pankaj_kispotta

चक्र- अ – वर्ष का सत्ताइसवाँ इतवार

इसायाह 5: 1-7; फिलिपियों 4: 6-7; मती 21: 33-43

ब्रदर पंकज किस्पोट्टा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवम बहनों। आज का सुसमाचार हमें उचित फल उत्पन्न करने के लिए आमन्त्रित करता है। हिंसक आसामियों के दृष्टांत को समझने के लिए हमें आज के पहले पाठ अर्थात पुराने विधान के नबी इसायाह का ग्रंथ 5:1-7 से परिचित होना होगा। आज के पहले पाठ में हमने सुना की दाखदार किस प्रकार दाखलता लगाने की तैयारी करता है। वह कोई ऐसी चीज नहीं छोड़ता जिससे कोई कमी आए और अंगूर अच्छे न मिले। दाखदार अपना पूर्ण प्रेम अपनी दाखबारी को तैयार करने में लगा देता है, पर अंत में उसे खट्टे और खराब अंगूर ही मिलते हैं। नबी इसायाह के अनुसार यह दाखबारी इस्राएल के लोग हैं, यानी हम सब और दाखदार ईश्वर है। जो हमें वह सब प्रदान करता है जिससे हम उत्तम फल पैदा कर सकें, परंतु हम असफल हो जाते हैं।

आज का सुसमाचार भी कुछ ऐसी ही बात हमसे कहता है। ‘आसामियों’ के हाथ जो कि विद्रोही इजरायल के नेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, प्रभु ईश्वर अपना राज्य सौंप देता है। जब फसल तैयार हो जाती है तो वह अपने लोगों को भेजता है और अंत में अपने पुत्र को। गौर करने की बात यह है कि आसामी न तो मालिक के लोगों को स्वीकार करते हैं और न ही मालिक के पुत्र को। बल्कि वे स्वयं मलिक बनना चाहते हैं जिसके कारण वे मालिक द्वारा प्राप्त सभी वरदानों, नौकरी और रहन-सहन इत्यादि को भी गंवा देते हैं। कहने का तात्पर्य है यह है कि हम भी अपने जीवन में बहुत से कृपाओ को प्राप्त करते है पर उनको पहचानने और उनका मूल्य समझने में अपने ‘हट’ के कारण असमर्थ रहते हैं।

इसलिए दूसरे पाठ में संत पौलुस हमसे यह आग्रह करते हैं कि किसी बात की चिंता न करें। हर जरूरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने निवेदन प्रस्तुत करें। अर्थात उसके द्वारा प्राप्त सभी कृपाओ के लिए ईश्वर को धन्यवाद दे।

तो ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों, अपने जीवन में सदा उत्तम या उचित फल उत्पन्न करने के लिए प्रभु से जुड़े रहने की आवश्यकता है क्योंकि सन्त योहान के सुसमाचार 15:4 में वचन कहता है जिस तरह दाखलता में रहे बिना डाली स्वयं फल नहीं सकती उसी तरह मुझ में रहे बिना तुम भी फल नहीं सकते। साथ ही साथ निरंतर प्रार्थना करते रहना है क्योंकि ईश्वर की इच्छा यही है।