प्रज्ञा ग्रन्थ 6:12-16,थेसलनीकियो 4 : 13-18, मत्ती 25:1-13
ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाइयो और बहनो, आज के पाठों का मर्म प्रज्ञा पर आधारित है। आईए हम देखते हैं, प्रज्ञा प्राप्त लोगों का जीवन कैसा होता है और जिनके जीवन में प्रज्ञा का अभाव होता है, उनका जीवन कैसा होता है।
सुसमाचार में हम दस कुँवारियों के बारे सुनते हैं जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुल्हे की अगवानी करने निकलीं। यहां प्रश्न यह उठता है कि येसु ने उनमें से पांच को समझदार और पांच को नासमझ क्यों कहा होगा? अगर हम इसका सांसारिक दृष्टिकोण से उत्तर दें, तो जिनको नासमझ कहा गया है, उनके मशालों में भी आवश्यक तेल तो था। दुल्हे के समय पर आने पर वे भी उनके साथ विवाह-भवन में प्रवेश कर पाती। उन्हं् यह मालूम नहीं था कि दुल्हा आने में देर करेगा। फिर भी इनको नासमझ क्यों कहा गया है। उनकी क्या गलती होगी? उन्होंने सांसरिक दृष्टिकोण से जो किया था, वह सही भी था। जब हम अपने दैनिक जीवन की बात करते हैं तो हम में से ऐसे बहुत से लोग होंगे जो पेट्रोल न होने के कारण मोटरबाइक को खींचकर पेट्रोल पंप तक ले गये होंगे। हमने अक्सर यह भी देखा होगा कि हमारे किसान भाई जो अपने खेतों की सिंचाई करने के बाद लौटते समय अंधियारी गलियों व सडकों से निसंकोच घर वापस आते हैं। इन दोनों उदारहणों में ऐसा होना हमारे लिए आम बात हैं।
परन्तु हमें यह भी समझना है कि प्रभु येसु ने अन्य पाँच कुँवारियों को समझदार क्यों कहा होगा। इसका जवाब बहुत ही साधारण और सरल है, और वह हमारे जीवन में बहुत ही अर्थपूर्ण व महत्व रखता है। पाँच समझदार कुवारियों ने जो अनोखा कार्य किया था, वह है समय और असम्भवता दोनो को भापते हुए उन्होंने अपनी प्रज्ञ दिमाग से सोचा होगा कि शायद दुल्हा आने में देर कर सकता है। इसलिए वे अपने साथ कुप्पियों में अलग से तेल भी ले आती हैं। वास्तव में वह तेल उन कुवारियों के मुसीबत के समय उपयोग में आता है। जिसके कारण वे दुल्हा के देर से आने के बावजूद भी समारोह में शामिल हो पाती हैं।
इसी तरह कोई भी वाहन-चालक अपने साथ एक या दो लीटर पेट्रोल अधिक ले जाते, तो उन्हें भी सडक पर वाहन को खींचने की शायद ही आवश्यकता होती। अगर वह किसान भाई जो सिंचाई के बाद रात्रि के समय सुनसान सडकों से खाली हाथ घर लौटता है, अपने साथ एक लाठी और टोर्च ले चलता तो वह भी अपने को बहुत अधिक सुरक्षित पाता। चाहें हमें किसी भी चीज़ का कितना भी अनुभव क्यों न हो फ़िर भी हमें सदैव सचेत और चौकन्ना रहना चाहिए। यही प्रज्ञा की पहचान है, जैसे हम उन पांच कुवारियों के जीवन में देखते हैं जो अपने जीवन में ईश्वर की प्रज्ञा का उपयोग करती हैं। ऐसे लोग सदा ईश्वर की पंखों की छाया मंथ सुरक्षित रहते और दूसरों से अधिक बुध्दिमान होते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि हम प्रज्ञा कैसे से प्राप्त करें? बाइबिल में, इसका उत्तर सूक्ति ग्रन्थ 9:10 में स्पष्ट रूप से बताया गया है, “प्रज्ञा का मूल स्त्रोत प्रभु पर श्रध्दा है और बुध्दिमानी परमपावन ईश्वर का ज्ञान है”। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि “प्रभु पर श्रध्दा” हमारे जीवन में प्रज्ञा ग्रहण करने की शुरुआत है। इसका उदाहरण हम राजाओं के पहले ग्रन्थ 3:9 में देखते हैं, जब राजा सुलेमान प्रभु से आग्रह करते हुए कह्ते हैं, "अपने इस सेवक को विवेक देने की कृपा कर, जिसे वह न्यायपूर्वक तेरी प्रजा का शासन करे और भला तथा बुरा पहचान सके"। राजा सुलेमान एक ऐसे व्यक्ति थे जो ’प्रभु पर श्रध्दा’ रखते थे और अपने पिता दाऊद के द्वारा दी गई सभी ईश्वरीय आज्ञाओं का पालन करते थे। इसलिए प्रभु ने राजा सुलेमान को एक ऐसी बुध्दि और प्रज्ञा प्रदान की जिसके समान न कोई जन्मा है और न ही जन्मेगा। आज के पहले पाठ प्रज्ञा ग्रन्थ 6:12-13 में लिखा है, "जो उसे खोजते हैं वे उसे प्राप्त कर लेते हैं। जो उसे चाहते हैं, वह स्वयं आ कर उन्हें अपना परिचय देती है"। इसलिए मेरे प्रिय भाईयों और बहनों, जैसे एफ़े 1:1-3 में कहा गया है, हमें ईश्वर से निरन्तर प्रार्थना करनी चाहिए, क्योंकि उसने अपने एकलौते पुत्र के रक्त के द्वारा हमें मुक्ति प्रदान की है जिसके परिणाम स्वरूप वह हमें प्रज्ञा और बुध्दि प्रदान करता रहता है।
आइए हम ईश्वर से प्रज्ञा व बुध्दि की कृपा ग्रहण करें। आमेन