प्रेरित-चरित 2:1-11; कुरिथियों 12:2-7, 12-13; योहन 20:19-23
आज माता कलीसिया पेन्तेकोस्त अर्थात पवित्र आत्मा के आगमन का पर्व मना रही है। यह कलीसिया से संबंधित एक महान घटना है। इस दिन पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरता है। यह घटना पास्का पर्व के पश्चात् 50 दिन के बाद घटती हैं। पेन्तेकोस्त दिन को पवित्र कलीसिया का जन्म-दिवस मानाया जाता है, क्योंकि आज के दिन से भयभीत प्रेरितगण अचानक पवित्र आत्मा से परिपूर्ण एवं ज्योतिर्मय होकर साहस पूर्वक सुसमाचार का साक्ष्य देने लगे थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि आज के ही दिन पवित्र कलीसिया का गठन हुआ है।
आज कलीसिया हमें सुसमाचार के दो बिन्दुओं पर मनन चिंतन करने के लिए आमंत्रित करती है – (1) शांति, (2) पवित्र आत्मा।
आज के सुसमाचार के पहले भाग में हम सुनते हैं कि जब शिष्यगण यहूदियों के भय से द्वार बंद किए एकत्र थे, प्रभु येसु उनके बीच आकर खड़े हो गए। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा "तुम्हंं शांति मिले”। प्रभु येसु अपने शिष्यों को स्वर्गिक शांति प्रदान कर उन्हें उनके कार्यों को पूर्ण करने के लिए संसार भर में शांति देकर भेजते हैं। हम संत योहन रचित सुसमाचार 14:27 में सुनते हैं कि प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते हैं "मैं तुम्हारे लिए शांति छोड़ जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति जैसी नहीं है।" प्रभु येसु ने शिष्यों को संसार की शांति नहीं बल्कि स्वर्गिक शांति के साथ संसार के कोने-कोने में उनकी शांति का संदेश सुनाने के लिए भेजा। आज हम प्रभु येसु के शिष्य हैं। हम प्रभु येसु के शांति वाहक हैं। हमारा कर्तव्य बनता है कि प्रभु येसु के वचनों को लोगों के पास पहुंचायें।
हम थेसलनीकियों के पत्र 3:16 में सुनते हैं कि "शांति का प्रभु आप लोगों को हर समय और हर प्रकार की शांति प्रदान करता रहे। प्रभु आप सबों के साथ हो।" यहां पर हमें आश्वासन मिलता है कि शांति के प्रभु हमें हमेशा, हर जगह शांति प्रदान करेगा। हमें किसी से डरने की जरूरत नहीं है। प्रभु येसु आज हमें अपने शिष्यों की भांति संसार भर में उसकी शांति को फैलाने के लिए भेज रहा है। प्रश्न यह उठता है क्या हम उसकी शांति को लेकर संसार भर में जाने के लिए तैयार और सक्षम हैं। अगर तैयार और सक्षम नहीं है, तो हम प्रभु येसु से स्वर्गिक शांति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।
सुसमाचार के दूसरे भाग में प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा है, उसी प्रकार में तुम्हें भेजता हूँ। उसके बाद प्रभु येसु ने उन पर फुंक कर कहा "पवित्र आत्मा को ग्रहण करो"। प्रभु येसु अपनी शांति के साथ-साथ अपने शिष्यों को पवित्र आत्मा से परिपूर्ण करके संसार में उसके राज्य की घोषणा करने के लिए भेजते हैं। प्रेरित-चरित 2:4 में हम सुनते हैं, "वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए और आत्मा द्वारा प्रदत वरदान के अनुसार भिन्न भिन्न भाषाएं बोलने लगे।" जब शिष्यगण पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाते हैं तो उसके वरदान के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने लगते हैं। अर्थात शिष्य अपने जीवन में नई ऊर्जा का संचार पाते हैं जो उन्हें और शक्ति से प्रचार-प्रसार करने के लिए सहायता करता है तथा बोलने के लिए भिन्न- भिन्न भाषाएं देता है।
संत योहन रचित सुसमाचार 15:26 में प्रभु येसु कहते हैं "जब वह सहायक पिता के यहाँ से आने वाला, यह सत्य का आत्मा जाएगा जिसे मैं पिता के यहाँ से तुम लोगों के पास भेजूंगा, तो वह मेरे विषय में साक्ष्य देगा।" प्रभु येसु इस सहायक को अपने शिष्यों के पास भेजता है। वह सत्य का आत्मा शिष्यों को प्रभु येसु के विषय में साक्षी देने के लिए तैयार करता है। आज वही पुनर्जीवित प्रभु येसु हमें अपने शिष्यों की तरह सहायक पवित्र आत्मा के साथ भेज रहा है जो हमेशा हमारी अगुवाई करेगा, बोलने के लिए वाणी देगा। वह हमेशा सत्य का साथ देगा तथा हमें हमेशा उसकी छत्रछाया में रखेगा। वह कभी भी हमारा साथ नहीं छोड़ेगा।
भाइयों और बहनों हमने उसी पवित्र आत्मा को दृढीकरण संस्कार में ग्रहण किया है, क्या हम अवगत है? क्या उसकी अगुवाई में कार्य करने के लिए हम तैयार है? हमें वह पवित्र आत्मा मिला है। हमें उसकी संगति में कार्य करना है।
तो प्यारे भाइयों और बहनों आइए हम पवित्र आत्मा के कुछ कार्यों पर मनन करें।
1) पवित्र आत्मा हमें प्रतिदिन पवित्र करता और उसके वरदानों से परिपूर्ण करता है। पवित्र आत्मा हमें रोज नई ऊर्जा प्रदान करता है, नया जीवन प्रदान करता है और उसके सभी वरदानों से हमें परिपूर्ण करता है ताकि हम ईश्वर के राज्य की घोषणा पवित्र मन से कर सकें।
2) पवित्र आत्मा सभी शक्ति और ज्ञान का मार्गदर्शन करता है। संत योहन रचित सुसमाचार हम 15:26 में देखते हैं कि प्रभु येसु, पिता का सत्य का आत्मा हमारे पास भेजता है। वह सत्य का साक्ष्य देने के लिए हमें प्रेरित करेगा। यह हमेशा सत्य का साथ देने के लिए कहता है, हमें सभी लोगों के सामने बोलने केलिए ज्ञान तथा साहस प्रदान करता है।
3) हमारी कमजोरी में मदद करता और हमारे लिए मध्यस्थ बनता है। प्रभु हमें याद दिलाते हैं कि पवित्र आत्मा तुम्हारी कमजोरियों में, परेशानियों में, मुश्किलों में, पीड़ाओं में, और दुःख तकलीफों में हमेशा मदद करने के लिए तत्पर रहेगा और तुम्हारे लिए पिता ईश्वर से मध्यस्थ प्रार्थना करेगा।
4) पवित्र आत्मा हमें सभी चीज़ें याद दिलाता है। फिलिपियों के नाम पत्र 4:9 में हम पढ़ते हैं “आप लोगों ने मुझे से जो सिखा, ग्रहण किया, सुना और मुझ में देखा, उसके अनुसार आचरण करें और शांति का ईश्वर आप लोगों के साथ रहेगा”। प्रभु येसु हमें आह्वान करते हैं कि जो भी कुछ हमने उनके साथ रहते हुए सीखा है उसी को हम सभी लोगों को सुनायें
तो आइए प्यारे भाइयों और बहनों पवित्र आत्मा को अपने हृदय में ग्रहण करके, हमारे जीवन को नया बनाए और उसके अनुसार जीवन बिताने के लिए तत्पर रहे।