं जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें?

इस्राएल में लोग एक ऐसे मसीह के इंतजार में थे जो आग की बारिश से विधर्मियों का विनाश करेंगे और इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेंगे। लेकिन इसके विपरीत येसु पापियों के साथ खाते पीते हैं और रोगो को चंगा करते हैं। इसलिए येसु योहन के शिष्यों को जवाब देते हैं, “जाओ, तुम जो सुनते और देखते हो, उसे योहन को बता दो - अंधे देखते है, लँगड़े चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाए जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है। इसके द्वारा प्रभु योहन को इसायह नबी ने जो भविश्यवाणी की थी उसकी याद दिलाते हैं जिसे हम आज के पहले पाठ मे पाते हैं - जिसमें हमने सुना है “देखो तुम्हारा ईश्वर आ रहा है, वह स्वयं तुम्हे बचाने आ रहा है। तब अंधो की आंखे देखने और बहरों के कान सुनने लगेंगे। लँगड़ा हरिण की तरह छलांग भरेगा। और गूंगे की जीभ आनंद का गीत गायेगी।

जब योहन ने यह पूछने भेजा, कि क्या आप वही हैं जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें? तो ऐसा प्रतीत होता है कि योहन येसु की सत्यता पर संदेह करते है। लेकिन येसु उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि धन्य है वह जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठता! क्योकि येसु जानते हैं कि योहन हवा से हिलते सरकंडे के समान नहीं हैं। वह जिधर हवा बहती है उधर ही नही चले जाते हैं बल्कि अपने विश्वास और सत्य के कारण बंदी है। इसलिए अपने जवाब द्वारा प्रभु योहन के विश्वास को और अधिक मजबूत बनाते हैं।

हम लोग आगमन काल में हैं और प्रभु के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रभु आज हमार बीच शरीरिक रूप से विद्यमान नहीं है लेकिन पवित्र युखारिस्त में येसु हमेशा उपस्थित रहते है। प्रभु बाइबिल के वचन के रूप में भी हमारे साथ रहते हैं। प्रभु येसु ने यह भी कहा है- जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच उपस्थित रहता हूँ। हमारा विेश्वास है कि येसु अभी भी हमारे बीच निवास करते हैं। जिस प्रकार वे 2000 वर्ष पूर्व लोगो को चंगा करते थे, आज भी प्रभु उसी प्रकार लगातार लोगों को चंगाई प्रदान करते हैं। इन कार्यो द्वारा प्रभु हमारे विश्वास को भी मजबूत करना चाहते हैं। हमें बस अपनी आंखो और कानों को खुला रखने की जरूरत है। हमें जागरूक रहने की जरूरत है ताकि हम प्रभु के कार्यो को अपने जीवन और दूसरों के जीवन में देख सकें। क्योंकि प्रभु येसु आज हम लोगों से भी कहते हैं जो तुम देखते और सुनते हो, वह दूसरो को बता दो। जैसे योहन ने अपने मिशन को पहचाना और उसके अनुरूप उपदेश देता रहा, यहां तक कि उसे बंदी बनना पड़ा और शहीद भी हो गए; हमें भी उसके पद्चिन्हों पर चलकर प्रभु के कार्यों को देखने और सुनने की आवश्यकता है ताकि हम भी संत योहन की तरह अपने मिशन को पहचान सकें। आइए हम मनन चिंतन करें कि क्या मैं प्रभु के कार्यों को जो कि हमारे दैनिक जीवन में होते रहते हैं पहचानने में सक्षम हूँ? क्या मैं अपने मिशन को पहचानता हूँ? आइए इसे समझने के लिए हम प्रभु से कृपा मांगे।