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चक्र- अ – आगमन का दूसरा इतवार

इसायाह 11:1-10; रोमियो 15:4-9; मत्ती 3:1-12

ब्रदर पंकज किस्पोट्टा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों। बाईबल हमें, रूत के ग्रंथ अध्याय 4:22 में बताती हैं कि यिशय, ओबेद का पुत्र है और दाऊद का पिता है। यिशय, मसीह के वंश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है (मत्ती 22:42)। आज के पहले पाठ में हम पढ़ते हैं कि ‘यिशय की धड़ से एक टहनी निकलेगी, उसके जड़ से एक अंकुर फूटेगा। उस पर प्रभु का आत्मा छाया रहेगा, प्रज्ञा तथा बुद्धि का आत्मा, सुमति तथा धैर्य का आत्मा, ज्ञान तथा ईश्वर पर श्रद्धा का आत्मा।’ वह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर निष्पक्षता के साथ न्यायपूर्वक, शब्दों के डंडे से कुकर्मियों का विनाश करेगा एवं देश के दरिद्रों को न्याय दिलायेगा। उसके आगमन पर समस्त पृथ्वी में शांति एवं मेल-मिलाप होगा, और ना कोई एक-दूसरे का बुराई करेगा ना ही हानि।

आज का दूसरा पाठ हमें यह बताता है कि हम किसी भी परिस्थिति - संकट, भय, समस्या या उलझन - में हमें धैर्य रखना है (रोमियों 12:2)। क्योंकि वचन कहता है: ईश्वर ही धैर्य तथा सांत्वना का स्रोत है (रोमियों 15:5)। यह आगमन काल हमें पुनः अवगत कराता है कि जो आने वाला है वह खुद धैर्य तथा सांत्वना है।

आज के सुसमाचार में योहन बपतिस्ता 'पश्चाताप' का संदेश लेकर आता है। चालीस दिन और चालीस रात, निर्जन प्रदेश में उपवास व प्रार्थना करने के बाद प्रभु येसु की यह पहली घोषणा थी: पश्चाताप करो! स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है (मत्ती 3:5)। पाप, संसार की सारी समस्याओं, कष्ट-पीड़ा, अशांति एवं अन्याय का कारण है। स्तोत्रकार कहता है ‘मैं तो जन्म से ही अपराधी, अपनी माता के गर्भ से पापी हूँ” (स्तोत्र 51:5)। हम में से कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि मुझमें कोई पाप नहीं है। रोमियो के नाम संत पौलुस का पत्र 3:23 में वचन कहता है “सबो ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित किये गये”। पापों से छुटकारा पाने के लिए हम में से हर एक व्यक्ति को पश्चाताप कर ईश्वर की ओर मुड़ना चाहिए। क्योंकि पश्पश्चाप के बिना हम स्वर्ग राज्य में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। तथा पश्चाताप के फल से वंचित हो जाएंगे, जो प्रभु हमें देना चाहते हैं।

पश्चाताप क्या है? पीछे मुड़ कर देखना या अपना मन परिवर्तन करना और ईश्वर की ओर अभिमुख होना ही पश्चाताप है। आगे वचन कहता है प्रभु का मार्ग तैयार करो उसके पथ सीधे कर दो। संसारिक दृष्टि से हम देखते हैं, कि किसी नेता या अधिकारी के आगमन पर लोग ऊबड़-खाबड़ मार्ग को समतल करते हैं। नबी इसायाह हम से सांसारिक तैयारी के साथ-साथ आध्यात्मिक तैयारी का आह्वान भी करते हैं। आध्यात्मिक तैयारी हम कैसे कर सकते हैं?

पश्चाताप के फल उत्पन्न करके। पश्चाताप के फल क्या है? दूसरों की मदद या चिंता करना, प्रार्थना, तपस्या, सादगी का जीवन जीना, क्षमा, सहानुभूति, मेल मिलाप तथा ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव इत्यादि पश्चाताप के फल है।

सन्त योहान हमें समझाते है कि हमें पश्चाताप के फल क्यों उत्पन्न करना चाहिए? उनका कहना है कि ‘पश्चाताप का उचित फल उत्पन्न करो।‘ क्योंकि जो मेरे बाद आने वाले हैं वह मुझ से अधिक शक्तिशाली है मैं उनके जूते उठाने योग्य भी नहीं हूँ। वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देंगे। संत योहन बपतिस्ता के अनुसार प्रभु येसु के करीब आने के लिए और उन से मुक्ति पाने के लिए हमें पश्चाताप करना चाहिए। सच्चा पश्चाताप हमें ईश्वर से पुनः जोड़ता है, जीवन में चमत्कार ला सकता है, जीवन को परिवर्तन कर सकता है तथा विनाश को विकास की ओर परिवर्तित कर सकता है। पश्चाताप का अभाव हमें ईश्वर की आशिष से वंचित करता है और हम उस सूखे वृक्ष के समान हो जाते हैं जो फलदाई नहीं है। और ऐसे पेड़ काटे जाने के लायक हैं। नबी इसायाह के ग्रंथ 36:15 में वचन कहता है “पश्चाताप और स्वीकृति में तुम्हारा कल्याण है।“ यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं तो वह हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें अधर्म से शुद्ध करेगा क्योंकि वह विश्वसनीय तथा सत्यप्रतिज्ञा है (1योहन 1:9)।

सूक्ति ग्रंथ 28:13 में प्रभु ईश्वर कहते हैं “जो अपने पाप को छिपता वह कभी उन्नति नहीं करेगा”। क्योंकि पाप लोगों को बर्बादी व विनाश की ओर ले जाता है। रोमियो के पत्र 6:23 में यह बात स्पष्ट हैं कि “पाप का वेतन मृत्यु है।” तो ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों कभी-कभी हम सोचते हैं कि स्वर्ग राज्य हमें यूं ही विरासत में प्राप्त हो जायेगा क्योंकि हम ख्रीस्तीय हैं। लेकिन हमें यह पता होना चाहिए कि हम एक सच्चे ख्रीस्तीय जीवन को तब तक नहीं जी पाएंगे जब तक हम ख्रीस्तीय जीवन मंं फल नहीं लाते हैं। क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है जो इस संसार में रहकर अच्छे फल उत्पन्न करते हैं। तो आइए हम पश्चाताप के द्वारा अपने जीवन को संपूर्ण रूप से बदलकर प्रभु को समर्पित करें और पश्चाताप के लिए दृढ़ संकल्प करें। क्योंकि पश्चाताप ही स्वर्ग राज्य की पहली सीढ़ी है।