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चक्र- अ – सामान्य काल का तीसवाँ इतवार

निर्गमन 22:20-26; 1थेसलनीकियों 1:5-10; मत्ती 22:34-40

ब्रदर पारसिंह डामोर (उदयपूर धर्मप्रान्त)


प्यारे भाइयो और बहनो आज के सुसमाचार में हम पाते हैं, फरीसियों के बीच से एक कानूनी विशेशज्ञ ने प्रभु को परखने के लिए एक सवाल पूछा कि संहिता में सबसे बड़ी आज्ञा क्या है? प्रभु येशु ने धर्मग्रंथ, विधि विवरण ग्रंथ अध्याय 6:4, से ही उस कानूनी विशेषज्ञ को जवाब दिया और कहा, "इस्राएल सुनो! हमारा प्रभु ईश्वर एकमात्र प्रभु है, तुम अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और सारी शक्ति, से प्यार करो।” इसका मतलब यही है कि हमें प्रभु को हमारे सारे विचारों और कर्मों से प्यर करना चाहिए। हमारे विचारों में प्रभु प्रकट होना चाहिये। साथ ही साथ प्रभु ने दूसरी आज्ञा भी उनको देते हुए कहा, "अपने पड़ोसी को अपने सम्मान प्यार करो"। अपने पड़ोसी को अपने सम्मान प्यार करने का अर्थ यही है, कि हमें उनकी आवश्यकताओं में उनकी सहायता करनी चाहिए। उनकी दुख तकलीफ में, उनकी चिंताओं में, उनकी परेशानियों, में उनकी कठिनाइयों में उनके साथ रहना चाहिए। उत्पत्ति ग्रंथ अध्याय 4 वाक्य 9 में वचन कहता है, प्रभु ने काईन से कहा "तुम्हारा भाई हबल कहाँ है?” उसने उत्तर दिया, “में नहीं जानता। क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूं?" आज प्रभु ईश्वर मुझ से और आप से यही प्रश्न करते हैं, कि तुम्हारा भाई, तुम्हारी बहन, तुम्हारे रिश्तेदार, तुम्हारे परिवारजन कहां हैं।

प्यारे भाइयों और बहनों, साथ ही हम गलातियो के नाम संत पोलुस के पत्र में पढ़ते हैं, "एक दूसरे की सहायता करो या एक दूसरे का भोज उठाओं"। मतलब अपने पड़ोसी से अपने समान प्यार करना। साथ ही साथ भोज उठाने का मतलब यहां पर यह भी है, कि अपने पड़ोसियों की परवाह करते हुए, उनकी परेशानियों को जानते हुए, उनके साथ रहना है, उनकी समस्याओं, में कठिन परिस्थितियों में उनकी मदद करना है।

इसीलिए हमें दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जैसे हम अपने निकट के लोगों के साथ करते हैं। संत मत्ती 7:12 में प्रभु येसु हमें स्वर्णिम नियम देते हैं, "दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो"।

विश्वासी भाइयों और बहनों, जैसे हम आज इस पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लेते हैं; प्रभु से यही प्रार्थना करें कि वे हमें अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने की कृपा प्रदान करें, अपने प्रभु ईश्वर को हमारे सारे हृदय, तन, मन से प्यार करते हुए प्रभु से यही कृपा मांगे कि प्रभु हमें हमेशा उनके प्यार में, और एक दूसरे के प्यार में बांधे रखें। आमेन।