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चक्र- अ – आगमन का पहला इतवार

इसायाह 2: 1-5; रोमियों 13: 11-14; मती 24:37 - 44

ब्रदर अश्विन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में मेरे भाइयों और बहनों आज से हम आगमन काल में प्रवेश कर चुके हैं। आगमन का काल एक पवित्र समय है जब हम अपने आपको प्रभु के लिए तैयार करते हैं। यह समय हमें नया बनने का अवसर प्रदान करता है। हम हर साल आगमन काल मनाते हैं। ये आगमन क्या है? यह किसका आगमन है? यह प्रभु येसु का आगमन है। इस आगमन काल में हम प्रभु येसु के जन्मोत्सव के लिए अपने आपको तैयार करते हैं।

हम आज के पवित्र सुसमाचार में पढ़ते हैं, जो नूह के दिनों में हुआ था, वही मानव पुत्र के आगमन के समय होगा। हम आगे पढ़ते हैं कि नूह के समय सब लोग खाते-पीते रहते थे, अपना जीवन अपने तरीके से जीते थे। जब तक उनका सर्वनाश नहीं हुआ तब तक उनको कुछ पता नहीं था। इसी तरह मानव पुत्र के आगमन के समय होगा, किसी को भी इसका पता नहीं चलेगा कि मानव पुत्र कब आएगा। हम हर समय सुनते हैं कि मानव पुत्र आएगा। क्या हमने कभी सोचा है कि वह क्यों आएगा? इसका जवाब हमें संत योहन के सुसमाचार अध्याय 14 : 1- 4 में मिलता है। यहाँ प्रभु येसु साफ-साफ अपने शिष्यों से कहते हैं, “मैं वहां जाकर तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने के बाद फिर आऊंगा और तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊंगा, जिससे जहां मैं हूँ, वहाँ तुम भी रहो। प्रभु येसु हमें अपने स्वर्गीक राज्य में ले जाने के लिए आएंगे और इसके लिए हमें हमेशा तैयार रहना है क्योंकि हम न वह समय जानते हैं और न वह घड़ी, जिस समय प्रभु आएगा।

जब प्रभु येसु आएगा तब वह हमारा न्याय करेगा, जिस तरह हम मत्ती 25:31-46 में न्याय के दिन के बारे में पढ़ते हैं। प्रभु येसु स्वर्गदूतो के साथ अपनी महिमा सहित आयेगा, वह अपने महिमामय सिहासन पर विराजमान होगा और सभी राष्ट्र उसके सम्मुख एकत्र किए जायेंगे। जिस तरह चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, उसी तरह वह लोगों को एक दूसरों से अलग कर देगा। प्रभु येसु हमें भी अपने दाये और अपने बाये खड़ा कर देगा और हमारा न्याय करेगा। जो प्रभु के दाये रहेंगे वे “पिता ईश्वर के कृपापात्र” कहलाएंगे और जो बाये रहेंगे वे ’शापित’ कहलाएंगे।

अगर हम ईश्वर के कृपापात्र बनना चाहते हैं तो हमें क्या करना चाहिए? हम इबानियों के नाम 11:1 में विश्वास के महत्व के बारे में पढ़ते हैं। यहाँ पर स्पष्ट रूप से लिखा गया है, “विश्वास के कारण हमारे पूर्वज ईश्वर के कृपापात्र बने। विश्वास द्वारा हम समझते हैं कि ईश्वर के शब्द द्वारा विश्व का निर्माण हुआ है और अदृश्य से दृश्य की उत्पत्ति हुई है विश्वास के अभाव में कोई ईश्वर का कृपापात्र नहीं बन सकता।“ जो ईश्वर के निकट पहुंचना चाहता है, उसे विश्वास करना है कि ईश्वर है और वह उन लोगों का कल्याण करता है, जो उसकी खोज में लगे रहते हैं। अगर हमें ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है तो हमें ईश्वर पर विश्वास करना है, उसकी आज्ञाओं का पालन करना है, उसकी आज्ञाओं के अनुसार अपना जीवन बिताना है। तभी हम ईश्वर के कृपापात्र बन सकेंगे। इसी तरह आज के दूसरे पाठ में हमें साफ-साफ बताया गया है जिस समय हमने विश्वास किया था, उस समय की अपेक्षा अब हमारी मुक्ति अधिक निकट है जिस दिन से हम ईश्वर पर विश्वास करना शुरू कर देंगे उसी घड़ी से हम ईश्वर के कृपापात्र बनने के योग्य हो जाएंगे।

तो आइए मेरे ख्रीस्त में प्यारे भाइयों -बहनों हम ईश्वर के कृपापात्र बनने के लिए अपने आपको तैयार करें। जिस तरह हम इसायाह 2:5 में पढ़ते हैं आओ, हम प्रभु की ज्योति में चलते रहे। हम तभी प्रभु की ज्योति में चल सकेंगे जब हम प्रभु ईश्वर में विश्वास करेंगे।